अनुक्रम
निठल्लेपन का दर्शन - 7
शिवशंकर का केस - 12
रामभरोसे का इलाज - 18
युग की पीड़ा का सामना - 25
राष्ट्र का नया बोध - 31
प्रेमी के साथ एक सफर - 37
वाक आउट ! स्लीप आउट ! ईट आउट ! - 43
सर्वोदय-दर्शन - 48
साहब का सम्मान - 51
पहला पुल - 56
'कोई सुनने वाला नहीं है !' - 61
निठल्लेपन का दर्शन
निठल्ला भी कहीं डायरी लिखने का काम करेगा?
असम्भव !
उसी तरह अविश्वसनीय जैसे यह कि तुलसीदास 'रामचरितमानस' की पांडुलिपि
टाइप करते पाए गए।
या यह कि तुकाराम पियानो पर अपने अभंग गाते थे। मगर निठल्ले-निठल्ले में फर्क है-
जैसे इनकमटैक्स विभाग के ईमानदार और शिक्षा विभाग के ईमानदार में फर्क
होता है— गो ईमानदार दोनों हैं।
यह निठल्ला कुछ भिन्न किस्म का था। पूरी डायरी पढ़ने से ऐसा मालूम होता
है कि वह ‘निठल्ला' के नाम से इसलिए बदनाम था कि वह लगातार कोई काम नहीं
करता था। अगर वह लगातार चौराहे पर खड़े होकर लोगों को मुँह चिढ़ाने का काम
साहब का सम्मान
जो अखबार में छपा :
कल रात को स्थानीय बड़ा बाजार स्थित 'शान्ति भवन' में नगर के कपड़ा-
व्यापारियों की ओर से आयकर अफसर श्री देवेन्द्र कुमार 'सरसिज' का उनकी
साहित्य-सेवाओं के लिए सम्मान किया गया। 'सरसिज' जी का अभिनन्दन करते
हुए ‘वस्त्र-व्यापारी संघ' के अध्यक्ष सेठ बाबूलालजी ने कहा कि 'सरसिज' जी
एक महान कवि और लेखक हैं; उन्होंने उत्तम कविताओं से माँ भारती की
गोद भरी है। कालिदास और रवीन्द्र की महान परम्परा के कवि को पाकर यह नगर
धन्य हो गया है। सम्मान का उत्तर देते हुए 'सरसिज' जी ने कहा कि मेरा सम्मान
करके आपने वास्तव में कला की देवी माँ सरस्वती का सम्मान किया है। मैं
आपका अत्यन्त आभारी हूँ। मैं नहीं जानता कि किस प्रकार आपकी इस कृपा का
बदला चुकाऊँ ।
नगर-पालक
सभा भरी थी ।
मंच पर से म्युनिसिपैलिटी में विरोधी दल के नेता और शहर के सबसे बड़े
गल्ला व्यापारी सेठ गोपालदास भाषण दे रहे थे । वे सिर पर टोपी की जगह कफन
लपेटे थे।
उनके मुख से ऐसे अंगारे बरस रहे थे कि दो बार माइक फेल हो चुका था। एक
बार उन्होंने क्रोध से ऐसा झपटा मारा कि वह नीचे गिर पड़ा।
वे कह रहे थे, ‘“मैं आज कफन लपेटकर निकला हूँ। यह कफन मैंने सत्ताधारी
पक्ष के नेता की दुकान से खरीदा है। मैंने जनता के भले के लिए प्राण देने का
संकल्प कर लिया है। मैं सरेआम जनता के हितों की हत्या नहीं देख सकता । जनता
ने हमें चुनकर म्युनिसिपैलिटी में भेजा है और हमारा नैतिक कर्तव्य है कि हम
उसकी सेवा करें। जब-जब हमने सत्ता सँभाली, हमने सर्वस्व त्यागकर नगर की