18vi Shatabdi mein Rajasthan ka Samajik evam Aarthik Jivan (Marwar)
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Author | Vimlesh Rathore |
Language | Hindi |
Publisher | Rajasthani Granthaghar |
Pages | NA |
ISBN | 978-8193423882 |
Book Type | Paperback |
Item Weight | 0.4 kg |
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18vi Shatabdi mein Rajasthan ka Samajik evam Aarthik Jivan (Marwar)
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18वीं शताब्दी में राजस्थान का सामाजिक एवं आर्थिक जीवन (मारवाड़ के संदर्भ में) : प्रस्तुत पुस्तक के लेखन हेतु पुरालेखीय सामग्री मारवाड़ की ख्यातों, विगत व तवारीखों के साथ ही मेहरानगढ़ दुर्ग में स्थित महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश शोध केन्द्र में संग्रहित दस्तूर बहियों, विवाह बहियों, जवाहरखाना की बहियों, मिन्ट की बहियों, कपड़ों के कोठार की बहियों, सनद परवाना बहियों, हकीकत बहियों, हथ बहियों, औहदा बहियों आदि का उपयोग किया गया है। साथ ही अजितोदय8217;, 8216;अजीतचरित्र8217;, 8216;महाराजा अजीतसिंह जी री दवावैत8217;, अजीतविलास8217;, 8216;अभयविलास8217;, 8216;सूरजप्रकाश8217;, 8216;राजरूपक8217;, 8216;मुंदियाड़ री ख्यात8217;, 8216;मारवाड़ री ख्यात8217;, 8216;बांकीदास री ख्यात8217; आदि समकालीन ग्रंथों का भी अध्ययन किया गया है।प्रस्तुत पुस्तक की सामग्री विषयानुसार आठ प्रकरणों में प्रस्तावित है। सामाजिक जीवन के अध्ययन के पूर्व मारवाड़ के भौगोलिक पर्यावरण, तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों, मारवाड़ में मराठों के प्रवेश व प्रभाव तथा सामन्त व्यवस्था के स्वरूप पर संक्षिप्त प्रकाश डालते हुए यह स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है कि किस प्रकार आलोच्यकालीन मारवाड़ के प्रारंभिक काल में महाराजा अजीतसिंहजी व उनके स्वामीभक्त राठौड़ों के निरन्तर संघर्ष के पश्चात् भी धर्मान्ध औरंगजेब ने महाराजा अजीतसिंहजी का मारवाड़ पर आधिपत्य स्वीकार नहीं किया। अन्ततः औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् ही अजीतसिंह को मारवाड़ की सत्ता प्राप्त हुई। पतनोन्मुख मुगल साम्राज्य की कमजोरी का लाभ उठाकर मराठों ने उत्तर भारत में प्रसार की नीति अपनाई। इस नीति के अन्तर्गत राजपूताना की अन्य रियासतों के साथ ही मारवाड़ भी सम्मिलित था। इस बिन्दु में यह स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है कि किस प्रकार मराठों की धनलोलुपता ने मारवाड़ को आर्थिक रूप से पंगु बना दिया। साथ ही राजा व सामन्तों में परस्पर सहयोग की उपयोगी अवधारणा 8216;सामन्त व्यवस्था8217; पर प्रकाश डाला गया है कि किस प्रकार प्रारंभिक काल के आज्ञानुकारी व स्वामिभक्त सामन्तों के वंशज कालान्तर में निहित स्वार्थों के वशीभूत होकर अपनी शक्ति का दुरुपयोग अपने स्वामी की शक्ति को कमजोर करने में करने लगे। मारवाड़ एक धर्मप्राण प्रदेश रहा है। यहाँ धार्मिक जीवन धर्म के विभिन्न मतों शैव, शाक्त व वैष्णव मत के रूप में प्राणवान् रहा है। जैन व इस्लाम धर्म के अनुयायी भी अपने-अपने धर्मों में निर्बाध निरत थे। रामस्नेही, नाथ, साध, निम्बार्क, वल्लभ, विश्नोई, दादूपंथ, कबीर पंथ इत्यादि विभिन्न सम्प्रदायों के प्रणेताओं तथा विचारकों ने भी ��श्वर प्राप्ति के आडम्बरहीन सुगम मार्ग को बताकर जनता को प्रभावित व प्रेरित किया। साथ ही लोकमानस पर लोकदेवताओं के प्रभाव को रेखांकित किया है। प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में व्यक्तित्व के उत्थान के निमित्त संयोजित संस्कारों का अध्ययनकालीन मारवाड़ में क्या स्वरूप था तथा उनकी अनुपालना किस प्रकार रीति रस्मों व हर्षोल्लास द्वारा सम्पादित होती थी, इसका अध्ययन किया गया है। इसके साथ-साथ इस तथ्य को भी विवेचित किया गया है कि = तत्कालीन समय में शिक्षा व्यक्तित्व के सम्पूर्ण विकास के निमित्त थी तथा नैतिक जीवन के आदर्श के रूप में शिक्षा का महत्व था। शिक्षा हेतु प्रथम और महत्वपूर्ण संस्था परिवार ही होता था। इसी परिवार संस्था एवं उसके परम्परागत स्वरूप संयुक्त परिवार प्रथा पर प्रकाश डाला गया है। परिवार में सभी सदस्यों की छोटे-बड़े व स्त्री-पुरुष के अनुसार एक विशेष स्थिति होती थी। इसका अध्ययन महिलाओं के विशेष सन्दर्भ में किया गया है। स्त्री जीवन से जुड़ी पर्दा प्रथा, सती प्रथा, बहुविवाह, दास प्रथा, दहेज प्रथा, वैधव्य, उपपत्नियाँ आदि विभिन्न कुप्रथाओं के साथ ही साथ स्त्री के सम्पत्ति अधिकार, नारी शिक्षा, उसके द्वारा निर्माण कार्य आदि विविध आयामों का विस्तृत अध्ययन किया गया है। जीवन के भौतिक तथा सांस्कृतिक पक्ष खानपान, वस्त्राभूषण, सौन्दर्य प्रसाधन, शृंगार, त्योहार, मेले एवं मनोरंजन के साधनों का महत्वपूर्ण अध्ययन प्रस्तुत किया गया है।RelatedTRUE
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