Sahitya Aur Ashlilata Ka Prashn
Author | Shashank Shukl |
Language | Hindi |
Publisher | Vani Prakashan |
Pages | 184 |
ISBN | 9789390000000 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.3 kg |
Dimensions | 22"x14" |
Edition | 1st |
Sahitya Aur Ashlilata Ka Prashn
साहित्य और अश्लीलता का प्रश्न - साहित्य के बनने के वैचारिक पार्श्व को समेटे डायरी विधा आज की मुख्य कथेतर विधा है। डॉ. शशांक शुक्ल की वैचारिक डायरियाँ एक साहित्यिक की डायरी का विस्तार हैं। इन डायरियों में एक चिन्तक मन की अन्तर्मुखी रचनात्मक यात्रा का रोमांचकारी प्रकाश है। ये डायरियाँ साहित्य के गूढ़ प्रश्नों को हमारे सामने सुलझाकर रख देती हैं। साहित्य के जिन प्रश्नों को वैचारिकता के अतिवाद से अनसुलझा समझ कर छोड़ दिया गया है, उन्हें शशांक शुक्ल इत्मीनान से सुलझा कर हमारे सामने रख देते हैं। इस प्रक्रिया को वे बिना किसी अतिवाद या कट्टरता के करते हैं...और यही इस पुस्तक की ख़ूबी भी है। साहित्य और अश्लीलता का प्रश्न शशांक शुक्ल की वैचारिक डायरियों का संग्रह है। आप चाहें तो इसे आलोचना की तरह भी पढ़ सकते हैं। एक तरह से डायरी में आलोचना। यह मुक्तिबोध की परम्परा है। इस परम्परा में वैयक्तिक अनुभूति का रूपान्तरण सामाजिक वैचारिक मनोभूमि में होता है। आलोच्य पुस्तक में साहित्य के उन बिन्दुओं की खोज की गयी है, जिन पर बहुधा लोगों की दृष्टि आज तक नहीं गयी है। इस दृष्टि से साहित्य के वैचारिक विस्तार की दृष्टि से इस पुस्तक को पढ़ना चाहिए। साहित्य और अश्लीलता का प्रश्न पुस्तक कला और जीवन के बुनियादी प्रश्नों को उठाती है। आजकल बीज प्रश्नों पर बात करने का चलन न के बराबर रह गया है। ऐसे समय में यह पुस्तक एक क्लासिक दृष्टि के साथ साहित्य के बुनियादी प्रश्नों को उठाती है। डायरी का अर्थ केवल वैयक्तिक रोज़नामचा होता है, यह पुस्तक इस अवधारणा को तोड़ती है। शशांक शुक्ल की वैचारिक दृष्टि निर्भ्रांत है। इस दृष्टि में न झुकाव है और न भय। चिन्तन की वस्तुनिष्ठता ही इस पुस्तक की विशेषता है। पुस्तक में पूर्व साहित्यिक मान्यताओं से असहमति के पर्याप्त स्थल हैं, किन्तु उन असहमतियों में विध्वंस का प्रयत्न नहीं है, अपितु एक बड़ी लकीर खींचने का प्रयत्न ही है। लेखक की दृष्टि तुलनात्मक मानों को लेकर चली है, जिसमें तटस्थ दृष्टि से दो विपरीत विचार, कथ्य के बीच अपनी भूमि की खोज की गयी है। यह पुस्तक साहित्य की नवीन सैद्धांतिकी को गढ़ती है—बिना शोर-शराबे के। आलोचना का यह नवीन रूप है।
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