क्रम
1.भटका मेघ - 9
2. सूर्य के लिए -12
3. स्वरों का समर्पण -14
4. आभास -15
5. मेरे मन -15
6. पुत्र का निवेदन -17
7. डगमग दो पाँव कहीं -19
8. दो चिड़ियों का गान -20
9. प्रतीक्षा -22
10. नगर निवासी -22
11. स्व-धन -23
12. घास -23
13. मैं -23
14. दिनारम्भ -24
15. प्रीति-भेंट -24
16. माँ की आँखें -24
17. एक मुर्दे का बयान -25
18. धुंध -26
19. माया-दर्पण -28
20. दिनचर्या -33
21. एक दिन -35
22. घर-धाम -38
23. नकली कवियों की वसुन्धरा -40
24. दिनारम्भ -44
25. वापसी -45
26. मेरी नियति थी -49
27. एक और ढंग -51
28. प्रेस वक्तव्य -52
29. फिर जन्म लेता है नगर -53
30. दूसरे का डर -53
31. समाधि लेख -55
32. बुखार में कविता -60
34. अन्तिम व्यक्तव्य -64
35.जलसाघर- 66
36. आध घण्टे की बहस - 71
37. विजेता - 74
38. चेकोस्लोवाकिया - 77
39. ढाका बेतार केन्द्र - 81
40. युद्ध नायक - 83
41. प्रजापति - 87
42. प्रक्रिया - 91
43. महामहिम - 92
44. स्तालिन पर्दे में रहता है - 93
45. जो - 93
46. जोसेफ अब्रु कुआ - 94
47. बाबर और समरकंद - 98
48. ट्रॉय का घोड़ा - 99
49. कलिंग - 102
50. मगध - 103
51. काशी में शव - 104
52. काशी का न्याय - 105
53. कोसाम्बी - 106
54. हस्तिनापुर का रिवाज - 107
55. चिल्लाता कपिलवस्तु - 107
56. उज्जयिनी - 109
57. कोसल गणराज्य - 110
58. कोसल में विचारों की कमी है - 111
59. वसन्तसेना - 112
60. अम्बपाली - 114
61. मित्रों के सवाल - 115
62. हवन - 116
63. कृपा है, महाकाल की - 116
64. जड़ - 118
65. जो युवा या - 119
66. मणिकर्णिका का डोम - 120
67. हस्तक्षेप - 121
68. तीसरा रास्ता - 123
69. रोहिताश्व - 125
70. दीवार पर नाम - 126
भटका मेघ
भटक गया हूँ-
मैं असाढ़ का पहला बादल !
श्वेत फूल-सी अलका की
मैं पंखुरियाँ तक छू न सका हूँ ।
किसी शाप से शप्त हुआ
दिग्भ्रमित हुआ हूँ ।
शताब्दियों के अन्तराल में घुमड़ रहा हूँ, घूम रहा हूँ ।
कालिदास ! मैं भटक गया हूँ,
मोती के कमलों पर बैठी
अलका का पथ भूल गया हूँ ।
मेरी पलकों में अलका के सपने जैसे डूब गये हैं ।
मुझमें बिजली बन आदेश तुम्हारा
अब तक कड़क रहा है ।
आँसू धुला रामगिरी काले हाथी जैसा मुझे याद है ।
लेकिन मैं निरपेक्ष नहीं, निरपेक्ष नहीं हूँ ।
मुझे मालवा के कछार से
साथ उड़ाती हुई हवाएँ
कहाँ न जाने छोड़ गयी हैं !
अगर कहीं अलका बादल बन सकती
मैं अलका बन सकता !
मुझे मालवा के कछार से
साथ उड़ाती हुई हवाएँ
आध घण्टे की बहस
दफ्तर में पिटने, दुनिया में जाकर चित होने, अथवा निकाले
जाने के बाद
क्या होता है, पिटकर आने के बाद, मैं सोचता हूं, मुझको
मतलब नहीं जहान से, मुझ को बनना है वह, जो मुझसे
पहले हो गये हैं, पिटने, चित होने, निकाले
जाने के बाद ।
मुझको लिखना है, बस,
पर न मैं
उठता हूँ, न भृकुटि -
लिखने का मतलब है नरक से गुज़रना ।
क्यों गुजरूं ?
तो जाओ,
उतरो वैतरणी अपने से पहले की पूँछ पकड़ । पूँछ अभी
बाकी है।
अथवा गऊदान करो । अनुसंधान करो जाकर किसी
विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में,
साग में नमक, राजनीति में ईमान,
जीने में मज़ा
नहीं रहा । नहीं रहा वह सब जिसे होना चाहिए था
ईसा की बीसवीं शताब्दी के अड़सठवें.
वर्ष में ।
हर्ष में भर कर देखती है कन्या दुनिया में चित होकर लगातार
घर की तरफ आते हुए
पिता को
चिता को
बुझाओ मत । साध्वियां चली आ रही हैं, हया और बेशर्मी
फली और फूली