Bhasha Ki Bheetari Parten
Item Weight | 900GM |
ISBN | 978-9350722442 |
Language | Hindi |
Publisher | Vani Prakashan |
Pages | 464 |
Book Type | Hardbound |
Dimensions | 5.30"x8.50" |
Publishing year | 2012 |
Edition | 1st |
Return Policy | 5 days Return and Exchange |

Bhasha Ki Bheetari Parten
प्रो. दिलीप सिंह की सुविचारित कृतियों के रूप में व्यावसायिक हिन्दी, भाषा का संसार, हिन्दी भाषा चिन्तन, पाठ विश्लेषण, भाषा, साहित्य और संस्कृति शिक्षण, अन्य भाषा शिक्षण का बृहत् सन्दर्भ, अनुवाद की व्यापक संकल्पना जैसी उनकी विविध कृतियाँ सैद्धान्तिक भाषाविज्ञान से आगे बढ़कर अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान को हिन्दी में व्यवहारतः सम्भव कर दिखाने वाली कृतियाँ रही हैं।
अभिनन्दन ग्रन्थ 'भाषा की भीतरी परतें' के भीतर छह मुख्य परतें हैं। पहली परत में अभिनन्दनीय व्यक्तित्व के आयामों का उद्घाटन किया गया है। वरिष्ठ साहित्यकारों से लेकर सहकर्मियों, साथियों, शोधार्थियों, छात्रों और कार्यकर्ताओं तक ने सच्चे स्नेह, सम्मान और आभार के साथ प्रो. दिलीप सिंह के बहिरंग और अन्तरंग के चित्र संस्मरणों के सहारे उकेरे हैं जो प्रो. सिंह की अनन्य लोकप्रियता और अजातशत्रु छवि का रहस्य खोलते हैं। दूसरी परत में प्रो. दिलीप सिंह के चिन्तन के आयामों को उकेरा गया है। एक भाषाचिन्तक और साहित्य विवेचक के रूप में उनके योगदान को रेखांकित करने का विनम्र प्रयास यहाँ आपको दिखाई देगा। 'भाषा वैचारिकी' से इस ग्रन्थ की तीसरी परत बनी है
जिसमें परत दर परत अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान के उन क्षेत्रों को समोने का प्रयास किया गया है जो प्रो. दिलीप सिंह के रुचिक्षेत्र हैं : यथा समाज भाषिकी, हिन्दी का विस्तार, अनुवाद शास्त्र, शब्द चर्चा, भाषा शिक्षण, साहित्यिक पाठ भाषा तथा परम्परागत और उत्तरआधुनिक भाषा विमर्श । कहा जा सकता है कि आधुनिक भाषाविज्ञान के इन सभी पक्षों पर यहाँ विषय के अधिकारी विद्वानों द्वारा गहन विमर्श किया गया है। चौथी परत में प्रो. दिलीप सिंह से लम्बी अन्तरंग और रोचक बातचीत सँजोई गयी है जो उनके अभिनन्दनीय व्यक्तित्व के अन्तर-बाह्य को तो समझने में सहायक है ही, भाषाविज्ञान की अनेक गुत्थियों पर सहज चिन्तन का दस्तावेज भी है। पाँचवीं परत में हमने प्रो. दिलीप सिंह के विविधतापूर्ण और बहुआयामी भाषावैज्ञानिक लेखन की बानगी के रूप में उनके आठ प्रतिनिधि आलेखों का गुलदस्ता सजाया है। छठी परत 'मधुकरी' में उनके समग्र लेखन से 'डॉ. दिलीप सिंह विचार कोश' के रूप में मधु संचित किया गया है। आप इस ग्रन्थ को पढ़ने और सहेजने लायक पाएँगे।
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