Tilok Vaykaan
Author | Naval Shukla |
Language | Hindi |
Publisher | Setu Prakashan |
Pages | 96 |
ISBN | 978-93-89830-23-1 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.18 kg |
Dimensions | 129 x 198 mm |
Edition | 1st |
Tilok Vaykaan
About Book
स्वप्न और यथार्थ के बीच एक धूसर प्रदेश होता है, जहाँ न यथार्थ की सत्ता होती है, न स्वप्न का विस्तार; वहाँ, उस प्रदेश में अनेक द्वित्वों के सहारे, तर्क और जिज्ञासा रूपी उपकरणों के सहारे तिकोना वायकान की पूरी कथा निर्मित हुई है। वस्तुतः, स्वप्न और यथार्थ का धूसर प्रदेश, जीवन के बहुत सारे द्वित्व और तर्क-जिज्ञासा उपन्यास की त्रिआयामी संवदेनात्मक संरचना के तीन अलग-अलग आयाम हैं। इनके बीच ही पूरी कथा संपन्न होती है।
यह उपन्यास एक स्तर पर खोज है-धूल में खेलने वाली फ्रॉक पहने लड़की का। उनकी खोज स्वप्न में भी होती है, यथार्थ के धरातल पर भी। यथार्थ तिलोका है। प्रेम के बावजूद विवाह संस्थान में बँधने से वह इनकार कर देती है। परंतु, इस तिलोका तक पहुँचने में वाचक जो यात्रा तय करता है, वह यात्रा कई मायने में विशिष्ट है। आधुनिक विकास की जो यात्रा है, यह उसका एक किस्म से प्रत्याख्यान है। विकास की भौतिक यात्राएँ मुख्य भूमि की ओर होती हैं। परंतु वाचक की यात्रा मुख्य भूमि से दूर उस आदिवासी अंचल तक की यात्रा है, जहाँ मनुष्य प्रकृति के विजेता के रूप में नहीं है, वह उसका सहचर है, उसका अभिन्न अंग है। तब यह यात्रा मनुष्य के प्रकृत भावों तक पहुँचने की यात्रा है। इस तर्क से यह अकारण नहीं कि इस यात्रा की परिणति प्रेम में होती है। प्रेम स्त्री-पुरुष तक सीमित नहीं है। वह है, पर उसके साथ मनुष्यों के बीच के रागात्मक संबंध हैं। इस यात्रा में प्रेम है, विश्वास है, साहचर्य है तो अविश्वास भी है। यह अविश्वास शिष्ट, संभ्रात समाज की ओर से है। इस पूरी यात्रा में शिष्ट और संभ्रात-समानांतर लोक का एक पक्ष उभरता चलता है। परन्तु यह सायास लेखकीय प्रयास नहीं है। यह कथा-विन्यास से स्वयमपि उभरता जाता है।
स्वप्न और यथार्थ की सीमा रेखाएँ यहाँ टूटी हैं। इसीलिए कथा-विन्यास में क्रमिकता नहीं है, परंतु उस टूटन में स्मृति-यथार्थ, भवताआकांक्षा, राग-द्वेष आदि तमाम भाव घुल-मिल गये हैं। इस तरह यह प्रत्यक्ष के साथ परोक्ष को भी अपनी यात्रा में समेटता चलता है। इसीलिए पूरे उपन्यास की संवेदनात्मक संरचना विवरणात्मक नहीं है। उसमें बिंबों, प्रतीकों, अप्रत्यक्ष कथनों की प्रभावी भूमिका है। चूंकि ये सारे उपकरण काव्य संवेदना के हैं इसीलिए इस उपन्यास में लय और राग की अन्तर्वर्ती धारा सदैव मौजूद है।
भाषा, बिंबों, प्रतीकों, अप्रत्यक्ष कथनों की सभ्यता के जीवित मानवीय संदर्भो के साहचर्य से उपन्यास की संवेदनात्मक संरचना के आंतरिक लय और राग का निर्माण होता है। इस आंतरिकता का एक आधार यह भी है कि क्रियात्मकता और घटनात्मकता के भाव में बदलने की प्रक्रिया पर उपन्यासकार की निरंतर सूक्ष्म पकड़ है।
About Author
नवल शुक्ल
जन्म : 27 जनवरी, 1958, तिवारी डीह, हरिना माड़, पलामू, झारखंड।
प्रकाशन : दसों दिशाओं में, इस तरह एक अध्याय (कविता-संग्रह); नदी का पानी तुम्हारा है, बच्चा अभी दोस्त के साथ उड़ रहा है (बाल कविता-संग्रह); कविता में मध्यप्रदेश, राजा पेमल शाह (नाटक); मदारीपुर जंक्शन (नाट्य रूपांतरण); तिलोका वायकान (उपन्यास) मुरिया, दंडामी माडिया, मध्यप्रदेश के धातु शिल्प और बसदेवा गायकी (मोनोग्राफ्स)।
सम्मान : पहले कविता-संग्रह के लिए रामविलास शर्मा सम्मान। जर्मनी और इंग्लैंड की सांस्कृतिक यात्राएँ।
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