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About Book

बसंत त्रिपाठी की कविता अपनी भाषा भंगिमा और सुस्पष्ट अभिव्यक्ति के लिए अलग से चिह्नित की जाती रही है। वाम-दृष्टि उनकी कविता का सहज हासिल है।रेखांकित किया जाना चाहिए कि यह संग्रह, उनकी कविता के इन अवयवों के विकास का परिचय है। खासतौर पर बीत गये दशक में भारतीय समाज, राजनीति और अस्मिता की चेतना में आए फर्क की तफसील एवं पड़ताल इन कविताओं में उपलब्ध है। वे इन कविताओं के साथ एक विस्तृत वितान रचते हैं जिसमें भोजन से गायब होता स्वाद, विकास दर की हास्यास्पदता, किसान आत्महत्या, आश्वासन और आशंकाओं की सहजीविता के सवालों को उठाते हैं। नये दिन की आशा, सामाजिकता के विश्वास और आत्मावलोकन की परिधियों तक भी यात्रा है। इधर के जीवन की विद्रूपताओं, विडम्बनाओं और असहायताओं को वे लाँघकर नहीं जाते, उन्हें कुछ करीब से देखते हैं, उनका विश्लेषण करते हैं और उनसे निबटने की युक्ति भी काव्यमाध्यम में पिरोते हैं। अपने समय में उपस्थित कवि का यह एक व्यापक क्षेत्रफल है, जिसमें समय और काल अपनी ऐतिहासिकता में समकाल के समक्ष पेश है। इसलिए यह एक कालखण्ड का दस्तावेज है। आज जबकि हिन्दी कविता में विचार और पक्षधरता के संकट की बात बार-बार की जा रही है तब ये कविताएँ जैसे एक सकारात्मक उत्तर और साक्ष्य देने का प्रयास करती हैं। और यह इतना सुचिन्तित है कि वे एक पूरी कविता ही कुछ भी अलौकिक नहीं होता' सूत्र पर सम्भव करते हैं।

बसंत त्रिपाठी का यह संग्रह सदी के नये और तीसरे दशक के प्रारम्भ में पाठकों के बीच सर्जनात्मक व्यग्रता और अमर आशा के बीच एक सम्बन्ध की तरह भी देखा जा सकता है। जो सवाल इस महादेश के सामने पिछले वर्षों में अचानक आ गये हैं, उनपर भी विचार के लिए एक जगह बना सकेगा। यही आग्रह उनकी इन कविताओं में पैवस्त है।।

About Author

बंसत त्रिपाठी

बंसत त्रिपाठी मौजूदा दौर के चर्चित कवि हैं। सहसा कुछ नहीं होता, उत्सव की समाप्ति के बाद जैसे कविता संग्रहों के साथ कहानी और आलोचना में भी आप सिद्धहस्त हैं। सूत्र सम्मान 2007 और लक्ष्मण प्रसाद मंडलोई सम्मान 2011 से सम्मानित कवि बसंत त्रिपाठी का नागरिक समाज इनका नवीनतम संग्रह है।

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