Bavan Nadiyaon Ka Sangam
| Item Weight | 293 Grams |
| ISBN | 978-8177211146 |
| Author | Sailesh Matiyani |
| Language | Hindi |
| Publisher | Prabhat Prakashan |
| Book Type | Hardbound |
| Publishing year | 2010 |
| Edition | 1st |
| Return Policy | 5 days Return and Exchange |
Bavan Nadiyaon Ka Sangam
“हमें चाय की दुकान पर बैठे-बैठे सुनाई देता रहा।” “कहती थीं कि...” “बड़ी औरत, बड़ी बातें कहती हैं।” “सुनना नहीं चाहते हो?” “हाथी के हगे को उँगली से दिखाने की जरूरत नहीं होती, रामेसर भाई!” “बहुत तेज हो, यार! हम तुम्हें ऐसा पेट का दड़ियल करके जाने नहीं थे।” “देखो रामेसर, केले का गाछ लगता है न? पहले पत्ते और फिर फली फूटते वक्त लगता है कि नहीं? और फिर फूल, फिर केले की घड़ी करते-करते कितना वक्त लगता है? मगर जब लकड़ी जैसे सख्त केले को पुआल के भीतर रखो तो सिर्फ दो-चार दिन में नरम पड़ जाता है कि नहीं? आदमी को भी बस, तैयार होते वक्त लगता है, पकते नहीं।” “रहीमन बहन के पकाए हो?” “हाँ, इतने ज्यादा पक गए, कीड़े पड़ने की नौबत आ गई!” रामेसर कुछ कहना चाहता था कि लगातार बजते भोंपू की आवाज सुनके रुक जाना पड़ा। पलटे, दोनों ने देखा कि पदारथ भाई हैं। अकेले थे, जीप खुद ही ड्राइव कर रहे थे। दोनों ने सलाम किया तो हँसते बोले, “क्यों, इधर उलटी दिशा में?...” “बस, यों ही, साहब जी! जरा पिलाजा सनीमा देखने का जी था।...”—इसी उपन्यास से प्रसिद्ध उपन्यासकार शैलेश मटियानी की कलम से नि:सृत यह उपन्यास संपूर्ण भारतीय समाज का ताना-बाना एवं उसमें पैठी हुई कुरीतियों, विडंबनाओं तथा विषमताओं का कच्चा चिट्ठा पेश करता है। अत्यंत मनोरंजक एवं पठनीय उपन्यास।
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