बुन्देलखण्ड विन्ध्य पर्वत की सुरम्य पहाड़ियों और वनों से आच्छादित है। चन्देल राजाओं के शासन के पश्चात् यहाँ पर बुन्देला राजाओं का शासन रहा, इसी कारण इस क्षेत्र का नाम बुन्देलखण्ड पड़ा और इस क्षेत्र में प्रयुक्त बोली (भाषा) को बुन्देली (बुन्देलखण्डी) की संज्ञा से अभिहित किया गया। बुन्देलखण्ड की धरती ऋषि-मुनियों की तपस्यास्थली रही है और सदैव रहेगी। रामकथा के प्रचार-प्रसार में बुन्देलखण्ड का विशेष योगदान है। यदि अवध की धरती पर राम ने जन्म धारण किया तो बुन्देलखण्ड की धरती पर अपने निर्वासन काल के बारह वर्ष तापस वेश में बिताये। आदिकवि बाल्मीकि का आश्रम लालापुर गाँव में पवित्र चित्रकूट से कुछ पहले पहाड़ियों पर स्थित है। गोस्वामी तुलसीदास ने इसी धरती पर चन्दन घिसा था। भरद्वाज ऋषि की आज्ञा शिरोधार्य कर स्वयं भगवान राम ने चित्रकूट को अपना निवास स्थान बनाया। यहीं पर त्रेता युग की सबसे बड़ी धर्म सभा जुटी थी। चित्रकूट की महत्ता सर्वविदित है। बुन्देलखण्ड की धरती को लोग रामकथा की उत्पत्ति का केन्द्र मानते हैं। इसका कारण यह है कि वाल्मीकि और तुलसीदास दोनों ही महाकवियों ने इस धरती पर तपस्या कर रामकथा लिखने की शक्ति प्राप्त की थी। गोस्वामी तुलसीदास की 'रामचरितमानस' की रचना के पूर्व ग्वालियर के कवि विष्णुदास ने संवत् 1499 वि. (सन् 1442 ई.) में वाल्मीकि रामायण के आधार पर बुन्देली मिश्रित ब्रज भाषा में 'रामायन कथा' नामक ग्रन्थ की रचना की। इसमें चौपली, दोहा, छन्द एवं संस्कृत के श्लोक सम्मिलित हैं। विष्णुदास की 'रामायन कथा' तीन काण्डों और कई सर्गों में विभक्त है। इनमें बालकाण्ड, सुन्दरकाण्ड और उत्तरकाण्ड हैं। बालकाण्ड में राम जन्म से लेकर संक्षेप में किष्किन्धाकाण्ड तक की कथा है, सुन्दरकाण्ड में राम राज्याभिषेक तक की कथा तथा उत्तरकाण्ड में राक्षस वंश और राम स्वर्गारोहण की कथा का वर्णन है। 'रामायन कथा' बुन्देलखण्ड में लिखा गया रामचरित्र से सम्बन्धित हिन्दी का पहला महाकाव्य है।