Yogiraj Jnaneshwar
Item Weight | 200 Grams |
ISBN | 978-9350480380 |
Author | Shubhangi Bhadbhade |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt Ltd |
Book Type | Hardbound |
Edition | 1st |

Yogiraj Jnaneshwar
महाराष्ट्र में संत-परंपरा हमेशा से बनी रही है। लेकिन सबसे आगे हैं—श्री संत ज्ञानेश्वर! जीव, जगत् और जगदीश्वर—इनमें जो मायापटल रहता है वह ब्रह्मविद्या से नष्ट होता है और परब्रह्म का ज्ञान होता है—यही 'अद्वैत सिद्धांत' उन्होंने सरल करके बताया। वे सौंदर्यवादी कवि थे। उन्होंने मन का सौंदर्य, भाषा का सौंदर्य, प्राकृतिक सौंदर्य, अर्थ का सौंदर्य प्राप्त किया। मोक्ष की अपेक्षा करते हुए जीवन बिताना, यानी सफल जीवन का आनंद ही मोक्ष है—यह उन्होंने समाज को समझाया।आज के विज्ञान-युग में ज्ञानेश्वर के उपदेशों का, तत्त्वज्ञान का क्या लाभ है? 'ज्ञानेश्वरी' काल-बाह्य तो नहीं है? उनका साहित्य इतिहास तो नहीं बन गया? ऐसे प्रश्न उपस्थित होते हैं। लेकिन उनके सभी ग्रंथों का मानसिक, प्राकृतिक, सामाजिक दृष्टि से जरा भी महत्त्व कम नहीं हुआ है। सौंदर्य तो कालातीत होता है। उनका साहित्य वर्तमान में महाराष्ट्र के हर परिवार में गोस्वामी तुलसीदास की 'रामचरितमानस' की तरह पढ़ा जाता है।आज धनसत्ता, राजसत्ता, शस्त्रसत्ता का उपयोग समाज-विघटन के लिए हो रहा है। कहीं भी शांति नहीं है। भारतीय अध्यात्म व्यक्ति को मानसिक शांति प्रदान करता है। इसलिए अद्वैत का, अत्यानंद वैभव का, ब्रह्मानुभव का, परमात्म तत्त्व का, विश्व-व्यापकता का, आत्मशांति का संदेश देनेवाले संत ज्ञानेश्वर के वाड्.मय की आज नितांत आवश्यकता है। आशा है, सुधी पाठक इसका पारायण कर आत्म-शांति का अनुभव करेंगे।
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