Look Inside
Sannate Mein Alav
Sannate Mein Alav

Sannate Mein Alav

Regular price ₹ 100
Sale price ₹ 100 Regular price ₹ 100
Unit price
Save 0%
Tax included.
Size guide

Pay On Delivery Available

Rekhta Certified

7 Day Easy Return Policy

Sannate Mein Alav

Sannate Mein Alav

Cash-On-Delivery

Cash On Delivery available

Plus (F-Assured)

7-Days-Replacement

7 Day Replacement

Product description
Shipping & Return
Offers & Coupons
Read Sample
Product description

सन्नाटे में अलाव - जो जानते हैं वे शुरू से ही जानते रहे हैं कि अजीत चौधरी हिन्दी कविता के लगातार वैविध्यपूर्ण होते जा रहे परिदृश्य में भी एक अनूठे कवि है। बहुत सारे अलग-अलग कवियों में भी इतने अलग कि कभी-कभी लगता है कि उन्होंने जान-बूझकर अपना एकांत कोना पकड़ लिया है ताकि अपने ढंग की कविता बेपरवाह निर्विघ्न लिखते रह सकें। उनके यहाँ दोहरी उत्कटता है। ये जितनी बारीकी और गहराई से अपने आसपास को देखते हैं उतनी ही संजीदगी से अपने दिल-ओ-दिमाग़ के भीतर भी जाते हैं। हिन्दी में ऐसे पर्याप्त प्रौढ़ और युवा कवि होंगे जिनमें इन दो ध्रुवान्तों को साधने की कुब्बत तो है लेकिन वह दोनों में से एक से कन्नी काट जाते हैं किसी को बाहर से परहेज़ है तो कोई अन्दर उतरने से बचना चाहता है। इन्हीं दिनों में यदि अजीत चौधरी अन्न पर लिखते हैं तो कहीं और उन्हें यह स्वीकार करने में कोई दिक़्क़त नहीं होती कि चाँदनी को गाता हूँ। यदि सालिम अली की जीवित या लुप्त होती हुई पक्षी प्रजातियाँ उनका विषय हैं तो जगदीश स्वामीनाथन के कैन्स की चिड़िया को बहुत लम्बे, बहुत नीले खेत में ज्यों प्रार्थना हो अन्न की सरीखे अद्वितीय ढंग से देखते हैं। प्रभु जोशी की कहानियों और नवीन सागर की कविताओं में नहीं, उनके बनाये हुए चित्रों में अजीत चौधरी अपने लिए अर्थ और संकेत खोज लेते हैं।वे भीड़ में पहचान बनाने की हिंसा में शामिल नहीं और उनमें यह कहने का साहस है कि मेरा पता दूसरों के सन्दर्भों से है। भूल चुका हूँ अपना पता, अकेला होना यदि उनके लिए कभी संगीत है तो वे एक इकाई भी हैं जो धरती पर अपनी आवाज़ ढूँढ़ती है। जो उन्हें लगता है कि वह किसी चीख़ की शक्ल में पहचानी जायेगी। जो आदमी होने की निशानी है अकेला होता हूँ/उसी चीख़ के साथ दुनिया में होने की जगह बनाता हुआ किन्तु वे यह ताक़ीद भी करते हैं कि उनके लिए कोई प्रार्थना न की जाये।आज की महाजनी सभ्यता की सर्वव्याप्ति जानते हुए, जिसमें डरे हुए लोग घरों से होकर रास्ता देते हैं बाज़ार लगाने की जगह देते हैं, अजीत चौधरी की ज़िद है कि वे शहर के नहीं, गाँव-गाँव के कवि हैं। उन्होंने अपना ही जीवन दाँव पर लगाया है। वे सब ओर से खुले हुए बन्द के, बहुत बड़े दुःख की विनत छाँव के कवि हैं। उनकी कविता में घर की बहुत-सी स्मृतियाँ हैं। वे बचपन और पाठशाला को लौटते हैं जहाँ वे स्लेट पर बनी उड़ानहीन चिड़िया को जब पोखर में धोते हैं तो वह जीवित मछली में बदल जाती है। 'अन्न' और 'पसीना' उनके प्रिय शब्द हैं। दाख़िल-ख़ारिज में एक पूरा जीवन पटवारी की खतौनी है किन्तु 'हवि', 'पितर', 'सन्चास', 'ऋचा', 'जागरण', 'आह्वान', 'कुलदेवता' तथा 'ग्रामदेवता' आदि की उपस्थिति उनकी कविता की अप्रगल्भ सांस्कृतिक चेतना को भी रेखांकित करती है। अजीत चौधरी मूलतः समूचे जीवन के कवि हैं किन्तु वे जानते हैं कि मृत्यु कई जन्मान्तरों में प्रतीक्षारत मिलती है और उसे अपनी यात्रा का एक मील का पत्थर मान लेना बहुत ज़्यादा ग़लत न होगा।ये एक ऐसे कवि की कविताएँ हैं जो अपनी आग को ख़ुद ही चेताना चाहता है क्योंकि किसी और की आग का अनुभव काम नहीं आता। उसका तज़िया बताता है कि भूख और मोक्ष समकालीन हैं, ठीक उसी तरह जिस तरह ओस और कनपटी का पसीना समकालीन है। यह एक तरह से नये-नये अर्थ लेकर नामों का पुनर्जन्म है चीज़ें यदि जाती हैं तो उनकी ख़ाली जगह में रोशनी अपना घर बनाती है। यदि मुखर होती लड़की और ख़ूबसूरत आदमी की क्रमशः मार्मिकता और तल्ख़ी बहुत ठोस है तो जिस तरह चलती है रात का रचाव-बसाव मुक्तिबोध की कविताओं जैसा है और अजीत चौधरी को लम्बी कविताएँ भी लिखने का सुझाव देने पर बाध्य करता है। संगीत का अपना ज्ञान वे प्रदर्शित नहीं करते किन्तु छिटपुट उल्लेख और उससे भी ज़्यादा उनकी अधिकांश कविताओं में छिपा संगीत, इसका संकेत है कि उनके अस्तित्व के विभिन्न स्वरों को सुनने की श्रवण शक्ति असामान्य है। अजीत चौधरी में कहीं कहीं संवेदना और विश्लेषणात्मक चेतना का वह विडम्बनात्मक सामंजस्य है जो हिन्दी में विनोद कुमार शुक्ल जैसे कवियों के पास ही है। आन्तरिक उलटबाँसियाँ कभी-कभी उन्हें आकृष्ट करती हैं ये बिम्बों और रूपकों से खिलवाड़ करने लगते हैं किन्तु वापस अपनी मुख्यभूमि पर आ जाते हैं जो दरअसल समाज से गहरे जुड़ाव तथा जीवन के प्रति अदम्य आस्था और स्नेह की है। उनका विश्वास है कि कोई प्रजाति कोई नस्ल कभी पूरी तरह पर नहीं जाती। अपनी प्रतिबद्धता को व्यक्त करने का अजीत चौधरी का तरीक़ा अपने शब्दों, शैली और रविंदना पर एक विनम्र नियन्त्रण रखने का है। ये कविता के हाट में चीख़-पुकार नहीं मचाते, शोर-गुल नहीं करते। उनकी मौजूदगी अब ऐसी है कि उन्हें नज़रअन्दाज़ करने का जोख़िम नहीं उठाया जा सकता। निस्सन्देह वे उन अनिवार्य कवियों में शामिल हो चुके हैं जिन्हें फिर-फिर पढ़ते रहने से घुलते हैं नये-नये अर्थ। -विष्णु खरे

Shipping & Return
  • Over 27,000 Pin Codes Served: Nationwide Delivery Across India!

  • Upon confirmation of your order, items are dispatched within 24-48 hours on business days.

  • Certain books may be delayed due to alternative publishers handling shipping.

  • Typically, orders are delivered within 5-7 days.

  • Delivery partner will contact before delivery. Ensure reachable number; not answering may lead to return.

  • Study the book description and any available samples before finalizing your order.

  • To request a replacement, reach out to customer service via phone or chat.

  • Replacement will only be provided in cases where the wrong books were sent. No replacements will be offered if you dislike the book or its language.

Note: Saturday, Sunday and Public Holidays may result in a delay in dispatching your order by 1-2 days.

Offers & Coupons

Use code FIRSTORDER to get 10% off your first order.


Use code REKHTA10 to get a discount of 10% on your next Order.


You can also Earn up to 20% Cashback with POP Coins and redeem it in your future orders.

Read Sample

Customer Reviews

Be the first to write a review
0%
(0)
0%
(0)
0%
(0)
0%
(0)
0%
(0)

Related Products

Recently Viewed Products