Samajik nyay aur chetana ki bhartiye kavitayein
Author | Mohan verma |
Language | Hindi |
Publisher | Setu Prakashan |
Pages | 448 |
ISBN | 978-93-91277-21-5 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.418 kg |
Dimensions | 129 x 198 mm |
Edition | 1st |
Samajik nyay aur chetana ki bhartiye kavitayein
About Book
सामाजिक न्याय की मानव जीवन के सामाजिक, राजनीतिक और बौद्धिक परिसर में प्रमुखता से उपस्थिति आधुनिक युग के महान वैचारिक बोधों में एक है। फ्रांसीसी क्रान्ति से जन्मे विचारों (स्वतन्त्रता, समानता और बन्धुत्व) ने जिन स्वप्नों को जन्म दिया, सामाजिक न्याय उसकी अन्यतम परिणति होती। किन्तु तमाम सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक संघर्षों और स्वप्नों के बावजूद अन्याय, शोषण, गैरबराबरी आज भी समाज में बदस्तूर कायम हैं। यह कोई सुखद स्थिति तो नहीं ही कही जा सकती।
आधुनिक मनुष्य के कुछ स्वप्न हैं-बराबरी, अन्याय और शोषण से मुक्ति, भाईचारा। मनुष्यता के इन अधूरे स्वप्नों और अनपाये लक्ष्यों के प्रति, एक यूटोपियाई दृष्टि रख कर, चिन्तकों, साहित्यकारों ने सृजन किया है। यह चिन्तन और सृजन की सचेतता का साक्ष्य है।
'सामाजिक न्याय और चेतना की भारतीय कविताएँ' सृजन की सचेतता का वही गवाक्ष हैं, जिनसे तमाम गड़बड़ियों के बावजूद, मनुष्यता का आकाश नीला जान पड़ता है। यह संग्रह जिस विशद् मनोभूमि में पाठकों को ले जाता है वह अद्वितीय है। इस संग्रह का साहित्य के पाठकों में व्यापक स्वागत होगा, ऐसी आशा की जा सकती है।
About Author
मोहन वर्मा
हिंदी के कवि एवं अनुवादक। विभिन्न पत्रिकाओं में कविताओं के प्रकाशन के अतिरिक्त बूँद से नदी तक : एक कविता यात्रा कविता-संग्रह, पेरूमाल मुरुगन के तमिल उपन्यास मादोरुवागन का हिंदी अनुवाद नरनारीश्वर तथा कन्नड़ की कवि ममता सागर की चुनी हुई कविताओं का हिंदी अनुवाद 'आँख मिचौनी' प्रकाशित। इसके अतिरिक्त मुरुगन का कविता-संग्रह कषाइन पडालकल का हिंदी अनुवाद एक कापुरुष के गीत एवं उनके दो उपन्यासों अर्धनारी तथा आलवायन के हिन्दी अनुवाद प्रकाशनाधीन हैं। पिछली शती के साठवें दशक में सहज कविता आन्दोलन का सूत्रपात करने में वह रवीन्द्र भ्रमर तथा त्रिवेणी प्रकाश त्रिपाठी के सहयोगी रहे हैं तथा अंग्रेजी ई-पत्रिका जागरीके कविता संपादक भी।
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