Beticket Musafir
Item Weight | 400 Grams |
ISBN | 978-9394552142 |
Language | Hindi |
Publisher | Eklavya Books |
Pages | 63 |
Book Type | Paperback |
Dimensions | NA |

Beticket Musafir
मैं टिकट नहीं खरीद सकता, लेकिन मेरे लिए इस ट्रेन में चढ़ना बहुत ज़रूरी है...चन्द्रशेखर रोज़गार की तलाश करता है और गाँव वापस जाकर अपनी उस सहपाठी का साथ पाने के सपने देखता है जिससे वह प्रेम करता है। अरुणा की एक चप्पल खो गई है, और उसके पास एक ही जोड़ी चप्पल थीं। बालू की ख्वाहिश है कि उसे अपना जैकहैमर नाम का उपकरण देकर कोई कविताओं की किताब मिल जाए। सादिया और उसका बेटा अपनी हाथ की बनाई गुड़ियों की बगल में लेटे हुए सोच रहे हैं कि न जाने उनका भविष्य क्या होगा। अंजनम्मा मच्छरों द्वारा निरन्तर काटे जाने की तकलीफ को कम करने के लिए एक कहानी गढ़ती है। नागराजू आँखों के बिना रेलवे स्टेशन की अफरातफरी में से अपना रास्ता बनाता है और इस जगत को एक निवेदन करता है।सुबुही जिवानी, रोज़गार, गुजर-बसर और अपनत्व की तलाश में आन्ध्र प्रदेश से कोच्चि के लिए निकले प्रवासियों की छह अनिश्चित यात्राओं की पड़ताल करती हैं।"... प्रवासियों की ज़िन्दगियों पर आधारित, बच्चों के लिए एक अच्छी तरह बुनी हुई किताब। जिवानी की प्रतिभा विवरणों पर खास ध्यान देने में दिखती है। लॉकडाउन (कोविड-19, 2020) के दौरान शहरों से हुए प्रवासियों के पलायन की रोशनी में यह किताब तात्कालिक और समकालीन प्रासंगिकता रखती है।"मैत्री प्रसाद - अलयम्मा पोस्ट डॉक्टोरल फेलो, ग्रैजुएट सेंटर, सिटी यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू यॉर्क
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