अनुक्रम
पहाड़ पर लालटेन
1. आवाज़ें - 27
2. आते-जाते - 27
3. घर - 29
4. सबसे अच्छी तारीख़ - 30
5. तुम्हारा प्यार - 32
6. शहर- 1 - 33
7. पहाड़ पर लालटेन - 33
8. अत्याचारियों की थकान - 34
9. तानाशाह कहता है - 35
10. खिड़की - 36
घर का रास्ता
1.सपना - 37
2.आश्चर्यलोक - 39
3. दूसरा हाथ - 40
4. पैदल बच्चे स्कूल - 41
5.शुरुआत - 42
6. प्रेम - 44
7. क्या काम – 44
8. बाज़ार भाव - 46
9.घर का रास्ता - 46
हम जो देखते हैं
1. कुछ देर के लिए - 47
2. अभिनय - 48
3.बार-बार कहता था - 50
4. दादा की तस्वीर -50
5. माँ की तस्वीर - 51
6. पिता की तस्वीर - 52
7. अपनी तस्वीर - 53
8. बच्चों के लिए चिट्ठी - 54
9. काग़ज़ की कविता - 55
10. नींद की कविता - 56
11. सपने की कविता - 56
12. बचपन की कविता - 57
13. चाँद की कविता - 58
14. निराशा की कविता - 59
15. आँसुओं की कविता - 58
16. दिल्ली: दो - 60
17. लिखे चला जाता था - 60
18. तस्वीर - 63
19. परिभाषा की कविता - 60
20. चेहरा – 61
21. खोई हुई चीज़ - 62
22. पिता की स्मृति में - 63
23. सात पंक्तियाँ - 64
24. अत्याचारी के प्रमाण - 64
25. ऐसा समय - 65
26. मैं चाहता - 66
27. पुनर्रचनाएँ - 67
आवाज़ भी एक जगह है
22. छुपम छुपाई - 72
23. पर्दों की तरह - 73
29. संगतकार - 74
31. मंगल - 75
32. स्त्रियाँ - 77
34. पागलों का एक वर्णन - 79
35. अमीर ख़ाँ - 110
36. नए युग में शत्रु - 81
37. केशव अनुरागी -83
38. गुणानन्द पथिक - 85
39. ब्रेष्ट और निराला - 86
40. मरणोपरान्त कवि - 88
41. ज्योतिष - 89
42. सात दिन का सफ़र - 90
43. क्रेमलिन कथा - 92
44. अन्तिम प्रारूप - 93
45. फ़ोन पर हालचाल - 95
46. दुख - 96
47. जो बोलते हैं - 98
48. गाता हुआ लड़का - 98
49. चुम्बन - 100
50. ली पाइ - 101
51. धूल - 101
52. तुम्हारे भीतर - 102
53. लौटा मैं इस बड़े शहर में - 103
54. दूसरे लोग - 105
55. आयोजन - 106
56. ख़ुशी कैसा दुर्भाग्य - 107
57. अधूरी कविता - 108
58. प्रतिकार – 108
नए युग में शत्रु
59. घटती हुई ऑक्सीजन – 108
60.नए युग में शत्रु -110
61. बची हुई जगहें - 112
62. आदिवासी - 113
63. यथार्थ इन दिनों - 114
64. गुलामी - 116
65. नया बैंक - 117
66. टॉर्च - 118
67. पंचम - 119
68. यह नम्बर मौजूद नहीं - 120
आवाज़ें
कुछ देर बाद
शुरू होंगी आवाजें
पहले एक कुत्ता भूँकेगा पास से
कुछ दूर हिनहिनाएगा एक घोड़ा
बस्ती के पार सियार बोलेंगे
बीच में कहीं होगा झींगुर का बोलना
पत्तों का हिलना
बीच में कहीं होगा
रास्ते पर किसी का अकेले चलना
इन सबसे बाहर
एक बाघ के डुकरने की आवाज़
होगी मेरे गाँव में।
1979
आते-जाते
यहाँ आते-जाते मैंने
भूख के बारे में सोचा जो
दिन में तीन बार लगती थी
शब्द बचे रहें
जो चिड़ियों की तरह कभी पकड़ में नहीं आते
प्रेम में बचकानापन बचा रहे
कवियों में बची रहे थोड़ी लज्जा ।
1993
पुनर्रचनाएँ
[ कुश अंश ]
ये कविताएँ पहाड़ के दूर-दराज क्षेत्रों के ऐसे लोकगीतों से प्रेरित हैं जिन्हें लोक
कविताएँ कहना ज़्यादा सही होगा पर ये उनके अनुवाद नहीं हैं।
1.
तुम्हें कहीं खोजना असम्भव था
तुम्हारा कहीं मिलना असम्भव था
तुम दरअसल कहीं नहीं थीं
न घर के अँधेरे में
न किसी रास्ते पर जाती हुईं
तुम न गीत में थीं
न उस आवाज़ में जो उसे गाती है
न उन आँखों में
जो किन्हीं दूसरी आँखों का प्रतिबिम्ब हैं
तुम उन देहों में नहीं थीं
जो कपड़ों से लदी होती हैं
और निर्वस्त्र होकर डरावनी दिखती हैं।
तुम उस बारिश में भी नहीं थीं
जो खिड़की के बाहर दिखाई देती है
निरन्तर गिरती हुई ।