Yaksh Prashnon Ke Uttar
Author | Indresh Kumar |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt Ltd |
ISBN | 978-9352663200 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.25 kg |
Yaksh Prashnon Ke Uttar
इस पुस्तक में उन प्रश्नों का उत्तर तलाशने की कोशिश की गई है, जो पिछले लगभग आठ सौ साल के इतिहास में से पैदा हुए हैं। ये प्रश्न इस देश में प्रेतात्माओं की तरह घूम रहे हैं। इन प्रश्नों का सही उत्तर न दे पाने के कारण ही देश का विभाजन हुआ और इसी के कारण आज देश में अलगाववादी स्वर उठ रहे हैं। ऐसा नहीं कि भारत इन प्रश्नों का उत्तर देने में सक्षम नहीं है। ऐसे प्रश्न हर युग में उत्पन्न होते रहे हैं और उस काल के ऋषि-मुनियों ने उनका सही उत्तर भी दिया, जिसके कारण समाज में भीतरी समरसता बनी रही; लेकिन वर्तमान युग में जिन पर उत्तर देने का दायित्व आया, उनकी क्षमता को संकुचित राजनैतिक हितों ने प्रभावित किया और वे जानबूझकर या तो इन प्रश्नों का गलत उत्तर देने लगे या फिर गलत दिशा में खड़े होकर उत्तर देने लगे। ऐसे उत्तरों ने भारत के सांस्कृतिक परिदृश्य को धुँधला किया और आमजन को दिग्भ्रमित किया। इस पुस्तक में राजनीति की संकुचित सीमाओं से परे रहकर प्रख्यात समाजधर्मी इंद्रेश कुमार ने इन प्रश्नों से सामना किया है। आशा करनी चाहि��� कि इस मंथन और संवाद से जो निकष निकलेगा, वह देश के लिए श्रेयस्कर होगा।वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों का वस्तुपरक व चिंतनपरक अध्ययन व व्यावहारिक उत्तर देने का सफल प्रयास है यह पुस्तक।_____________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रमभूमिका : हरि कथा अनंता — Pg. 51. समरसता — समाज की संजीवनी — Pg. 132. चरित्र निर्माण में शिक्षा का महव — Pg. 193. हिंदुत्व पर हो रहे हमले को समझिए — Pg. 244. राम : प्रत्येक युग के एक क्रांतिकारी कथानक हैं — Pg. 335. सेकुलरिज्म का जनक है हिंदुत्व — Pg. 416. कैरियरिज्म और नैशनलिज्म को समझें युवा — Pg. 467. भारतीय महान् जनक्रांति सन् 1857 का संदेश — Pg. 578. साहित्य का मर्म — Pg. 639. 'आम आदमी' कैसा सोचता है? — Pg. 6710. कुछ प्रेरणादायी प्रसंग — Pg. 7411. भ्रष्टाचार रूपी राक्षस से जूझता भारत — Pg. 8012. मतांतरण से राष्ट्रांतरण होता है — Pg. 9313. भारत ही माता है — Pg. 9814. भारतीय संस्कृति : विश्व बंधुत्व एवं विश्व शांति की गारंटी है — Pg. 10515. नारी सशतीकरण एवं सैन्य मातृशति कार्य — Pg. 11316. हिंदुत्व — ईश्वर प्रदा, मानवीय एवं प्राचीनतम जीवन पद्धति है — Pg. 11717. भारत में स्वदेशी एवं विदेशी पंथों में समन्वय का आधार — Pg. 13118. भारत के अंग्रेजों द्वारा किए गए सात विभाजनों का इतिहास — Pg. 14619. राष्ट्र की समस्याओं के समाधान एवं प्रगति का मार्ग है राष्ट्रीयता — Pg. 15320. हिमालय परिवार — एक अवधारणा की जन्म कथा — Pg. 16821. माउंट एवरेस्ट नहीं सागर माथा — Pg. 18022. हिंदुस्तान में नेपालियों के प्रति हिंदुओं को चिंता यों — Pg. 183
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