Samadhan Ki Ore
Author | Prabhat Jha |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt Ltd |
ISBN | 978-9352669882 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.338 kg |
Edition | 1st |
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Samadhan Ki Ore
भारत में आजादी के बाद देश की मूल समस्याओं की ओर शासकों ने ध्यान नहीं दिया। यहाँ की मूल समस्याएँ नागरिकों से जुड़ी हैं, जो आज भी उतनी ही ज्वलंत हैं, जितनी पूर्व में रहीं। आजादी के बाद जो भी शासन में आए, उन्होंने आजादी को ही भारत की समस्याओं की जीत समझ लिया। आजाद क्या हुए, सबकुछ मिल गया। जबकि सच्चाई यह है कि आजादी मिलनेवाले दिन से हमें नागरिकों की मूलभूत सुविधाओं और उनकी जीवन शैली के साथ भारत की प्रकृति के अनुसार उन समस्याओं के समाधान की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए था। लेकिन हम ऐसा नहीं कर पाए। हम आजादी के बाद सत्ता में रहते हुए सेवा के माध्यम से सेवा में कैसे आगे आएँ, की बजाय हम सत्ता के माध्यम से सत्ता में कैसे आएँ, इस दिशा में बढ़ते चले गए— यहीं से हमारी समस्याओं की जड़ें गहरी होती गईं। इस पुस्तक में देश की ऐसे ही प्राथमिक और ज्वलंत समस्याओं के प्रति चिंता व्यक्त की गई है। मातृभूमि की सेवा में, भारतमाता की आराधना में जो व्यक्तित्व सदैव अर्चना करते रहते हैं, हमने उन��े देश की ज्वलंत समस्याएँ रखीं और आग्रह किया कि देश में समस्याओं की तो चर्चा होती है, पर समाधान की नहीं। आप तो हमें समाधान दें। अपने भारत की प्रकृति को समझते हुए शब्दों के साधकों ने समाजकल्याण और राष्ट्रनिर्माण की दिशा में कुछ ठोस 'शब्दांजलि' परोसने का प्रयास किया है। हमने इस पुस्तक में उन्हीं के भाव और निदान की दिशा में दिए गए मार्गदर्शन को लेखबद्ध कर राष्ट्रहित में संपादन कर प्रकाशित करने का प्रयास किया है।_____________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रमप्रकाशकीय — Pgs. 51. 'राजनीति' समस्या के बजाय समाधान का हिस्सा बने —लालकृष्ण आडवाणी — Pgs. 132. भारत की मूल आत्मा पंचायती राज —एम. वेंकैया नायडू — Pgs. 163. चिंतन की धारा धरती से जुड़ी होनी चाहिए —नरेंद्र मोदी — Pgs. 234. हमारी अर्थव्यवस्था की प्राणदायिनी है भारतीय कृषि —राजनाथ सिंह — Pgs. 275. भारतीय तकनीक ही सभ्यता के विकास का मूल स्रोत —डॉ. मुरली मनोहर जोशी — Pgs. 326. राष्ट्रपति शासन प्रणाली पर विचार करने का समय आ गया है —सुषमा स्वराज — Pgs. 457. महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी —मृदुला सिन्हा — Pgs. 508. सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण —जगमोहन — Pgs. 579. सप्तसिंधु का अभिनव सप्तशील —डॉ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी — Pgs. 6810. भारत में संसदीय लोकतंत्र समस्या और समाधान —डॉ. सुभाष कश्यप — Pgs. 7411. राष्ट्र-जागरण का गांधी-मंत्र —देवेंद्र स्वरूप — Pgs. 8012. विविधता में एकता —मा. गो. वैद्य — Pgs. 8813. प्रबल आकांक्षा और तत्परता बिना नया बदलाव असंभव —वसुंधरा राजे — Pgs. 9314. जवाबदेही लोकतंत्र का प्राणतत्त्व है —डॉ. रमन सिंह — Pgs. 9815. शासन संचालन में जन भागीदारी जरूरी —शिवराज सिंह चौहान — Pgs. 10616. इसलाम की मूल मान्यताओं पर बहस से संबंध सुधरने के आसार बढ़ेंगे —बलबीर पुंज — Pgs. 11117. ग्राम विकास को संस्कृतिपरक बनाइए —हृदयनारायण दीक्षित — Pgs. 11718. अल्पसंख्यकवाद से किस प्रकार निपटा जाए? —मुजफ्फर हुसैन — Pgs. 12219. राजनीति में अध्यात्म का महत्त्व —सुधांशु त्रिवेदी — Pgs. 13120. भारतीय दर्शन-परंपरा और वामपंथ —शंकर शरण — Pgs. 14021. चौथे स्तंभ से राष्ट्र की अपेक्षा —चंदन मित्रा — Pgs. 15622. सामाजिक समरसता का अर्थ है सामाजिक सम्मान —रमेश पतंगे — Pgs. 16123. समूचे विश्व की निगाह भारत की ओर —जे.एस. राजपूत — Pgs. 16824. देर हुई तो नतीजे भयावह होंगे —डॉ. ज्ञान प्रकाश पिलानिया — Pgs. 17425. सबसे बेहतर संसदीय प्रणाली —डॉ. एम. रामा जॉयस — Pgs. 18226. वंदेमातरम् : भारतीय राष्ट्रीयता की पहचान —स्वपन दासगुप्ता — Pgs. 18827. धर्मांतरण पर प्रतिबंध ही एकमात्र समाधान —ए. सूर्यप्रकाश — Pgs. 19128. बाजार हावी, संपादक गायब —तरुण विजय — Pgs. 19829. भारतीय सार्वजनिक जीवन की पहचान है हिंदुत्व —संध्या जैन — Pgs. 20530. भ्रष्टाचार से निपटने के लिए दृढसंकल्प की आवश्यकता —जोगिंदर सिंह — Pgs. 21131. निर्धनता रेखा की समीक्षा आवश्यक —रुद्रदत्त — Pgs. 21732. सशक्त भारत दृष्टिकोण का विषय है —अवधेश कुमार — Pgs. 22533. पत्रकारिता राष्ट्रीयता का आधारस्तंभ है —डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री — Pgs. 23134. विश्वगुरु भारत राष्ट्र की आत्मा का साक्षात्कार करना होगा —संजय जोशी — Pgs. 24035. कठोर 'दंडनीति' से दूर होगी 'देश-दुर्दशा' —नंदकिशोर शुक्ल — Pgs. 25536. विश्व व्यापार संगठन : चुनौतियाँ स्वीकार करनी होगी —सर्वदानंद आर्य — Pgs. 26037. भारतीय अर्थव्यवस्था को नई दशा एवं दिशा की जरूरत —डॉ. शरद जैन — Pgs. 266
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