Atikraman ki Antaryatra Gyan Ki Samiksha Ka Ek Prayas
Item Weight | 700GM |
ISBN | 978-9350728307 |
Author | Prasanna Kumar Choudhary |
Language | Hindi |
Publisher | Vani Prakashan |
Pages | 392 |
Book Type | Hardbound |
Dimensions | 5.30"x8.50" |
Publishing year | 2015 |
Edition | 1st |

Atikraman ki Antaryatra Gyan Ki Samiksha Ka Ek Prayas
सीमाओं का अतिक्रमण मानव जाति का स्वभाव है। दरअसल, सीमाएँ उसे हमेशा अतिक्रमण का निमंत्रण देती रहती हैं और मनुष्य यह निमंत्रण सहर्ष स्वीकारता रहता है।
हाथों की मुक्ति और मस्तिष्क के विकास ने कभी मानव जाति के आगमन का आख्यान लिखा था। क्या हाथ और मस्तिष्क का अतिक्रमण उसके प्रस्थान का आलेख लिखेगा ? जनों की संस्कृति प्रकृति का अतिक्रमण थी, कृषि-संस्कृति जनों की संस्कृति का, और औद्योगिक संस्कृति कृषि-संस्कृति का। इस औद्योगिक संस्कृति के अतिक्रमण की शक्ल-सूरत क्या होगी। अगर यह अतिक्रमण जारी है तो वह किस रूप में सम्पन्न हो रहा है?
यह कृति अतिक्रमण की इसी अंतर्यात्रा की, इस अंतर्यात्रा के अंतर्द्वद्वों और चुनौतियों की रोचक गाथा है। इसी गाथा की रचना के दौरान यह पुस्तक कई ज्ञानानुशासनों (मानवशास्त्र, दर्शन, इतिहास, समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र) की प्रचलित प्रस्थापनाओं की जाँच-परख भी करती चलती है, और साथ में परिवर्तित स्थितियों के अनुरूप सामाजिक रूप से उपयोगी नयी अवधारणाएँ रचने की बौद्धिक चुनौती भी स्वीकार करती है ।
कोई भी बौद्धिक पीढ़ी अपने समय के कार्यभार से मुँह नहीं मोड़ सकती। अतीत के महान विचारक और अतीत के महान कार्य हमारे संदर्भ-बिदुओं की भूमिका निभा सकते हैं, हमारे प्रेरणास्त्रोत हो सकते हैं, लेकिन हमें इस ज़िम्मेदारी से मुक्त नहीं कर सकते। यह पुस्तक इसी ज़िम्मेदारी के निर्वाह की दिशा में एक विनम्र प्रयास है ।
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