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Pratinidhi Kavitayen : Ibne Insha
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उर्दू के सुविख्यात शायर इब्ने इंशा की प्रतिनिधि ग़ज़लों और नज़्मों की यह पुस्तक हिन्दी पाठकों के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि के समान है। हिन्दी में वे कबीर और निराला तथा उर्दू में मीर और नज़ीर की परम्परा को विकसित करनेवाले शायर हैं। जीवन का दर्शन और जीवन का राग उनकी रचनाओं को बिलकुल नया सौन्दर्य प्रदान करता है। उर्दू शायरी के प्रचलित विन्यास को उनकी शायरी ने बड़ी हद तक हाशिए में डाल दिया है। अब्दुल बिस्मिल्लाह के शब्दों में कहें तो इंशाजी उर्दू कविता के पूरे जोगी हैं। हालाँकि रूप-सरूप, जोग-बिजोग, बिरहन, परदेशी और माया आदि का काव्य-बोध इंशा को कैसे प्राप्त हुआ, यह कहना कठिन है, फिर भी यह असन्दिग्ध है कि उर्दू शायरी की केन्द्रीय अभिरुचि से यह अलग है या कहें कि यह उनका निजी तख़य्युल है। दरअस्ल भाषा की सांस्कृतिक और रूपगत संकीर्णता से ऊपर उठकर शायरी करनेवालों की जो पीढ़ी 20वीं सदी में पाकिस्तानी उर्दू शायरी में तेज़ी से उभरी थी, उसकी बुनियाद में इंशा सरीखे शायर की ख़ास भूमिका थी। Urdu ke suvikhyat shayar ibne insha ki pratinidhi gazlon aur nazmon ki ye pustak hindi pathkon ke liye ek mahattvpurn uplabdhi ke saman hai. Hindi mein ve kabir aur nirala tatha urdu mein mir aur nazir ki parampra ko viksit karnevale shayar hain. Jivan ka darshan aur jivan ka raag unki rachnaon ko bilkul naya saundarya prdan karta hai. Urdu shayri ke prachlit vinyas ko unki shayri ne badi had tak hashiye mein daal diya hai. Abdul bismillah ke shabdon mein kahen to inshaji urdu kavita ke pure jogi hain. Halanki rup-sarup, jog-bijog, birhan, pardeshi aur maya aadi ka kavya-bodh insha ko kaise prapt hua, ye kahna kathin hai, phir bhi ye asandigdh hai ki urdu shayri ki kendriy abhiruchi se ye alag hai ya kahen ki ye unka niji takhayyul hai. Darasl bhasha ki sanskritik aur rupgat sankirnta se uupar uthkar shayri karnevalon ki jo pidhi 20vin sadi mein pakistani urdu shayri mein tezi se ubhri thi, uski buniyad mein insha sarikhe shayar ki khas bhumika thi.

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क्रम

 गज़लें

1. और तो कोई बस न चलेगा - 11
2. पीत के रोगी - 12
3. ज़मीं पे सब्ज़ा लहक रहा है - 12
4. यूँ तो है - 13
5. हम जंगल के जोगी - 14
6. पीत करना तो - 15
7. कभी उनके मिलन - 15
8. कल चौदहवीं की रात थी - 17
9. राज़ कहाँ तक राज़ रहेगा - 18
10. रात के ख़्वाब - 19
11. इंशा जी उठो अब - 20
12. जलवानुमाई - 21
13. जब दहर के ग़म से - 22
14. ऐ दिलवालो नज़्में - 22
15. इसको नाम जुनूँ का - 23
16. गोरी अब तू आप समझ ले - 24
17. देख हमारे माथे पर - 25
18. दिले-इश्क़ में - 26
19. दिल हिज्र के दर्द से - 27
20. किसको पार उतारा तुमने - 28
21. कुछ कहने का - 29
22. वो न जो कैदे-विसाल में - 30
23. सुनते हैं फिर - 30
24. अपने हमराह जो - 31
25. इस शाम को - 32
26. जाने त क्या तू - 33
27. ऐ मतवाली - 33
28. देख हमारी दीद के कारन - 34
29. सबको दिल के - 35
30. शामे-गम - 36
31. खूब हमारा - 37
32. दिल किसके तसव्वुर में - 38
33. हम रात बहुत रोए - 38
34. उनका दावा - 40
35. सावन-भादो - 41
36. हम उनसे अगर - 41

नज़्में

  1. चाँद के तमन्नाई - 45
    2. ये सराय है - 47
    3. कार्तिक का चाँद - 49
    4. ऐ मतवालो नाकोंवालो - 51
    5. ऐ मेरे सोच नगर की रानी - 52
    6. लोग पूछेंगे - 54
    7. साये से - 54
    8. इंतज़ार की रात - 55
    9. इंशा ने फिर इश्क़ किया - 56
    10. वापसी11. पिछले पहर के सन्नाटे में - 59  
    12. ख़िज़ाँ की एक शाम - 62  
    13. चल सो चल - 63  
    14. सराय - 64  
    15. उदास रात के आँगन में - 66  
    16. लब पर नाम किसी का भी हो - 69  
    17. कल हमने सपना देखा है - 69  
    18. इक बार कहो तुम मेरी हो - 71  
    19. उसी चाँद की खोज में - 72  
    20. दिल इक कुटिया दश्त किनारे - 75  
    21. फ़र्ज़ करो - 77  
    22. उस आँगन का चाँद - 78  
    23. दरवाज़ा खुला रखना - 80  
    24. इंशा जी है नाम इन्हीं का - 81  
    25. बस्ती में दीवाने आए - 82  
    26. इस बस्ती के इक कूचे में - 84  
    27. फिर वही दश्त - 86  
    28. इक पत्ता इक जोगी - 88  
    29. आती है पवन, जाती है पवन - 89  
    30. या तो ये शख्स - 90  
    31. ऐ सूरज की दोशीज़ा किरन - 91  
    32. क्या धोखा देने आओगी - 93  
    33. ये कौन आया - 94  
    34. ये बातें झूठी बातें हैं - 95  
    35. सुख चाहो तो - 96  
    36. एक लड़का - 97  
    37. दिल आशोब - 97  
    38. माज़ी के ख़राबे की  - 98  
    39. घूम रहा है पीत का प्यासा - 100  
    40. साँझ भई चौदेस - 101  
    41. सब माया है - 104  
    42. दिल पीत की आग में  - 106  
    43. मत जाओ मत जाओ - 108  
    44. रेख़्ता - 110  
    45. कबित - 111  

तवील नज़्में (लंबी कविताएँ)

  1. यह बच्चा किसका बच्चा है -115  
    2. इंशा जी बहुत दिन बीत चुके - 119  
    3. अमन का आख़िरी दिन - 125  
    4. उफ़ताद - 131

[1]

और तो कोई बस  चलेगा हिज्र1 के दर्द के मारों का
सुबह का होना दूभर कर दें रस्ता रोक सितारों का
 
झूठे सिक्कों में भी उठा देते हैं ये अक्सर सच्चा माल
शक्लें देख के सौदे करना काम है इन बंजारों का
 
अपनी ज़बाँ से कुछ  कहेंगे चुप ही रहेंगे आशिक़ लोग
तुमसे तो इतना हो सकता है पूछो हाल बेचारों का
 
जिस जिप्सी का जिक्र है तमसे दिल को उसी की खोज रही
यूँ तो हमारे शहर में अक्सर मेला लगा निगारों2 का
 
एक ज़रा-सी बात थी जिसका चर्चा पहुँचा गली-गली
हम गुमनामों ने फिर भी एहसान  माना यारों का
 
दर्द का कहना चीख़ ही उट्ठो, दिल का कहना वज़ा3 निभाओ
सबकुछ सहना चुप-चुप रहना काम है इज़्ज़तदारों का
 
इंशा जी अब अजनबियों में चैन से बाकी उमर कटे

जिनकी ख़ातिर बस्ती छोड़ी नाम लो उन प्यारों का


[21]

कुछ कहने का वक़्त नहीं ये कुछ  कहो, ख़ामोश रहो
 लोगो ख़ामोश रहो हाँ  लोगो ख़ामोश रहो

सच अच्छा, पर उसके जलू1 में, ज़हर का है इक प्याला भी
पागल हो ? क्यों नाहक़ को सुकरात बनो, ख़ामोश रहो

हक़ अच्छा पर उसके लिए कोई और मरे तो और अच्छा
तुम भी कोई मंसूर हो जो सूली पर चढ़ो, ख़ामोश रहो
 
उनका ये कहना सूरज ही धरती के फेरे करता है
सर आँखों पर, सूरज ही को घूमने दो- ख़ामोश रहो
 
महबस2 में कुछ हब्स3 है और ज़ंजीर का आहन4 चुभता है
फिर सोचो, हाँ फिर सोचो, हाँ फिर सोचो, ख़ामोश रहो
 
गर्म आँसू और ठंडी आहें, मन में क्या-क्या मौसम हैं
इस बगिया के भेद  खोलो, सैर करो, ख़ामोश रहो
,
आँखें मूँद किनारे बैठो, मन के रक्खो बंद किवाड़
इंशा जी लो धागा लो और लब5 सी लो, खामोश रहो
1. देश निकाला, 2. बंदीगृह, 3. कैद, 4. लोहा, 5. होंठ

इक बार कहो तुम मेरी हो

हम घूम चुके बस्ती बन में
इक आस का फाँस लिए मन में
कोई साजन हो, कोई प्यारा हो
कोई दीपक हो, कोई तारा हो
जब जीवन-रात अँधेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो
जब सावन-बादल छाए हों
जब फागुन फूल खिलाए हों
जब चंदा रूप लुटाता हो
जब सूरज धूप नहाता हो
या शाम ने बस्ती घेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो
हाँ दिल का दामन फैला है.
क्यों गोरी का दिल मैला है
हम कब तक पीत के धोखे में
तुम कब तक दूर झरोखे में
कब दीद1 से दिल को सेरी2 हो
इक बार कहो तुम मेरी हो
क्या झगड़ा सूद-ख़सारे3 का
ये काज नहीं बंजारे का
सब सोना रूपा ले जाए
सब दुनिया, दुनिया ले जाए
तुम एक मुझे बहुतेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो
1. दर्शन, 2. तृप्ति, 3. लाभ-हानि


 

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