PrashnaPaanchali
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Author | Sunita Budhiraja |
Publisher | Vani Prakashan |
Item Weight | 0.0 kg |
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द्रौपदी साधारण है, किन्तु साधारण नहीं है। कई माने में वह असाधारण है, किन्तु असाधारण भी नहीं है। वह कुल-परम्परा का निर्वाह है। वह कुल-परम्परा की नियति है और वहीं कुल-परम्परा न निबाह पाने की भी नियति है। यह तो विडम्बना है कि वह एक साथ पाँच पतियों की पत्नी होकर भी अर्जुन के प्रति अधिक अनुरक्त रह पाती है, भीम का आदर पाती है और उसके उपरान्त भी कृष्ण को अपना सखा मान पाती है। कृष्ण और द्रौपदी का प्रेम अनकहा, किन्तु गहरा है। वह उदार प्रेम है। किन्तु सीमाओं के भीतर पनपता है और ये निःशब्द सीमाएँ स्वयं कृष्ण और द्रौपदी ने अपने लिए खींची हैं। न तो द्रौपदी के मन का उल्लास अर्जुन को बाँध पाता है और न ही उसकी पीड़ा उसे रोक पाती है। अर्जुन अपनी पीड़ा में खोए हुए वनवास में भी अपने लिए एक और वनवास चुन लेते हैं- ऐसी परिस्थिति आन खड़ी होती है। द्रौपदी मानिनी है, रूप गर्विता है, अहंकारी है, ज्वाला जैसी जलती है, किन्तु छली नहीं है। इसीलिए तो परिणाम की परवाह किये बिना ही दुर्योधन को ‘अन्धे का पुत्र भी अन्धा होता है’- कहकर आहत करती है। कितने ही तो रूप हैं- द्रौपदी के। उन्हें इस पुस्तक के माध्यम से, इसके विभिन्न पात्रों के माध्यम से, कवयित्री ने शब्दबद्ध करने का प्रयास किया है। ‘प्रश्न-पांचाली’ के प्रश्न कहीं आपके मन को स्पर्श करेंगे, आपके मन में भी कुछ प्रश्न पैदा करेंगे क्योंकि ये प्रश्न जितने उस युग की पांचाली के हैं, उतने ही आज की ‘पांचाली’ के भी तो हैं।
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