क्रम
1. प्रायश्चित - 7
2. दो बाँके - 12
3. मुगलों ने सल्तनत बख्श दी - 18
4. तिजारत का नया तरीका - 25
5. छह आने का टिकट - 33
6. विक्टोरिया क्रॉस - 40
7. इन्स्टालमेंट - 46
8. प्रजेंट्स - 50
9. एक अनुभव - 56
10. खिलावन का नरक - 64
11. पियारी - 67
12. दो रातें - 72
13. उत्तरदायित्व - 79
14. कुँवर साहब मर गए - 86
15. नाज़िर मुंशी - 92
16. आवारे - 100
17. सौदा हाथ से निकल गया - 117
18. वसीयत - 128
19. संकट - 141
20. मोर्चाबंदी - 153
प्रायश्चित्त
अगर कबरी बिल्ली घर भर में किसी से प्रेम करती थी, तो रामू की बहू से, और
अगर रामू की बहू घर भर में किसी से घृणा करती थी, तो कबरी बिल्ली से । रामू
की बहू, दो महीने हुए मायके से प्रथम बार ससुराल आई थी, पति की प्यारी और
सास की दुलारी, चौदह वर्ष की बालिका । भंडार-घर की चाभी उसकी करधनी
में लटकने लगी, नौकरों पर उसका हुक्म चलने लगा, और रामू की बहू घर में
सबकुछ। सास जी ने माला ली और पूजा-पाठ में मन लगाया ।
लेकिन ठहरी चौदह वर्ष की बालिका, कभी भंडार-घर खुला है, तो कभी
भंडार-घर में बैठे-बैठे सो गई । कबरी बिल्ली को मौका मिला, घी-दूध पर अब
वह जुट गई। रामू की बहू की जान आफत में और कबरी बिल्ली के
छक्के-पंजे । रामू की बहू हाँडी में घी रखते-रखते ऊँघ गई और बचा हुआ घ
कबरी के पेट में । रामू की बहू दूध ढँककर मिसरानी को जिन्स देने गई और दूध
नदारद । अगर बात यह यहीं तक रह जाती, तो भी बुरा न था, कबरी रामू की
बहू से कुछ ऐसा परच गई थी कि रामू की बहू के लिए खाना-पीना दुश्वार ।
रामू की बहू के कमरे में रबड़ी से भरी कटोरी पहुँची और रामू जब आए तब कटोरी
साफ चटी हुई । बाजार से बालाई आई और जब तक रामू की बहू ने पान लगाया
बालाई गायव |
रामू की बहू ने कर लिया कि या तो वही घर में रहेगी या फिर कबरी
बिल्ली ही। मोरचाबंदी हो गई, और दोनों सतर्क । बिल्ली फँसाने का कठघरा
आया, उसमें दूध, मलाई, चूहे और भी बिल्ली को स्वादिष्ट लगनेवाले विविध
प्रकार के व्यंजन रखे गए, लेकिन बिल्ली ने उधर निगाह तक न डाली । इधर
कबरी ने सरगर्मी दिखलाई। अभी तक तो वह रामू की बहू से डरती थी; पर अब
वह साथ लग गई, लेकिन इतने फासिले पर कि रामू की बहू उस पर हाथ न लगा सके ।
मुगलों ने सल्तनत बख्श दी
हीरो जी को आप नहीं जानते, और यह दुर्भाग्य की बात है । इसका यह अर्थ नहीं
कि केवल आपका दुर्भाग्य है, दुर्भाग्य हीरो जी का भी है। कारण, वह बड़ा
सीधा-सादा है। यदि आपका हीरो जी से परिचय हो जाए, तो आप निश्चय
समझ लें कि आपका संसार के एक बहुत बड़े विद्वान् से परिचय हो गया । हीरो
जी को जाननेवालों में अधिकांश का मत है कि हीरो जी पहले जन्म में
विक्रमादित्य के नव-रत्नों में एक अवश्य रहे होंगे और अपने किसी पाप के
कारण उनका इस जन्म में हीरो जी की योनि प्राप्त हुई। अगर हीरो जी का
आपसे परिचय हो जाए, तो आप यह समझ लीजिए कि उन्हें एक मनुष्य अधिक
मिल गया, जो उन्हें अपने शौक से प्रसन्नतापूर्वक एक हिस्सा दे सके ।
हीरो जी ने दुनिया देखी है। यहाँ यह जान लेना ठीक होगा कि हीरो जी की
दुनिया मौज और मस्ती की ही बनी है। शराबियों के साथ बैठकर उन्होंने
शराब पीने की बाजी लगाई है और हरदम जीते हैं । अफीम के आदी नहीं हैं; पर
अगर मिल जाए तो इतनी खा लेते हैं, जितनी से एक खानदान का खानदान स्वर्ग
की या नरक की यात्रा कर सके। भंग पीते हैं तब तक, जब तक उनका पेट न भर
जाए । चरस और गाँजे के लोभ में साधु बनते-बनते बच गए। एक बार एक
आदमी ने उन्हें संखिया खिला दी थी, इस आशा से कि संसार एक पापी के भार
से मुक्त हो जाए; पर दूसरे ही दिन हीरो जी उसके यहाँ पहुँचे । हँसते हुए उन्होंने
कहा—यार, कल का नशा नशा था । रामदुहाई, अगर आज भी वह नशा करवा
देते, तो तुम्हें आशीर्वाद देता। लेकिन उस आदमी के पास संखिया मौजूद न थी ।
हीरो जी के दर्शन प्रायः चाय की दुकान पर हुआ करते हैं । जो पहुँचता है,
वह हीरो जी को एक प्याला चाय का अवश्य पिलाता है । उस दिन जब हम लोग
चाय पीने पहुँचे, तो हीरो जी एक कोने में आँखें बंद किए हुए बैठे कुछ सोच रहे
थे । हम लोगों में बातें शुरू हो गईं, और हरिजन-आंदोलन से घूमते-फिरते बात
आ पहुँची दानवराज बलि पर । पंडित गोवर्धन शास्त्री ने आमलेट का टुकड़ा
मुँह में डालते हुए कहा- "भाई, यह तो कलियुग है । न किसी में दीन है न
ईमान । कौड़ी - कौड़ी पर लोग बेईमानी करने लग गए हैं। अरे, अब तो
लिखकर भी लोग मुकर जाते हैं। एक युग था, जब दानव तक अपने वचन