71 KE ANAM YODDHA
Publisher | Bodhi Prakashan |
Pages | - |
ISBN | NA |
Item Weight | 0.4 kg |
Dimensions | NA |
Edition | 1st |
71 KE ANAM YODDHA
यह पुस्तक सन् 1971 में हुए बांग्लादेश के मुक्ति-संग्राम में प्राणोत्सर्ग करने वाले वीर शहीदों या योद्धाओं की विवरणिका नहीं है, यह लेखा-जोखा है उन योद्धाओं के भीतर घटित युद्ध का जो हर पल उन्हें लडऩा और जीतना होता है। युद्ध के मोर्चे पर एक सैनिक केवल अपने शारीरिक सामथ्र्य एवं प्राप्त कौशल भर से ही नहीं लड़ता, वह लड़ता है अपने भीतर की महाशक्ति को संजोते हुए। अपने अनेक अन्तद्र्वन्द्वों से जीतते हुए, अपने घर परिवार समाज और निज के जीवन की आकांक्षाओं एवं स्मृतियों से जूझकर उन्हें पछाड़ते हुए। समस्त जागतिक आकर्षणों से मुक्त होकर आत्मोत्सर्ग के लिए तत्पर होना, जितना सहज कहने को है, करने में उतना नहीं। युद्ध के समानांतर सैनिक का एक दूसरा युद्ध चलता है विषम परिस्थितियों से। बहुत बार बिना खाये-पिये अपनी शारीरिक आवश्यकताओं को नियंत्रित करते हुए अभ्यास और कड़े अनुशासन के बल पर पहले स्वयं से जीतना होता है उसके बाद शत्रु से। यह पुस्तक एक सैनिक के आत्मीय संस्मरणों की गाथा है। युद्ध के विवरण सिर्फ उतने भर हैं जितने उसकी जीवनचर्या को बताने के लिए अनिवार्य हैं। इसे मुक्तिसंग्राम के इतिहास या सेना के कार्यकलापों के वर्णन की तरह नहीं बल्कि युद्धकाल में एक समर्पित सैनिक के मनोभावों के विस्तार की तरह पढ़ा जाना चाहिए। किस्सागोई की रोचक भाषा और दैनिक जीवन के छोटे-छोटे किस्से इस पुस्तक की पठनीयता के लिए पर्याप्त हैं।
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