अनुक्रम
उमंग (1934) से विद्रोही
1. उमंग - 13
2. गीत - 14
3. चिह्न - 14
4. परिचय - 15
5. जीवन-संगीत - 17
6. पंछी - 19
7. हरी घास - 21
8. झलक - 22
9. हम - 23
10. सत्याग्रह - 24
11. स्वागत - 25
12. चित्र - 26
13. स्वतन्त्रता की ओर - 28
14. उद्गार - 29
रागिनी (1935) से
1. अन्तरा - 29
2. पावस और कवि - 30
3. टुकड़ी – 31
4. चाँदनी में – 31
5. विद्रोही -32
6. भाई-बहन – 33
7. रैन बसेरा – 34
नीलिमा (1939) से
1. नीलिमा - 35
2. नूपुर आज बजाओ ना - 36
3. इस रिमझिम में चाँद हँसा है – 39
4. दबे पाँव तुम आई रानी - 43
5. गंगा किनारे – 45
6. देख रहे हैं महल तमाशा - 48
7. कोई - 55
पंचमी (1942) से
1. भोर - 57
2. छवि की जाल - 57
3. रूप-दीप - 59
4. पतझड़ में भी आना - 60
5. तीर लक्ष्य पर छूट चुका - 62
6. कवि - 67
7. विश्व सुन्दरी - 69
8. यह दिल खोल तुम्हारा हँसना - 71
9. तुम मेरी वन्दना न मानो - 71
10. तुम और मैं - 75
11. मैं प्यार माँगता हूँ - 77
12. मैं प्रकाश से खेल रहा हूँ - 78
13. स्व. रवीन्द्रनाथ ठाकुर - 79
14. बीन पर सो जाऊँगा मौन - 81
नवीन (1944) से
1. नवीन - 83
2. दीपक जलता रहा रात-भर - 85
3. स्वतन्त्रता का दीपक - 87
4. कवि और कविता -882. नया संसार – 91
5. मैं गायक हूँ स्वच्छन्द हिमांचल का – 93
6. दे दो मुझको अपनी ज्वाला - 95
7. तुमने मेरा दर्द न जाना - 97
8. दर्द में या प्यार में - 100
9. तुलसीदास - 102
10. आज जवानी के क्षण में - 104
11. मन का पंछी - 105
12. जिन्दगी – 107
हिमालय ने पुकारा (1963) से
1. है ताज हिमालय के सिर पर - 110
2. यह मेरा हिन्दुस्तान है - 111
3. मेरा देश बड़ा गर्वीला - 114
4. नवीन कल्पना करो - 115
5. अमर सेनानी गांधी – 118
6. शासन चलता तलवार से - 122
7. हिन्दी है भारत की बोली - 124
8. बापू, तुम्हारी प्रार्थना - 127
9. जवाहरलाल – 128
10. मेरा धन है स्वाधीन कलम - 131
11. इतिहास बदलने वाले हैं - 133
12. मनुष्य की समानता - 134
13. मनुष्य तोड़ता चला - 135
14. नजर है नई तो नजारे पुराने - 137
15. चाँदनी में झोपड़ी - 140
16. चल रहा है आदमी - 142
17. मुस्कान पुरानी कहाँ हुई - 144
18. नई उमरिया प्यासी है - 146
19. यहाँ शहीदं समय का ज्ञानी - 147
20. भारत अखंड, भारत विशाल - 149
उमंग
ऐसी मेरे मन की उमंग
रहती न, कहाँ किसके न संग
मेरे मानस का मुकुल मूल
था डाली पर रे रहा झूल
वन की सुषमा पर रीझ, भूल
खिल उठा तुरत, हो गया फूल
ये पीले, नीले, लाल रंग
जैसी मेरे मन की उमंग
उड़तीं पतंग पाँखें पसार
ऊपर, बयार में बार-बार.
पर बिना पवन, कुछ भी न पार
बस उसी तरह रे आर-पार
उड़ सके गगन में जो पतंग
वैसी मेरे मन की उमंग
आती है जब मन में उमंग
लाती सपना छन में उमंग
तन में उमंग, धन में उमंग
यौवन में, जीवन में उमंग
करती है पुलकित अंग-अंग
कैसी मेरे मन की उमंग
लगती थी तुम प्यारी-प्यारी
अपनी नादानी सी !
तुमने हमने मिलकर जग में
अपने बाग लगाए ।
जीवन-मन्दिर में दोनों ने
यौवन- राग जगाए।
मन के भीतर मुझे छिपाए
बाहर पर्दा डाले ।
तुमने अपने प्रेम-नेम भी
खूब निराले पाले ।
गंगा किनारे
कुछ देर यहाँ दिल जमता है,
कुछ देर तबीयत लगती है !
आँखों का पानी गरम समझ
यह दुनिया आँसू कहती है,
हर सुबह-शाम को घासों पर
फिर ओस नरम पड़ रहती है;
लहरों में आँसू-ओस लिये
वैसे ही गंगा बहती है !
कुछ देर यहाँ दिल जमता है,
कुछ देर तबीयत लगती है!
उठकर पश्चिम से आती है,
चलकर पूरब को जाती है,
अपनी धुन में चल पड़ती है,
अपनी धुन में कुछ गाती है;
पर्वत का देश दिखाती है,
सागर की राह बताती है।