Tumhen Kya Bequarari Hai
Author | Sanjay Kumar Kundan |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt Ltd |
ISBN | 978-9382898467 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.4 kg |
Edition | 1st |
Tumhen Kya Bequarari Hai
जब तनहाइयाँ बोलती हैं, आहटें वीरान गलियों में स़फर करती हैं, यादें अजनबी दस्तकों से लिपटकर रोने लगती हैं, बेमंज़िल की तलाश में मुसाफिर एक उम्र गुज़ार देता है, मुहब्बत किसी शर्त के ब़गैर रिश्तों को नई बुलन्दियाँ अता करती हैं, हाशिए पर बिखरे हुए आवारा ल़फ्ज़ों को एक पहचान मिल जाती है, रचनात्मकता की तेज़ लहरें पत्थरों में भी राह बना लेती है...तब...''कुन्दन'' है धड़कनों मेंक्यूँ इक शोरे - कायनात.कतरे में क्यूँ दिखा हैसमन्दर बता मुझेख्वाब फिर .ख्वाब हैअच्छा है बुरा है, क्या है?और वो दर्द ज़ो सीने में उठा है क्या है?साहिल, दरिया, कश्ती, मुसाफिर,तू़फाँ, मौजें और गिर्दाबये सब तो बस वह्मे-नज़र थेसारा समंदर सूखा थाया फिर ये कि—सब अपनी दूकान सजाएबैठे हैं जब मेले मेंअपनी जिंस का भाव बताने मेंऐसा शरमाना क्याजैसे कई .खूबसूरत अशआर के साथ संवेदनाओं की अमिट आकृतियाँ बनाते हैं संजय कुमार 'कुन्दन'। उनकी रचनाओं से गुज़रते हुए स़फर की कड़ी धूप नर्म हो जाती है... सूनी आँखों को नमी का अहसास होता है... आदमियों के जंगल में एक ऐसा हमस़फर मिल जाता है जो हमारे अन्दर की नाकामियों, बदनामियों रुसवाइयों से भी बेहद मुहब्बत करता है। 'कुन्दन' की शायरी नई दुनिया के इंसानों के टूटे बिखरे ख्वाबों की किरचियों को जोड़कर घने अंधेरे में भी रौशन ताबीर है।ज़िन्दा आबादियों के लिए यह एक ज़रूरी संग्र�� है।कासिम .खुरशीद
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