bharatiya Loknatya
Item Weight | 400GM |
ISBN | 978-8170557081 |
Author | Dr. Vashishtha Narayan Tripathi |
Language | Hindi |
Publisher | Vani Prakashan |
Pages | 142 |
Book Type | Hardbound |
Dimensions | 5.30"x8.50" |
Publishing year | 2001 |
Edition | 1st |

bharatiya Loknatya
भारतीय लोकनाट्यका सम्बन्ध इस महादेश की उस सांस्कृतिक निजता से है जो बहुरंगी होने के बावजूद भीतर से परस्पर घुली-मिली और गतिशील है। संस्कृति और लोकनाट्य की परस्परता परस्पर संवादी और विकासशील है। इसमें जनजीवन का संघर्ष और उसकी आकांक्षाएँ समाहित हैं। लोकनाट्यों को जनविश्वासों और जनरुचियों की गहरी पहचान होती है। इसके अतिरिक्त इनमें प्रभावी प्रेषणीयता और एक प्रकार का सम्मोहन भी होता है। अपनी इन्हीं विशेषताओं के द्वारा भारतीय लोकनाट्य परम्परा ने समकालीन रंगमंच को अधिक कल्पनाशील काव्यात्मक और समृद्ध बनाया है। वस्तुतः समकालीन रंगमंच के सामने सबसे बड़ी चुनौती समकालीन अर्थ को सार्थक और प्रेषणीय रूप में व्यक्त करने की है तथा इस सन्दर्भ मे लोकनाट्यों का पूरा शिल्प उसकी महत्वपूर्ण मदद करता है। अतः लोकनाट्यों को समझना न केवल इस देश की सांस्कृतिक निजता, वैविध्य और एकात्मकता को जानने के लिए जरूरी है बल्कि संस्कृति कर्म के लिए पूरी तरह से प्रतिकूल हो चले इस उत्तर औपनिवेशिक दौर में कला, संस्कृति और रंगमंच को अधिम सक्षम, गतिशील और लोकप्रिय बनाने के लिए भी जरूरी है। भारतीय लोकनाट्य रूपों के स्वरूप और संघर्ष को उसकी ऐतिहासिक प्रक्रिया में समझने के उद्यम से जुड़ी यह पुस्तक इस दिशा में एक जरूरी पहल है।
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