Vishwa Dharohar Mahakumbh
Author | Ramesh Pokhriyal Nishank |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt Ltd |
ISBN | 978-9353222468 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.25 kg |
Edition | 1st |
Vishwa Dharohar Mahakumbh
भारतीयों के प्रत्येक पर्व और त्योहार की नींव किसी ठोस वैज्ञानिक और तार्किक आधार पर रखी गई है। इन सभी पर्वों और त्योहारों की जड़ में कुछ-न-कुछ वैज्ञानिक रहस्य अवश्य होता है, जो आत्मशुद्धि और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लाभदायक होता है।मनोविज्ञान के पारखी हमारे ऋषि-मुनियों ने तीर्थों-पर्वों की ऐसी व्यवस्था बनाई कि उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक देश के कोने-कोेने से लोग इन तीर्थ-पर्वों में आकर अपनी संस्कृति का साक्षात्कार करने के साथ-साथ शांति, सद्भाव और बंधुत्व के एक सूत्र में बँध सकें।कुंभ पर्व मानव जीवन में आलोक और अंतःचेतना का संचार करनेवाला एक ऐसा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम है, जो राष्ट्रचेतना और अखंडता के साथ ही आध्यात्मिक चेतना का आधार स्तंभ भी है। मानव और मानवता के एकात्म हो जाने का महापर्व है महाकुंभ।विश्व कल्याण और मानव हितार्थ गोष्ठियों और कार्यशाला के रूप में शुरू हुआ यह क्रम वैदिक काल के पूर्व से चला आ रहा है, वह भी बिना किसी आ��ंत्रण-निमंत्रण या बिना किसी लोभ-लालच के।महाकुंभ का माहात्म्य और इसके सांस्कृतिक गौरव का बोध करानेवाली पठनीय पुस्तक।____________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रमभूमिका —Pgs. 5अपनी बात —Pgs. 91. कुंभ : अनमोल मानवीय विरासत —Pgs. 172. माँ गंगा की अनुपम देन 'कुंभ' —Pgs. 203. गंगा की व्युपत्ति और महत्ता —Pgs. 244. इसलिए पड़ा 'कुंभ' नाम —Pgs. 285. मानवता का कालजयी उपक्रम —Pgs. 316. आस्था एवं राष्ट्र-चिंतन का दुर्लभ समागम —Pgs. 347. पाठशाला ही नहीं, कार्यशाला भी है —Pgs. 378. सदियों पुरानी सांस्कृतिक महायात्रा —Pgs. 399. अंतःस्नान का भी महापर्व —Pgs. 4110. लोक-परलोक को जोड़ता 'कुंभ' —Pgs. 4411. सार्थक जीवन जीने की कला —Pgs. 4712. हरिद्वार बिना 'कुंभ' अधूरा —Pgs. 4913. कुंभनगरी है हरिद्वार —Pgs. 5214. इसलिए मनाया जाने लगा अर्धकुंभ —Pgs. 5515. चार प्रमुख कुंभ स्थल —Pgs. 5816. विविध स्थानों पर कुंभ —Pgs. 6317. पुराणों से जुड़े हैं 'कुंभ' के सूत्र —Pgs. 6618. स्वर्णाक्षरों में दर्ज कुंभ 2010 —Pgs. 6819. महािशवरात्रि स्नान बना इतिहास —Pgs. 7320. निर्मल अविरल गंगा अगला पड़ाव —Pgs. 7721. अद्भुत है 'कुंभ' आयोजन परंपरा —Pgs. 8022. अखाड़ों के लिए प्रस्थान से होता है 'कुंभ' का आगाज —Pgs. 8423. अखाड़ों के बिना 'कुंभ' अधूरे —Pgs. 8624. कुल तेरह अखाड़े हैं देश भर में —Pgs. 8925. धर्मरक्षा का स्विर्णम इतिहास —Pgs. 10026. हरिद्वार पहली कुंभ नगरी —Pgs. 10427. तीनों शक्तियों का गढ़ हरिद्वार —Pgs. 10728. पौराणिक काल की है कुंभनगरी —Pgs. 11229. हरिद्वार में सिंधु सभ्यता के भी प्रमाण —Pgs. 11530. कुंभ की व्यापकता —Pgs. 13331. बड़ा व्यापक है कुंभ नाम —Pgs. 13832. कुंभ एक विराट् लोक-दर्शन —Pgs. 14233. मनीिषयों की नजर में कुंभ —Pgs. 15334. 'समुद्र-मंथन' को मान्यता —Pgs. 15735. लोककथाओं में कुंभ —Pgs. 16036. 'कुंभ स्नान' का विशेष महत्त्व —Pgs. 16437. विज्ञान संगत है 'कुंभ' —Pgs. 16938. आज और भी प्रासंगिक है 'कुंभ' —Pgs. 17239. सागर मंथन : एक बड़ी सीख —Pgs. 17540. पर्व-महोत्सव हमारी धरोहर —Pgs. 17941. आकाश ही ब्रह्मा का कमंडलु है —Pgs. 182
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