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About Book

अस्थान ठडेसुरी बाबा का, सत्संग मण्डली का और प्रवचन कहने-सुनने वालों का। साधुओं के जीवन पर राजनारायण की खोज उनके लेखन की शुरुआत से ही रही है, क्योंकि उनका सूक्ष्म अध्ययन-अवलोकन किये बिना असली व नकली साधुओं पर, अस्थान बनाने की परम्परा और प्रकृति पर ऐसा असरदार नहीं लिख सकते थे। उपन्यास में धर्म, बाजार और कॉर्पोरेट के जैसे दृश्य राजनारायण यहाँ दिखाते हैं, हम सब ऐसे ही कुछ देखने के अभ्यस्त हैं। अभ्यस्त हम होते नहीं किये जाते हैं, यह बात उपन्यास बार-बार उठाता है। तभी तो आज तपस्वी ऋषि-मुनियों को अतीत में धकेलकर सुविधाभोगी आधुनिक बाबाओं का सम्मान समाज में जाग उठा है।

यहाँ लेखक युवक धरनीधर की कहानी लिख रहा है, जिसे अपनी पुरानी जिन्दगी बार-बार याद आती है कि पढ़े-लिखे युवक के सामने कौन सी स्थितियाँ आ जाती हैं कि वह सीधा और टेढ़ा-मेढ़ा रास्ता ही नहीं, सर्पीली गलियों में फँसकर भूलता-भटकता झूठा वेष बनाकर कोई फर्जी मनमुखी बाबा बन अस्थान के दरवाजे पर आ खड़ा होता है। अगर जोगिया कपड़े और कमण्डल लेकर निकल जाए तो वह भीख तो माँग सकता है, लेकिन बिना प्रपंच किये, बिना अस्थान बनाये, उसको स्वामी नहीं माना जा सकता। उधर घर से परेशान होकर वैरागी हुए ओमदास को कितने-कितने तप करने के लिए कहाँ के आश्रमों में शरण लेनी पड़ती है, उपन्यास इन बातों और फर्जी अस्थान आश्रमों की असलियतों पर खुलकर बोलता है। उन सम्प्रदायहीन आधुनिक सुविधाभोगी बाबाओं की असलियतों का राज़ समाज में खुल तो चुका है, लेकिन वे पेचदार तरकीबें क्या हैं, राजनारायण ने पेश कर दी हैं और यह भी कि आज के वैज्ञानिक युग में हमारे देश को किस कदर अन्धविश्वासों, कर्मकाण्डों और बाबाओं ने घेर लिया है।

लेखक ने यहाँ ब्रज और बुन्देलखण्ड के लोकजीवन से जुड़े त्योहार और गीत चुने हैं, उनकी लोकगीतों पर अच्छी पकड़ है। स्त्रियाँ गाने-बजाने और नाचने के लिए कीर्तनों, कथाओं और सत्संगों से पुरुषों के मुकाबले बड़ी संख्या में जुड़ती हैं और ये स्त्री-समूह बाबाओं को स्थापित करने में खासे सहायक होते हैं। सैकड़ों भक्तिनें उनकी सेवाओं में लग जाती हैं। बात यह भी है कि सन्त और भगवान नारी के लिए पर-पुरुष नहीं माने गये। अत: यहाँ उनको बाहर निकलने का अवसर और आजादी मिलती है।

राजनारायण ने यहाँ ऐसे कटु सत्यों की स्थापना की है जिनको लोग जानते तो हैं, मगर मानते नहीं। यह उपन्यास अपनी रवानी में आपको अपने साथ-साथ लिये चलेगा यानी अपना साथ छोड़ने नहीं देगा। राजनारायण की शोधवृत्ति और कलम यहाँ अपना लोहा मनवाती है।

About Author

राजनारायण बोहरे

राजनारायण बोहरे वागेश्वरी सम्मान, साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश से सम्मानित रचनाकार, प्रख्यात कहानीकार व उपन्यासकार हैं। इन्होंने बच्चों के लिए भी लिखा है। साथ ही इनका आलोचनात्मक लेखन भी प्रशंसनीय है। इज्जत आबरू, हादसा व मुखबिर जैसी रचनाओं के बाद अस्थान इनकी महत्त्वपूर्ण रचना सिद्ध होगी ऐसी हमें आशा है।

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