Aprajit : Shilpkar Hima Kaul
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Item Weight | 0.3 |
ISBN | 978-9381623930 |
Author | Rajaram Bhadu |
Language | Hindi |
Publisher | Sambhavna Prakashan |
Pages | 128 |
Edition | First |

Aprajit : Shilpkar Hima Kaul
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मैंने हिमा कौल की अंतरात्मा का जिक्र अपराजित की तरह किया है। उससे मेरा तात्पर्य हैµएक अटल पराक्रम वाला व्यक्ति जिसने जीवन भर बीमारी, अभावों और नव-धनाड्यों की कठोर अवमानना से जूझते, भुला दिये गये निर्धनों की तकलीफ़ों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अपनी पीड़ा और वेदना पर विजय पा ली है।
हिमा कौल किसके लिए काम कर रही हैं? वह अपने मखमली घर में नाश्ते के साथ फ्रेंच वाइन का रस लेती प्रदर्शन-प्रिय उच्च वर्ग की महिलाओं के लिए काम नहीं कर रही हैं। हिमा कौल अपने अंतःकरण, अपने हृदय के कंपन और अपनी आत्मा के गौरवपूर्ण समर्पण के लिए काम करती हैं।
यह भयानक समय है जिसमें वह पैदा हुई हैं। उन्होंने अपना पूरा रचनात्मक जीवन अपने दिनों की वीभत्सता के गवाह के रूप में जिया है। आप जो अपने सामने देख रहे हैं, वे पीड़ादायक शिल्प हैं, फिर भी ऊष्मा, कोमलता और मानवता से स्पंदित हैं।
इब्राहिम अलकाज़ी
रज़ा फ़ाउण्डेशन के जीवनी प्रोजेक्ट के अन्तर्गत ऐसे व्यक्तियों की जीवनियों को भी शामिल किया गया है जिन्हें उनके मूल्यवान् अवदान के बावजूद बिसरा-सा दिया गया है पर जिनके जीवन और अवदान पर ध्यान दिया जाना चाहिये था। आलोचक राजाराम भादू ने इसी क्रम में शिल्पकार हिमा कौल की यह जीवनी लिखी है। यह हिमा कौल को एक तरह से कला की दुनिया में फिर सजीव करने जैसा है। हमें यह जीवनी प्रकाशित करते हुए प्रसन्नता है कि इस तरह अलक्षित लक्षित के अहाते में आ रहा है।
अशोक वाजपेयी
हिमा कौल किसके लिए काम कर रही हैं? वह अपने मखमली घर में नाश्ते के साथ फ्रेंच वाइन का रस लेती प्रदर्शन-प्रिय उच्च वर्ग की महिलाओं के लिए काम नहीं कर रही हैं। हिमा कौल अपने अंतःकरण, अपने हृदय के कंपन और अपनी आत्मा के गौरवपूर्ण समर्पण के लिए काम करती हैं।
यह भयानक समय है जिसमें वह पैदा हुई हैं। उन्होंने अपना पूरा रचनात्मक जीवन अपने दिनों की वीभत्सता के गवाह के रूप में जिया है। आप जो अपने सामने देख रहे हैं, वे पीड़ादायक शिल्प हैं, फिर भी ऊष्मा, कोमलता और मानवता से स्पंदित हैं।
इब्राहिम अलकाज़ी
रज़ा फ़ाउण्डेशन के जीवनी प्रोजेक्ट के अन्तर्गत ऐसे व्यक्तियों की जीवनियों को भी शामिल किया गया है जिन्हें उनके मूल्यवान् अवदान के बावजूद बिसरा-सा दिया गया है पर जिनके जीवन और अवदान पर ध्यान दिया जाना चाहिये था। आलोचक राजाराम भादू ने इसी क्रम में शिल्पकार हिमा कौल की यह जीवनी लिखी है। यह हिमा कौल को एक तरह से कला की दुनिया में फिर सजीव करने जैसा है। हमें यह जीवनी प्रकाशित करते हुए प्रसन्नता है कि इस तरह अलक्षित लक्षित के अहाते में आ रहा है।
अशोक वाजपेयी
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