Bhashiya Audatya
Item Weight | 400GM |
ISBN | 978-9352293575 |
Author | Dr. Tribhuvannath Shukl |
Language | Hindi |
Publisher | Vani Prakashan |
Pages | 196 |
Book Type | Hardbound |
Dimensions | 5.30"x8.50" |
Publishing year | 2015 |
Edition | 1st |
Return Policy | 5 days Return and Exchange |

Bhashiya Audatya
साहित्य की प्रकृति और रचनाकार की ऊँचाई का मापन उसके यथायथ प्रयोगों के माध्यम से ही किया जा सकता है। ये प्रयोग कहीं अर्थविच्छित्ति के उद्भावक बनते हैं, तो कहीं सम्पूर्ण कथन का उपवृंहण भी करते चलते हैं। ऐसे प्रयोगों के अन्तर्गत मात्र 'शब्द' ही नहीं, अपितु पद, पदांश, वाक्य, उपवाक्य, विराम चिह्न एवं अन्यान्य सन्दर्भ भी होते हैं। भाषिक अभिव्यक्ति के ये सभी कारक एक से नहीं होते, अपितु युगसापेक्ष्य चिंतन के अनुसार अलग-अलग हुआ करते हैं। एक ही रूप में आज अभिव्यक्ति के स्तर पर जितनी सामर्थ्य है, हो सकता है कल वह सामर्थ्य न रहे, अथवा यों कहें कि सम्भव है, वह सामर्थ्य कल चुक जाए।
समर्थ रचनाकार इन्हीं संभावनाओं से सर्जनात्मक तत्त्वों का संसजन करता है। इसके और भी आगे द्रष्टा की भूमिका में पहुँचा हुआ रचनाकार, संसजन भी नहीं करता बल्कि सृजन अनायास होता रहता है। कबीर के अजपा जाप की तरह।
प्रस्तुत कृति में भाषिक प्रयोगों से संबंधित कुछ प्रक्रियाओं, साँचों और कुछ प्रयोगों को कुछ प्रतिनिधि रचनाकारों, समीक्षकों और साहित्य-सेवियों के साक्ष्य पर रखने का यत्न किया गया है।
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