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AGEYA RACHNA SAGAR
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अज्ञेय रचना सागरसच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' के सृजन और चिंतन से संपन्न यह संचयन उनके सृजन के प्रति नई उत्सुकता और जिज्ञासा जगाने का प्रयत्‍न है। साहित्य की शायद ही कोई विधा हो, जिसमें कविवर रवींद्रनाथ टैगोर की तरह अज्ञेय ने नए रचना-प्रयोगों से नए प्रतिमान स्थापित न किए हों। हिंदी में उनसे पहले और उनके बाद ऐसा कोई साहित्यकार नहीं है, जिसने इतनी सारी विधाओं में इस ढंग की अगुआई की हो। भारतीय साहित्य में अज्ञेयजी अपने समय के साहित्य-नायक रहे हैं और विद्रोही स्वभाव के स्वामी होने के कारण भाषा, साहित्य, पत्रकारिता एवं संस्कृति के संबंध में पारंपरिक अवधारणाओं को ध्वंस करते हुए उन्होंने नए चिंतन की नींव रखी। हिंदी साहित्य में किसी विचारक ने साहित्य संबंधी इतनी बहसें नहीं उठाईं जितनी अज्ञेय ने।हमारी गुलाम मानसिकता को अज्ञेय का स्वाधीन चिंतन चुनौती देता रहा है। इसलिए उन पर न जाने कितने प्रहार हुए। लेकिन अज्ञेय अविचल भाव से प्रहारों-आक्षेपों, निराधार आरोपों को झेलते हुए नई राहों का अन्वेषण करते रहे। आज अज्ञेय को पढ़ने का अर्थ है—साहित्य की नई सोच से साक्षात्कार करना, उनके अस्तित्व से हिंदी में नए ढंग से प्रथम बार बाल-बोध पर चिंतन तथा आलोचना के क्षेत्र में सर्जनात्मक आलोचना का नवोन्मेष हुआ और साहित्यालोचन का बासीपन समाप्‍त हुआ। अज्ञेयजी ने 'स्वाधीनता' को चरम मूल्य स्वीकार किया है। उनका समस्त लेखन स्वातंत्र्य की तलाश के विभिन्न रूपों का दस्तावेज है। अज्ञेय के विशाल रचना-सागर के कुछ विशिष्‍ट मोती और सीप इस संचयन में संकलित हैं।______________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रम भूमिकामुझे आज हँसना चाहिए — Pgs. १२८अज्ञेय : सन्नाटे का छंद — Pgs. १३देखता—अगर देखता — Pgs. १२९काव्यचक्रांत शिला-२७ — Pgs. १३१आज तुम शद न दो — Pgs. ५३वसीयत — Pgs. १३१शद और सत्य — Pgs. ५४मरुथल में देवता — Pgs. १३२यह दीप अकेला — Pgs. ५४बना दे, चितेरे — Pgs. १३२पगली आलोक-किरण — Pgs. ५५असाध्य वीणा — Pgs. १३४दीप पत्थर का — Pgs. ५६नंदा देवी — Pgs. १४५नया कवि : आत्म-स्वीकार — Pgs. ५६सोन-मछली — Pgs. १४७तुम कदाचित् न भी जानो — Pgs. ५७सम्राज्ञी का नैवेद्य-दान* — Pgs. १४७मुझे तीन दो शद — Pgs. ५८नाच — Pgs. १४८हवाई यात्रा : ऊँची उड़ान — Pgs. ५८चीनी चाय पीते हुए — Pgs. १५०सूर्यास्त — Pgs. ५९गूँगे — Pgs. १५१पश्चिम के समूह-जन — Pgs. ५९छंद — Pgs. १५१योंकि तुम हो — Pgs. ६०डायरी (अंत: प्रक्रियाएँ)विपर्यय — Pgs. ६१पूर्व-पीठिका — Pgs. १५५भीतर जागा दाता — Pgs. ६१कहानियाँचक्रांत शिला-१ — Pgs. ६३गैंग्रीन या रोज — Pgs. १६१चक्रांत शिला-१० — Pgs. ६४हीली-बोन् की बाखें — Pgs. १७१चक्रांत शिला-२४ — Pgs. ६५मेजर चौधरी की वापसी — Pgs. १७९चक्रांत शिला-१६ — Pgs. ६६विवेक से बढ़कर — Pgs. १८८पहेली — Pgs. ६७जिजीविषा — Pgs. २०३रूप-केकी — Pgs. ६८रमंते तत्र देवता: — Pgs. २१३एक दिन चुक जाएगी ही बात — Pgs. ६८उपन्यासकलगी बाजरे की — Pgs. ६९शेखर : एक जीवनी (अंश)—पुरुष और परिस्थिति — Pgs. २२३नदी के द्वीप — Pgs. ७०साहित्यिक संस्मरणवहाँ रात — Pgs. ७२राष्ट्रकवि — Pgs. २६५उड़ चल, हारिल — Pgs. ७३उपन्यास सम्राट् — Pgs. २७७मैं वह धनु हूँ — Pgs. ७४एक भारतीय आत्मा : एक चुनौती — Pgs. २९४कितनी शांति! कितनी शांति! — Pgs. ७५निबन्धपानी बरसा — Pgs. ७७कविता : श्रव्य से पठ्य तक — Pgs. ३०५हवाएँ चैत की — Pgs. ७७परिदृष्टि : प्रतिदृष्टि — Pgs. ३१९लौटे यात्री का वतव्य — Pgs. ७८अर्थ-प्रतिपत्ति और अर्थ-संप्रेषण — Pgs. ३२३सागर पर भोर — Pgs. ८०नई कविता : प्रयोग के आयाम — Pgs. ३३२हवाई अड्डे पर विदा — Pgs. ८०काव्य का सत्य और कवि का वतव्य — Pgs. ३३९मैंने देखा, एक बूँद — Pgs. ८०काल का डमरु-नाद — Pgs. ३४८जन्म-दिवस — Pgs. ८१लेखक और परिवेश — Pgs. ३५८चिड़िया की कहानी — Pgs. ८१ललित-निबंधधूप — Pgs. ८१पुच्छल तारे के साथ-साथ — Pgs. ३७३न दो प्यार — Pgs. ८२बड़ी बुआ — Pgs. ३७८बाँगर और खादर — Pgs. ८२पहला नाटक — Pgs. ३८४हिरोशिमा — Pgs. ८४छाया का जंगल — Pgs. ३८८सरस्वती-पुत्र — Pgs. ८५बरामदे में — Pgs. ३९५मैं वहाँ हूँ — Pgs. ८६मन बेईमान हो गया — Pgs. ३९९टेसू — Pgs. ८९बरसात — Pgs. ४०३साँप — Pgs. ९०एक अंतराल — Pgs. ४०८योगफल — Pgs. ९०कौन गली गए स्याम — Pgs. ४१२सर्जना के क्षण — Pgs. ९०यात्रा-वृ अंत:सलिला — Pgs. ९१एक बूँद सहसा उछली (विदेश यात्रा) — Pgs. ४२५बड़े शहर का एक साक्षात्कार — Pgs. ९२यूरोप की अमरावती : रोमा — Pgs. ४२५मुझे आज हँसना चाहिए — Pgs. ९४विद्रोह की परंपरा में — Pgs. ४३६जो पुल बनाएँगे — Pgs. ९६यूरोप की पुष्पावती : फिरेंजे — Pgs. ४४१जरा व्याध — Pgs. ९६खुदा के मसखरे के घर : असीसी — Pgs. ४५०हँसती रहने देना — Pgs. ९७यूरोप की छत पर : स्विट्जरलैंड — Pgs. ४५६नदी की बाँक पर छाया — Pgs. ९८एक यूरोपीय चिंतक से भेंट — Pgs. ४६१कदंब-कालिंदी — Pgs. ९९तो यह पेरिस है! — Pgs. ४७२अलाव — Pgs. १००नाटकके सारस अकेले — Pgs. १००उत्तर प्रियदर्शी (गीति-नाट्य) — Pgs. ४८३कौन खोले द्वार — Pgs. १०१अनुवादकि हम नहीं रहेंगे — Pgs. १०१सात कविताएँ : हाइनरिश हाइने — Pgs. ४८७पेरियार१ — Pgs. १०२अज्ञेय के नाम पत्रपानी बरसा — Pgs. १०३राय कृष्णदास — Pgs. ४९५जन्म-दिवस — Pgs. १०४बनारसीदास चतुर्वेदी — Pgs. ४९६किरण मर जाएगी — Pgs. १०५तोशिओ तानाका — Pgs. ४९७पराजय है याद — Pgs. १०६आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी — Pgs. ४९९पावस-प्रात, शिलङ् — Pgs. १०६शमशेर बहादुर सिंह — Pgs. ४९९दूर्वाचल — Pgs. १०७ग.मा. मुतिबोध — Pgs. ५००शरणार्थी-6 : समानांतर साँप — Pgs. १०७विजयदेव नारायण साही — Pgs. ५०१कतकी पूनो — Pgs. १०८भवानी प्रसाद मिश्र — Pgs. ५०३'अकेली न जैयो राधे जमुना के तीर' — Pgs. १०८फणीश्वरनाथ रेणु — Pgs. ५०३पहेली — Pgs. ११०अज्ञेय के दो पत्रऔद्योगिक बस्ती — Pgs. ११०धर्मवीर भारती के नाम — Pgs. ५०९सांध्य तारा — Pgs. १११राजेंद्र मिश्र के नाम — Pgs. ५१०सागर पर भोर — Pgs. १११साक्षात्कारमानव अकेला — Pgs. ११२साक्षात्कार-१मैंने देखा, एक बूँद — Pgs. ११२अज्ञेय द्वारा अमृतलाल नागर से — Pgs. ५१५वसंत — Pgs. ११३साक्षात्कार-२अंधकार में दीप — Pgs. ११३अज्ञेय : क्रांतिकारियों के साथ बीता बचपन — Pgs. ५५२टेर रहा सागर — Pgs. ११४साक्षात्कार-३एक दिन चुक जाएगी ही बात — Pgs. ११५अज्ञेय से 'अज्ञेय' तक की यात्रा (त्रिलोक दीप से बातचीत) — Pgs. ५६१सम्पराय — Pgs. ११५परिशिष्टनाता-रिश्ता — Pgs. ११९परिशिष्ट-१ना जाने केहि भेस — Pgs. ११९अज्ञेय का जीवन वृ — Pgs. ५७३देहरी — Pgs. १२०परिशिष्ट-२वासुदेव प्याला — Pgs. १२१कृतित्व — Pgs. ५७८जरा व्याध — Pgs. १२२परिशिष्ट-३जरा व्याध — Pgs. १२३सहायक सामग्री — Pgs. ५८३देवासुर — Pgs. १२५

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