Naari Utpiran Ki Kahaniyan
Author | Giriraj Sharan |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt Ltd |
ISBN | 978-8173151408 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.2 kg |
Edition | 1st |
Naari Utpiran Ki Kahaniyan
नारी हमारे समाज का एक ऐसा प्राणी है, जिसके पास जीवन से मृत्यु तक अपना घर नहीं होता । पैदा होती है तो पिता की छत के नीचे एक पराई अमानत की भांति या अतिथि के रूप में दिन गुजारती है, युवा होती है तो पति के घर एक सेविका की तरह जीवन व्यतीत करती है । बूढी होती है तो बेटे की छत के नीचे एक अनुपयोगी वस्तु की तरह मौत की घड़ियाँ गिनती रहती है ।पिता का घर, पति का घर और अंत में बेटे का घर-ये तीनों घर, जहाँ जीवन के पहले क्षण में उसकी आँख खुली और अंतिम क्षण में उसने प्राण त्याग दिए कोई भी उसका अपना नहीं था । इन तीनों घरों से जुड़ी हुई उत्पीड़न, संत्रास और प्रताड़ना की जो कहानी है, यदि हम एक-एक करके उसकी परतें खोलना चाहें तो आँसुओं, आहों, पीड़ाओं और विपदाओं का ऐसा मरुस्थल सामने आएगा, जिसमें तपती हुई धूप, जलती हुई रेत, मुरझाई हुई आकांक्षाओं और पुरुषों द्वारा किए गए अत्याचारों के अतिरिक्त शायद कोई और चीज कम ही मिले ।प्रश्न यह है कि नारी के जीवन में बदलते हुए इन घरों के इतिहास के पीछे वे क्या कारण हैं जिनसे उसे एक स्वतंत्र और सुखमय जीवन प्राप्त करने में निरंतर निराशा का सामना करना पड़ता है? नारी उत्पीड़न से संबंधित ये मार्मिक कहानियाँ हृदय को द्रवित करती हैं । पाठक इन्हें पढ़कर उन परिस्थितियों के संबंध में विचार करने को बाध्य हो जाएँगे जो कल भी घातक थीं और आज भी हैं ।
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