Bhukhe pet ki raat lambi hogi
Author | Anil mishra |
Language | Hindi |
Publisher | Setu Prakashan |
ISBN | 978-93-89830-01-9 |
Book Type | Paperback |
Item Weight | 0.12 kg |
Dimensions | 129 x 198 mm |
Edition | 1st |
Bhukhe pet ki raat lambi hogi
About Book
'भूखे पेट की रात लंबी होगी', पर क्यों? यह जितना अभिधात्मक पदबंध है, उतना ही लाक्षणिक! अभिधात्मकता और लाक्षणिकता कविता की भवता की अनिवार्यता है। भूखे पेट की रात की लंबाई प्रसंगों और संदर्भों पर निर्भर करेगी। अमीर और गरीब के लिए इसके मायने अलग-अलग होंगे, वैसे ही अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक के लिए अथवा राजनीतिक पक्ष या विपक्ष के लिए...ऐसे अनेक द्वित्वों का संदर्भ प्रस्तुत किया जा सकता है। किंतु, इन कविताओं की खासियत यह है कि ये इन अनेक द्वित्वों को कविता में सहज ही उभारती हैं पर साथ सदैव कमजोर, वंचित, विपक्ष या अल्पसंख्यक के होती हैं। कविता में यह कवि की गहरी अंतर्दृष्टि के कारण निर्मित होता है। गहरी अंतर्दृष्टि के बावजूद कवि ने अपनी पक्षधरता छुपायी नहीं है। कोष्ठक का 'लेबर चौराहा' इस स्पष्ट पक्षधरता का प्रमाण है।
'भूखे पेट की रात लंबी होगी' कवि अनिल मिश्र का तीसरा संग्रह है। जीवन के रोजमर्रापन का संदर्भ इन कविताओं के संभव होने का कारण है। त्याज्य और स्वीकार्य सबको कवि की गहरी संवेदना प्राप्त हुई है। चाहे घर का कबाड़ बेचने का ही संदर्भ क्यों न हो! जिन संदर्भों से हम प्रायः तटस्थ होते हैं या दिखने की कोशिश करते हैं, कवि अनिल मिश्र प्रायः वहीं सक्रिय होते हैं। कहने की बात नहीं कि यह सूक्ष्म अवलोकन के द्वारा ही संभव हो सका है। इस प्रक्रिया में और इस प्रक्रिया द्वारा वे आस्था के जीवन को प्रस्तावित करते हैं, जीवन के छोटे सत्यों को उद्घाटित करते हैं, उसका साक्षात्कार करते हैं। बड़े सत्यों और बृहत् लक्षणों के संधान में कई बार जीवन के लघु सत्य और लक्ष्य छूट जाते हैं, दृष्टि से ओझल हो जाते हैं। पर कवि अनिल मिश्र के संदर्भ में हम यह नहीं कह सकते। लक्ष्य उनका बृहत् है और संदर्भ सामान्यता से निर्मित हैं।
राजनीतिक समझ और चेतना के बिना ऐसा होना संभव नहीं होता! सरसरी तौर से देखने पर इन कविताओं में राजनीतिक अंतर्दृष्टि का अभाव दिखाई देता है। वह ठोस या प्रत्यक्ष नहीं, पर उसकी उपस्थिति कविताओं के प्रसंग निर्मित करती है। राजनीतिक व्यवहार इन कविताओं में तरल अंत:सलिला की तरह है। इस कारण ही इन कविताओं में समाज की समानांतर गतियाँ हैं। ये समानांतर गतियाँ इनकी काव्य-चेतना का आधार हैं|
चूँकि इनकी कविताओं में रोजमर्रेपन का सौंदर्य है, इसलिए यह कहने की आवश्यकता नहीं कि इन कविताओं के विषय विविध हैं। इनमें बहुत से किरदार हैं। मानव समाज के भीतर से भी और बाहर से भी, प्रकृति से भी। प्रकृति अमिधा में भी है और मनुष्य की प्रकृति के वाच्यार्थ रूप में भी। इन कविताओं में दूसरे अर्थ में प्रकृति बहुत है।
इन कविताओं की भाषा बोलचाल की है। शायद नौकरी की वजह से ये अलग-अलग जगहों पर गये। वहाँ से भाषा और विषय दोनों इन्होंने ग्रहण किये। ट्रांसफर पर इन्होंने एक कविता भी लिखी है। भाषा से भी ज्यादा वहाँ से शब्द और ध्वनियाँ ली हैं। यह भारतीय मध्य वर्ग का मानस रूपायित करता है।
आशा है यह संग्रह पाठकों के बीच समादृत होगा...
About Author
अनिल मिश्र
जन्म : सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश, गाँव इसीपुर
शिक्षा : इलाहाबाद विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में परास्नातक
भारतीय राजस्व सेवा में चयन
प्रकाशन : हम अलख के स्वर अकिंचन (2001), खिली रहना धूप (2006), भूखे पेट की रात लंबी होगी (लेबर चौराहा) (2019); विभिन्न भाषाओं में कविताओं के अनुवाद प्रकाशित; मुक्तिबोध पर बनी फिल्म 'आत्म संभवा' में मुक्तिबोध की भूमिका; आलोचना और कविताओं की कुछ संपादित पुस्तकों में रचनाएँ सम्मिलित; संवेद वाराणसी' साहित्य, कला और संस्कृति पत्रिका का 2002 से संपादन और संयोजन; सभी प्रमुख पत्रिकाओं में कविताओं और लेखों का प्रकाशन; आकाशवाणी, दूरदर्शन (प्रसार भारती) से अनेक बार कविताओं, आलेखों के वाचन, साक्षात्कार और परिचर्चाओं का प्रसारण; उजास' भारतीय कविता केंद्रित एक राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम का 2015 में आयोजन
सम्मान : सुधा शर्मा स्मृति सम्मान और अभियान सम्मान-साहित्य में योगदान और कविता के लिए
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