Look Inside
Oos Ki Boond
Oos Ki Boond

Oos Ki Boond

Regular price ₹ 371
Sale price ₹ 371 Regular price ₹ 399
Unit price
Save 7%
7% off
Tax included.
Size guide

Pay On Delivery Available

Rekhta Certified

7 Day Easy Return Policy

Oos Ki Boond

Oos Ki Boond

Cash-On-Delivery

Cash On Delivery available

Plus (F-Assured)

7-Days-Replacement

7 Day Replacement

Product description
Shipping & Return
Offers & Coupons
Read Sample
Product description

राही मासूम रज़ा ने ‘आधा गाँव’ लिखकर हिन्दी-उपन्यास में अपना एक सुनिश्चित स्थान बनाया था। ‘टोपी शुक्ला’ उनका दूसरा सफल उपन्यास था और यह उनका तीसरा उपन्यास है।
यह उपन्यास हिन्दू-मुस्लिम समस्या को लेकर शुरू होता है लेकिन आख़िर तक आते-आते पाठकों को पता चलता है कि हिन्दू-मुस्लिम समस्या वास्तव में कुछ नहीं है, यह सिर्फ़ राजनीति का एक मोहरा है, और जो असली चीज़ है वह है इंसान के पहलू में धड़कनेवाला दिल और उस दिल में रहनेवाले जज़्बात; और इन दोनों का मजहब और जात से कोई ताल्लुक नहीं। इसीलिए साम्प्रदायिक दंगों के बीच सच्ची इंसानियत की तलाश करनेवाला यह उपन्यास एक शहर और एक मजहब का होते हुए भी हर शहर और हर मजहब का है ! एक छोटी-सी ज़िंदगी की दर्द भरी दास्तान जो ओस की बूँद की तरह चमकीली और कम-उम्र है। Rahi masum raza ne ‘adha ganv’ likhkar hindi-upanyas mein apna ek sunishchit sthan banaya tha. ‘topi shukla’ unka dusra saphal upanyas tha aur ye unka tisra upanyas hai. Ye upanyas hindu-muslim samasya ko lekar shuru hota hai lekin aakhir tak aate-ate pathkon ko pata chalta hai ki hindu-muslim samasya vastav mein kuchh nahin hai, ye sirf rajniti ka ek mohra hai, aur jo asli chiz hai vah hai insan ke pahlu mein dhadaknevala dil aur us dil mein rahnevale jazbat; aur in donon ka majhab aur jaat se koi talluk nahin. Isiliye samprdayik dangon ke bich sachchi insaniyat ki talash karnevala ye upanyas ek shahar aur ek majhab ka hote hue bhi har shahar aur har majhab ka hai ! ek chhoti-si zindagi ki dard bhari dastan jo os ki bund ki tarah chamkili aur kam-umr hai.

Shipping & Return
  • Sabr– Your order is usually dispatched within 24 hours of placing the order.
  • Raftaar– We offer express delivery, typically arriving in 2-5 days. Please keep your phone reachable.
  • Sukoon– Easy returns and replacements within 7 days.
  • Dastoor– COD and shipping charges may apply to certain items.

Offers & Coupons

Use code FIRSTORDER to get 10% off your first order.


Use code REKHTA10 to get a discount of 10% on your next Order.


You can also Earn up to 20% Cashback with POP Coins and redeem it in your future orders.

Read Sample

क्रम

भूमिका . . . . . . . . . . . . . . . . . . 9
डायरी का पन्ना . . . . . . . . . . 11
अ पर ओ की मात्रा . . . . . . . . 13
स . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 24
क पर ई मी मात्रा . . . . . . . . 51
ब पर ऊ की मात्रा . . . . . . . . 76
चन्द्र बिन्दु . . . . . . . . . . . . 89
द . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 138
बयान-ए-तहरीरी . . . . . . . . . 151

भूमिका

बड़े-बूढ़ों ने कई बार कहा कि गालियाँ न लिखो। जो 'आधा गाँव' में इतनी गालियाँ न होतीं तो तुम्हें साहित्य अकादमी का पुरस्कार अवश्य मिल गया होता। परन्तु मैं यह सोचता हूँ कि क्या मैं उपन्यास इसलिए लिखता हूँ कि मुझे साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिले? पुरस्कार मिलने में कोई नुक़सान नहीं, फ़ायदा ही है। परन्तु मैं साहित्यकार हूँ। मेरे पात्र यदि गीता बोलेंगे तो मैं गीता के श्लोक लिखूँगा। और वे गालियाँ बकेंगे तो मैं अवश्य उनकी गालियाँ भी लिखूँगा। मैं कोई नाज़ी साहित्यकार नहीं हूँ कि अपने उपन्यास के शहरों पर अपना हुक्म चलाऊँ और हर पात्र को एक शब्दकोश थमाकर हुक्म दे दूँ कि जो एक शब्द भी अपनी तरफ़ से बोले तो गोली मार दूँगा। कोई बड़ा-बूढ़ा यह बताए कि जहाँ मेरे पात्र गाली बकते हैं, वहाँ मैं गालियाँ हटाकर क्या लिखूँ? डॉट-डॉट-डॉट? तब तो लोग अपनी तरफ़ से गालियाँ गढ़ने लगेंगे! और मुझे गालियों के सिलसिले में अपने पात्रों के सिवा किसी पर भरोसा नहीं है। 

क पर ई की मात्रा

शहरनाज़ तो पढ़ने के लिए अलीगढ़ चली गई। और यहाँ शहला अपनी पागल दादी, कुढ़ते हुए दादा, उदास माँ और साँय-साँय करते हुए घर के साथ अकेली रह गई। अब जी घबराए तो वहशत के घर भी नहीं जा सकती थी। क्योंकि अब वहाँ जाने का कोई बहाना-वहाना नहीं था। वह वहाँ जाकर यह तो नहीं कह सकती थी न कि वहशत की एक झलक देखने या उसकी आवाज़ सुनने या उस पलंग पर लेट जाने के लिए आई है, जिस पर वहशत लेटता है।

शहला का प्यार बिलकुल पर्दे की बूबू था। वह उसे दुनिया भर के ख़यालों के गूदड़ में छिपाकर रखती थी। बस, जब आसपास कोई न होता तो दिमाग़ के तमाम दरवाज़े और दरीचे ख़ूब जमका के बन्द करने के बाद वह गुदड़ी की पोटली निकालती और उसमें से अपने प्यार के टुकड़े अलग करती और अपनी उँगलियों से सहला-सहलाकर उनकी शिकनें दूर करती...

वह, उन्होंने शेर पढ़ते-पढ़ते माथे पर आए हुए बालों को ऊपर उठाया...। वह, उन्होंने अन्दर आने से पहले अम्माँ को आवाज़ दी...

ब पर ऊ की मात्रा

ठाकुर शिवनारायण सिंह वकील ने शहला की तरफ़ से इस्तिगासा दायर कर दिया। यह ख़बर शहर में आग की तरह फैल गई। ठाकुर साहब का ख़याल भी यही था। बेचारों की वकालत चलती नहीं थी। इसलिए जब उन्हें पता चला कि शहला एक हिन्दू वकील तलाश कर रही है और हिन्दू वकील मिल नहीं रहा है तो उन्होंने कोशिश की कि वह मुक़दमा उन्हें मिल जाए। उनका ख़याल था कि यह मुक़दमा लेते ही मुसलमानों के सारे मुक़दमे उनके पास आ जाएँगे। उनका यह ख़याल ग़लत भी नहीं था। वकालतनामे पर दस्तख़त करते ही वह शहर के मुसलमानों के लीडर हो गए और हयातुल्लाह अंसारी बड़ी मुश्किल में फँस गए।

"इ मुसलमान वकील तो साले पैदाइशी गाँडू हैं।" बद्रुद्दीन 'मुफ़लिस' ग़ाज़ीपुरी ने रफ़ी बीड़ी सुलगाते हुए कहा।

"ठाकुर फिरो ठाकुर है।" मजीन रिक्शेवाले ने कहा।

"अउर का। इ लोग तो बात पर जान देवे में कानी कब से मशहूर चले आ रहें।" कोई और बोला।

 

 

Customer Reviews

Based on 1 review
100%
(1)
0%
(0)
0%
(0)
0%
(0)
0%
(0)
S
S.S.
Oos Ki Boond

Awesome

Related Products

Recently Viewed Products