Banswara Rajya ka Itihas
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| Item Weight | 400 Grams |
| ISBN | NA |
| Author | ????????? ???????? ???????? ??? |
| Language | Hindi |
| Publisher | Rajasthani Granthagar |
| Pages | NA |
| Book Type | Paperback |
| Publishing year | 2018 |
| Return Policy | 5 days Return and Exchange |
Banswara Rajya ka Itihas
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बांसवाड़ा राज्य का इतिहास : दक्षिणी राजस्थान के पहाड़ी भू-भाग में स्थित बांसवाड़ा राज्य का देश के मध्यकालीन इतिहास में उत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। तेरहवीं शताब्दी के मध्य मेवाड़ के अधिपति महाराणा सामंत सिंह ने वागड़ प्रदेश में गुहिलवंशी राज्य की स्थापना की थी। संवत् 1518 के आस-पास अनेक घटनाओं के परिणामस्वरूप बांसवाड़ा राज्य का स्वतंत्र अस्तित्व बना किन्तु अनेक कारणों से उसकी ऐतिहासिक सामग्री की प्रामाणिक खोज नहीं की गई। आवागमन की असुविधाओं एवं राजनीतिक हलचलों के प्रभाववश इस राज्य का इतिहास अनेक वर्षों तक अंधकारग्रस्त रहा। इस राज्य के शासकों तथा निवासियों ने भी उसे प्रकाश में लाने का कोई उल्लेखनीय प्रयास नहीं किया। ‘वीर विनोद’ में उसका सामान्य उल्लेख अवश्य हुआ है किन्तु ज्ञात तथा अज्ञात सामग्री के यत्र-तत्र बिखरे हुए होने के कारण उसका क्रमबद्ध इतिहास नहीं लिखा गया।प्रस्तुत ग्रंथ बांसवाड़ा राज्य के गौरवशाली इतिहास-लेखन की दिशा में एक मौलिक प्रयास है। इसके विद्वान् लेखक ने उस राज्य की भौगोलिक स्थिति का विस्तृत विवरण देने के पश्चात् सर्वप्रथम उस पर गुहिलवंश के अधिकार के पूर्व की परिस्थितियों का सामान्य लेखा-जोखा किया है। तदुपरांत सामंतसिंह के शासनकाल से लेकर आज तक के प्रमुख घटनाक्रमों के संदर्भ में महारावल जगमाल, समरसिंह, कुशलसिं���, उम्मेदसिंह, भवानीसिंह और महारावल सर पृथ्वीसिंह के शासनकाल की उपलब्धियों की प्रामाणिक सामग्री जुटाई गई है। ऐसा करते समय लेखक के पुरातत्व विज्ञान से सम्बन्धित शिलालेखों, ताम्रपत्रों, ऐतिहासिक ख्यातों, प्राचीन वंशावलियों, दानपत्रों, बहीखातों, प्राचीन राजकीय सनदों, फरमानों, बड़वे भाटों, राणीमंगों एवम् अन्य व्यक्तियों द्वारा लिखित दस्तावेजों का भी प्रचुर आधार लिया है। संस्कृत, हिन्दी, फारसी, उर्दू और अंग्रेजी आदि विभिन्न भाषाओं में लिखित पुस्तकें भी इस कार्य के सम्पादन में उसके लिए सहायक सिद्ध हुई हैं। ग्रंथ का परिशिष्ट मुख्यतः गुहिल से लगाकर वागड़ प्रदेश के शासकों की क्रमबद्ध वंशावली के साथ-साथ उन विक्रम संवतों से भी उपवृंहित है, जिनमें इस राज्य की प्रमुख घटनाएँ घटित हुई थीं। परिशिष्ट का अंतिम भाग तथा उसकी ‘अनुक्रमणिका’ लेखक के शोधपूर्ण अध्यवसाय तथा इतिहासप्रेम के द्योतक कहे जा सकते हैं। कुल मिलाकर यह ग्रंथ सभी दृष्टियों से संग्रहणीय, पठनीय एवं ऐतिहासिक तथ्यों के ‘विचारणीय संदर्भों से ओत-प्रोत’ है, जिसमें लेखक की शोधप्रज्ञा प्रदर्शित हुई है।RelatedTRUE
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