Bhuvanvikram
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Item Weight | 166 Grams |
ISBN | 978-9351868644 |
Author | Vrindavan Lal Verma |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt Ltd |
Pages | 254 Pages |
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Bhuvanvikram
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ठहरिए' गौरी की माँ के गले का कंप कम हो गया था और स्वर पैना- 'ठहरिए, मैं कुछ और कह रही हूँ ।' भुवन को रुकना पड़ा । चुपचाप, सुन्न । वह कहती रही-' आप हम दीन- दुखियों के साथ खिलवाड़ करना चाहते हैं! याद रखिए, हम भी क्षत्रिय हैं।' 'कैसा खिलवाड़, माँजी. कैसा?' 'जैसा अभी-अभी कर रहे थे हमारी भोलीभाली गौरी के साथ. मैं स्पष्ट पूछती हूँ-क्या आप उसके साथ वैदिक रूप से विवाह करने को तैयार होंगे?' अब भुवन का सिर ऊँचा हुआ । 'अवश्य, माँजी, अवश्य। 'उसके गले में न कैप था, न घबराहट। 'आप गंगा की और अपने पुरुखों की सौगंध खाते हैं? स्मरण करिए, राम आपके पुराने पूर्वज हैं।' 'मैं सौगंध खाता हूँ माँजी।' गौरी आँगन में होकर सुन रही थी। पृथ्वी को पैर के नख से कुरेद रही थी, जिसपर दो आँसू आ टपके। 'पक्का वचन?' गौरी की माँ का स्वर अब धीमा पड़ गया था। 'पक्का, माँजी, बिलकुल पक्का। उतनी बड़ी सौगंध खा चुका हूँ। आश्रम में शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत माता-पिता के आशीर्वाद से पहला काम यही करूँगा।' 'अच्छा बेटा, सुखी रहो तुम दोनों। 'गौरी की माँ का गला काँप रहा था। उस कैप के साथ आँखों में आँसू भी थे। गौरी आँसू पोंछती हुई घर के एक कमरे में चली गई|
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