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Setu samagra : Mangalesh Dabraal
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Setu samagra : Mangalesh Dabraal Setu Prakashan

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About Book

मंगलेश डबराल के प्रकाशित छ: कविता संकलनों को एकसाथ पढ़ना, पिछले पचास वर्षों के भारतीय समाज की जद्दोजहद को एक बड़े फलक पर संग्रंथित होते देखना है। उनकी कविताएँ एकसाथ जीवन की हलचल और समय के विमर्श को उपस्थित करती हैं। यथार्थ को देखने का उनका एक दृष्टिकोण है, जो वैज्ञानिक इतिहास-दृष्टि, विश्व-दृष्टि और वर्ग-दृष्टि से निर्देशित तो है ही, उसके पीछे एक नयी सौंदर्यदृष्टि भी है। उनकी शुरुआती कविताओं में ऐसे गतिशील बिंबों की बहुलता है, जो पहाड़ी क्षेत्र में सहज दृश्यमान हैं। धूप, छाया, बादल, कुहरे की गतिशीलता को मैदानी इलाकों की तुलना में पहाड़ों पर कहीं अधिक सुन्दर ढंग से देखा जा सकता है। लेकिन उनकी कविता इस सतह पर ही नहीं होती, बल्कि जीवन और भाषा की गतिशीलता को भी रेखांकित करती है। कविता जब पहाड़ से उतर कर मैदान के विस्तार में आती है, तो बृहत्तर समाज की चिंताओं को व्यक्त करने हेतु धीरे-धीरे सादृश्यों से मुक्त होती है और भिन्नताओं को अपनी अभिव्यक्ति का आधार बनाती है। अवधारणाओं का यह परिवर्तन भी बहुत उल्लेखनीय है। मंगलेश जी ऐसे विरल कवि हैं जो क्रूरताओं के उद्घाटन द्वारा करुणा को रेखांकित करते हैं। अत्याचारियों और तानाशाहों की नृशंसता के ऐसे पहलुओं को सामने लाते हैं, जिनकी ओर अब तक सजग संवेदनशील लोगों का भी ध्यान नहीं गया था। भाषा उनकी कविता की सबसे बड़ी ताक़त है। कई बार, किसी साधारण घटना या स्थिति का चित्रण करते हुए भी वे कुछ ऐसे मुहावरे गढ़ देते हैं जो हमारे समय का मुहावरा बन जाता है। उनकी एक लोकप्रिय कविता 'टॉर्च' को ही लीजिए। यह ग्रामीण इलाके में प्रचलित कहानियों से संदर्भित है। लेकिन, मंगलेश डबराल 'रोशनी की पहली मशीन/ जिसकी शहतीर एक चमत्कार की तरह रात को दो हिस्सों बाँट देती थी' जैसा विराट बिंब रच कर और 'उजालों में थोड़ी आग भी होती तो कितना अच्छा था' जैसा मुहावरा गढ़ कर, इस टॉर्च को एक रूपक में बदल देते हैं। इस तरह उनकी संपूर्ण कविता पिछले पचास वर्षों के जीवन की करुणा का संघर्ष और रूपक रचती है

About Author

मंगलेश डबराल

मंगलेश डबराल का जन्म 16 मई 1948 को उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले के गाँव काफलपानी में हुआ। वे लंबे समय तक दैनिक जनसत्ता और दूसरी पत्रपत्रिकाओं में संपादन का काम करते रहे हैं।

उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं : पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं, आवाज़ भी एक जगह है, नये युग में शत्रु और स्मृति एक दूसरा समय है (कविता संग्रह); लेखक की रोटी और कवि का अकेलापन (गद्य संग्रह); एक बार आयोवा, एक सड़क एक जगह (यात्रा संस्मरण); उपकथन (साक्षात्कार); कवि ने कहाऔर प्रतिनिधि कविताएँ (चयन)।

मंगलेश डबराल की कविताएँ देश और विदेश की सभी प्रमुख भाषाओं में अनूदित हुई हैं। उनकी कविताओं के अंग्रेज़ी और इतालवी अनुवाद पुस्तकों के रूप में भी प्रकाशित हुए हैं। उन्होंने देश-विदेश में कई राष्ट्रीयअंतरराष्ट्रीय कविता समारोहों में कविता-पाठ किया है और अमेरिका के आयोवा विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय लेखन कार्यक्रम में भी रहे हैं।

बेर्टोल्ट ब्रेश्ट, पाब्लो नेरूदा, एर्नेस्तो कार्दैनाल और यानिस रित्सोस जैसे कई प्रमुख कवियों की रचनाओं के अनुवाद के अलावा उन्होंने अंग्रेज़ी उपन्यासकार अरुंधति रॉय के उपन्यास द मिनिस्ट्री ऑफ़ अटमोस्ट हैप्पीनेसका अनुवाद अपार खुशी का घराना शीर्षक से किया है। उन्हें पहल सम्मान, कुमार विकल सम्मान, शमशेर सम्मान और साहित्य अकादेमी पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।

मृत्यु : दिसंबर 2020

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