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Pratinidhi Kahaniyan : Qurratul Ain Haider
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क़ुर्रतुल ऐन हैदर उर्दू भाषा के सशक्त और चर्चित कथाकारों में हैं। मंटो, कृष्णचन्दर, बेदी और इस्मत चुग़ताई के बाद उभरनेवाली नस्ल में उनका महत्त्वपूर्ण स्थान है।
क़ुर्रतुल ऐन हैदर की कहानियाँ प्रचलित प्रगतिशील कहानियों के मुक़ाबले नई शैली, नए माहौल और नई दुनिया को सामने लाती हैं। इनकी कहानियों में उच्च वर्ग, ग्लैमर भरा जीवन, अतीत की स्वप्नीली ख़ूबसूरत यादें, रिश्तों के टूटने, ख़ानदानों के बिखरने और अतीत के उत्कृष्ट मानवीय मूल्यों के चूर-चूर हो जाने की त्रासदी का बेहद सूक्ष्म चित्रण मिलता है।
क़ुर्रतुल ऐन हैदर समाज में औरत की कमज़ोरी और बेबसी को उसकी पूरी सच्चाई के साथ स्वीकारने का हौसला रखती हैं। उन्होंने इसी सच्चाई को अपने कथा साहित्य में ईमानदारी से प्रस्तुत करने का भरसक प्रयत्न किया है।
यहाँ संकलित ‘कोहरे के पीछे’, ‘जिन बोलो तारा-तारा’, ‘हसब-नसब’, ‘आवारागर्द’ जैसी यथार्थवादी कहानियों के साथ ‘मलफ़ूज़ते हाजी गुलाबाना बेकताशी’ और ‘रौशनी की रफ़्तार’ शीर्षक कहानियाँ भी शामिल हैं जो उनकी सृजनशक्ति के नए आयामों को उद्घाटित करती हैं।
क़ुर्रतुल ऐन हैदर की कहानियाँ अपनी विषयवस्तु, चरित्र-सृष्टि, तकनीक, भाषा और शैली हर लिहाज़ से उर्दू कहानी साहित्य में उल्लेखनीय ‘इज़ाफा’ मानी जा सकती हैं। इनसान और इनसानियत पर गहरा विश्वास उनकी कहानी-कला और चिन्तन का केन्द्र बिन्दु है। इनकी कहानियों में प्रेम और घृणा, ख़ुशियाँ और ग़म, सुन्दरता और कुरूपता एक साथ मौजूद हैं। Qurrtul ain haidar urdu bhasha ke sashakt aur charchit kathakaron mein hain. Manto, krishnchandar, bedi aur ismat chugtai ke baad ubharnevali nasl mein unka mahattvpurn sthan hai. Qurrtul ain haidar ki kahaniyan prachlit pragatishil kahaniyon ke muqable nai shaili, ne mahaul aur nai duniya ko samne lati hain. Inki kahaniyon mein uchch varg, glaimar bhara jivan, atit ki svapnili khubsurat yaden, rishton ke tutne, khandanon ke bikharne aur atit ke utkrisht manviy mulyon ke chur-chur ho jane ki trasdi ka behad sukshm chitran milta hai.
Qurrtul ain haidar samaj mein aurat ki kamzori aur bebsi ko uski puri sachchai ke saath svikarne ka hausla rakhti hain. Unhonne isi sachchai ko apne katha sahitya mein iimandari se prastut karne ka bharsak pryatn kiya hai.
Yahan sanklit ‘kohre ke pichhe’, ‘jin bolo tara-tara’, ‘hasab-nasab’, ‘avaragard’ jaisi yatharthvadi kahaniyon ke saath ‘malfuzte haji gulabana bektashi’ aur ‘raushni ki raftar’ shirshak kahaniyan bhi shamil hain jo unki srijanshakti ke ne aayamon ko udghatit karti hain.
Qurrtul ain haidar ki kahaniyan apni vishayvastu, charitr-srishti, taknik, bhasha aur shaili har lihaz se urdu kahani sahitya mein ullekhniy ‘izapha’ mani ja sakti hain. Insan aur insaniyat par gahra vishvas unki kahani-kala aur chintan ka kendr bindu hai. Inki kahaniyon mein prem aur ghrina, khushiyan aur gam, sundarta aur kurupta ek saath maujud hain.

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कथा-क्रम

1. कोहरे के पीछे - 7

2. नज़्ज़ारा दरम्याँ है - 30

3. हसब- नसब - 47

4. लकड़बग्गे की हँसी - 67

5. दो सय्याह - 86

6. आवारागर्द - 98

7. अकसर इस तरह से भी - 108

8. रक्से फ़ुग़ाँ होता है - 108

9. फ़ोटोग्राफ़र - 124

10. जिन बोलो तारा - तारा - 132

11. रौशनी की रफ़्तार - 148

 

कोहरे के पीछे

 

खच्चरों, घोड़ों, रिक्शाओं और डाँडियों पर सवार अँग्रेज़ साहब और मेम और

बाबा लोग बाज़ार के उस पुल पर से दिन-भर गुज़रा करते हैं; शाम को हिंदुस्तानी

उमड़ आते हैं। तेज़-तेज़ चलते, ढलान उतरते या चढ़ते-हाँफते काँपते इनसानों

का रेला ज्वार-भाटा मालूम होता है सिनेमाघरों में इस्थर विलियम्ज़, जोन फ़ोंटेन

और नूरजहाँ और खुरशीद की पिक्चरें चल रही हैं। रिंक में स्केटिंग जारी है

अभी सेवाय के बालरूम में ऐंग्लो-इंडियन क्रूनर और उसके साथी 'Enjoy

yourself; it's later than you think' गाना शुरू करेंगे। ड्रम पर चोट पड़ेगी।

महाराजा और महारानी लोग और नवाब लोग और बड़ा साहब और बड़ा मेम

लोग डैंस बनाएगा।

 

उस वक़्त जब सारा मसूरी तफ़रीह में मसरूफ़ होता है, एक ग़रीब आदमी

बाज़ार के उस पुल पर चुप साधे खड़ा नज़र आता है - कबिरा खड़ा बजार में

माँगे सबकी खैर

 

फटा-पुराना ख़ाकी कोट और कंटोप पहने, हुलिये से बेरोज़गार मेहतर मालूम

होता है। एक अँग्रेज़ बच्ची गोद में उठाए बाज़ार में निकलता है झुटपुटे

के वक़्त तक चुपचाप खड़ा रहता है या पुल की मुँडेर पर बैठ जाता है।

यह फ़ज़ल मसीह जमादार किसी 'साहब' की बच्ची खिलाता है तो इतना

मिस्कीन' और फटे हाल क्यों ? ताज्जुब !

 

यह फ़ज़ल मसीह फ़ातिरुल अक्ल ' भी मालूम होता है जारशाही रूस में

 

 

नज़्ज़ारा दरम्याँ है

 
ताराबाई की आँखें तारों की ऐसी रौशन हैं और वह चारों तरफ़ की हर चीज़
को हैरत से तकती है। दरअस्ल ताराबाई के चेहरे पर आँखें ही आँखें हैं। वह
क़हत' की सूखी मारी लड़की है जिसे बेगम अल्मास खुर्शीद आलम के हाँ काम
करते हुए सिर्फ़ चंद माह हुए हैं, और वह अपनी मालकिन के शानदार फ़्लैट के
साजो-सामान को आँखें फाड़-फाड़ देखती रहती है कि ऐसा ऐशोइशरत उसे पहले
कभी ख़्वाब में भी नज़र आया था। वह गोरखपुर के एक गाँव की बाल-विधवा
है, जिसके ससुर और माँ-बाप के मरने के बाद उसके मामा ने, जो बंबई में दूधवाला
भय्या है, उसे यहाँ बुला भेजा था।
 
अल्मास बेगम के ब्याह को अभी तीन-चार महीने ही गुज़रे हैं। उनकी
मंग्लूरियन आया जो उनके साथ मैके से आई थी 'मुल्क' चली गई तो उनकी बेहद
मुंतज़िम' ख़ाला बेगम उस्मानी ने, जो एक नामवर सोशल वर्कर हैं, एम्प्लायमेंट
एक्सचेंज फ़ोन किया और ताराबाई पटबीजने' की तरह आँखें झपकाती कम्बाला
हिल के स्काइस्क्रैपर' गल नसत्रन की दसवीं मंज़िल पर आन पहुँचीं। अल्मास
बेगम ने उनको हर तरह क़ाबिले-इतमीनान पाया, मगर जब दूसरे मुलाज़िमों ने
उन्हें ताराबाई कहकर पुकारा तो वह बहुत बिगड़ीं, हम कोई पतुरिया हूँ ?"
उन्होंने एहतिज़ाज़' किया। मगर अब उनको तारादई के बजाय ताराबाई कहलाने
की आदत हो गई है और वह चुपचाप काम में मसरूफ़ रहती हैं और बेगम साह
और उनके साहब को आँखें झपका-झपकाकर देखा करती हैं।

 

आवारागर्द

पिछले साल, एक रोज़ शाम के वक़्त दरवाज़े की घंटी बजी। मैं बाहर गई  एक
लंबा-तड़ंगा यूरोपियन लड़का कैनवस का थैला कंधे पर उठाए सामने खड़ा था।
दूसरा बंडल उसने हाथ में सँभाल रखा था और पैरों में ख़ाक आलूद' पेशावरी चप्पल
थे। मुझे देखकर उसने अपनी दोनों एड़ियाँ ज़रा-सी जोड़कर सर ख़म किया। मेरा
नाम पूछा और एक लिफ़ाफ़ा थमा दिया "आपके मायूँ ने यह ख़त दिया है, "
उसने कहा
 
अंदर  जाओ, मैंने उससे कहा और ज़रा अचंभे से ख़त पर नज़र डाली।
यह अल्लन मामूँ का ख़त था और उन्होंने लिखा था-
 हम लोग कराची से हैदराबाद-सिंध वापस जा रहे थे। ठठ की माकली
हिल पर क़ब्रों के दरम्यान इस लड़के को बैठा देखा। इसने अँगूठा
उठा-उठाकर लिफ़्ट की फ़रमाइश की और हम इसे घर ले आए। यह
दुनिया के सफ़र पर निकला है और अब हिंदुस्तान जा रहा है। ओटो
हुत प्यारा लड़का है। मैंने इसे हिंदुस्तान में अज़ीज़ों के नाम ख़त
दिए हैं और उनके पास ठहरेगा। तुम भी इसकी मेज़बानी करो
 
नोट : इसके पास पैसे तक़रीबन बिलकुल नहीं हैं 
 लड़के ने कमरे में आकर थैले फ़र्श पर रख दिए। और अब आँखें चुँधियाकर
दीवारों पर लगी हुई तसवीरें देख रहा था। इतने ऊँचे क़द के साथ उसका बच्चों

 

 

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