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Bharatvarsh Ka Sanskritik Itihas
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भारतवर्ष का सांस्कृतिक इतिहासवर्ष 327-326 ई.पू., सिन्धु-वितस्ता का सरहदी प्रदेश Bharatvarsh Ka Sanskritik Itihas8220;ईशवीय प्रथम शतके सिन्धु प्रदेशे प्रतिहार वंशीय क्षत्रयाणां राज्यमभवत्।तद्वंशोद्भवेन्पौरस नामकेन नरपतिनासहवक्टरिया प्रदेशागतस्यालक्षेन्द्र महान संग्रामः संजातः।तत्-अस्मिन् महति संग्रामे पौरसः पराजितोलक्षेन्द्र महिपति सैनिकै वंन्दीकृतश्व।पश्चात् स्ववचन चातुय्र्येणालक्षेन्द्रात्पुनः प्राप्त राज्यः स्वनगरं प्रत्यावृतः।अलक्षेन्द्रश्च स्व जन्मभूमि प्रति प्रस्थितः।तदन्नतरं रिपु पराजितो मनस्वी पौरसो महतीं ग्लानिमुपागत च ममार।8221;8220;तद् राजयंच समीप वत्र्तिभिः पुष्टिकरै सम्भूय समासहितं तेषां पुष्टिकराणां वंशजा चिरकालं विन्धु प्रदेशे राज्यमकुर्वन।हत्येतादशोवृतान्त ”स्वाचानामा“ नामक सैन्धवे पुरातनेतिहास ग्रन्थे समुपलब्ध श्रूयते।8221;8211; (सिन्ध-हिन्द का इतिहास, पृष्ठ 142, लेखक नन्द किशोर शर्मा, जैसलमेर)surely उपर्युक्त विवरण प्राचीन हस्तलिखित पुस्तक 8220;भट्टि वंश प्रशस्ति8221; से उद्धृत है। आठवीं सदी में अरबी भाषा में, अरब देश में लिखित चचनामा में भी ऐसा वर्णन है। श्री मधुवन जी व्यास रचित ग्रंथ ”भट्टि वंश प्रशस्ति“ की प्रतिलिपि उनके पौत्र पंडित श्री हरिदत्त जी गोविन्द पाट व्यास ने लेखक नन्द किशोर शर्मा को, दीन दयालजी गोपा भासा एवं मोहन जी वरसा द्वारा, चन्द अन्य पत्रों के साथ दिया था।Bharatvarsh Ka Sanskritik Itihasभारतवंशी उन आर्य-श्रेष्ठ पूर्वजों, जिन्होंने during विक्रम एवं कलि संवत् से सहस्त्रों वर्ष पूर्व एवं पश्चात्, आर्य संस्कृति का ध्वजारोहण, वृहत्तर भारत से भी सुदूर उत्तर पूर्व, दक्षिण पूर्व, उत्तर पश्चिम एवं मध्य एशिया को लाँघ कर, कश्यप सागर के पार तक किया था, उनमें से झुंड के झुंड कतिपय समूहों ने, काल की थाप से अनुप्राणित होकर नये कलेवर में, वापस अपनी मातृभूमि में लौटकर, अथर्ववेद कथित संदेश : 8220;माता भूमिः पुत्रौअहं पृथ्विव्याः8221; को चरितार्थ कर 8220;जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयशी8221; के गौरवशाली इतिहास को गढा था।also एकबद्ध, सम्वृद्ध एवं सर्वशक्तिमान भारत की प्राथमिकता 8216;एक भारत 8211; अजेय भारत8217; ही क्यों? उत्तर बुद्ध के उपदेश में द्रष्टव्य है 8220;और भगवान बुद्ध ने मगध सम्राट् विजय लोलुप, जिज्ञासु अजातशत्रु से कहा8221; :-by the time 8220;जब तक वृज्जियों में पारस्परिक प्रेम और एकता बनी रहेगी, जब तक वे आपस में मंत्रणा कर, सामुहिक रूप से कामों को करेंगे, जब तक वे अपने वृद्ध तथा स्त्रीजनों का आदर करते रहेंगे, आश्रितों पर अत्याचार ��हीं करेंगे, न्याय के पथ पर चलते रहेंगे, जब तक वे आत्मसंयम और मानवता को अपने अन्दर जीवित रखेंगे, तब तक उन्हें कोई भी शक्ति पराजित नहीं कर पायेगी।8221;click >> अन्य सम्बन्धित पुस्तकेंclick >> YouTube कहानियाँRelatedTRUE
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