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Asanyas Hindu Sanskriti Kuchh Vishay Kuchh Vyakhyayen
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प्रोफेसर त्रिलोकी नाथ मदन द्वारा रचित यह विख्यात पुस्तक हिंदुओं के गृहस्थ जीवन के बारे में है। सामाजिक मानवशास्त्र की इस रचना के अनुसार संन्यास हिन्दू धर्म का सबसे प्रसिद्ध सांस्कृतिक आदर्श जरूर है, लेकिन गृहस्थ की भाषा में अनूदित होकर यही संन्यास सांसारिक बंधनों में जीते हुए आत्मनियंत्रण और विरक्ति का भाव ग्रहण कर लेता है। इस लिहाज से ये सांसारिक संबंध अपने-आप में बुरे नहीं हैं। मनुष्य को सिर्फ इन संबंधों का दास होने से बचना है। उसका लक्ष्य है संपूर्ण भोग-विलास और संपूर्ण त्याग के बीच के बिंदु की तलाश करना।
गृहस्थ की परिभाषा में सजीवन एक संयमित सांसारिक जीवन है। पुस्तक के सभी अध्याय इसी विषय वस्तु का विस्तार हैं। सबसे पहले गार्हस्थ्य संबंधी विचारधारा की व्याख्या की गई है, जिसमें धनधान्य से परिपूर्ण उत्तम जीवन और साथ ही मानसिक वैराग्य का वर्णन है। दूसरे अध्याय में गृहस्थ की जीवन-शैली में मांगलिकता और शुद्धता का महत्त्व आँका गया है। तीसरे अध्याय में वैराग्य और श्रृंगारिकता के बीच संतुलन बनाने और दोनों के द्वैध से मुक्त होने के प्रयास की चर्चा है। चौथा अध्याय शिव (उत्तम) की सत्ता स्वीकारता है और कामनाओं को सदाचरण के अधीन रखने का समर्थन करता है। पाँचवें अध्याय के मुताबिक उत्तम जीवन की सर्वोत्कृष्ट साक्षी उत्तम मृत्यु है, जिसका व्यक्ति को निर्भय होकर वरण करना चाहिए।
यह परंपरा हमें बताती है कि उत्तम जीवन की परिभाषाएँ समय के साथ बदलती हैं, नये नैतिक मूल्यों का आविर्भाव होता है और उनके साथ नई चिंताएँ जन्म लेती हैं। इस प्रकार आधुनिक भारतीय को पश्चिम प्रदत्त धर्मनिरपेक्षता, विकास और लोकतंत्र के विचारों के संदर्भमें अपने जीवन को परिभाषित करने की जरूरत पड़ती है। लेकिन एक संस्कृति की परंपराओं का निर्वाह दूसरी संस्कृति में आसानी से नहीं होता। आधुनिक हिंदू को इसीलिए खंडित मानस का तनाव झेलना पड़ता है। हिंदू मानस की इन्हीं मुश्किलों के चित्रण के साथ पुस्तक समाप्त होती है।

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