Look Inside
Mulk : Patkatha
Mulk : Patkatha
Mulk : Patkatha
Mulk : Patkatha
Mulk : Patkatha
Mulk : Patkatha
Mulk : Patkatha
Mulk : Patkatha

Mulk : Patkatha

Regular price ₹ 139
Sale price ₹ 139 Regular price ₹ 150
Unit price
Save 7%
7% off
Tax included.
Size guide

Pay On Delivery Available

Rekhta Certified

7 Day Easy Return Policy

Mulk : Patkatha

Mulk : Patkatha

Cash-On-Delivery

Cash On Delivery available

Plus (F-Assured)

7-Days-Replacement

7 Day Replacement

Product description
Shipping & Return
Offers & Coupons
Read Sample
Product description

मैंने 17 साल की उम्र में जब ‘गरम हवा’ देखी थी तो मुझे अपना सिर्फ़ भारतीय होना पता था। मैं ‘मुल्क’ देखते हुए रोती रही, क्योंकि अब मुझे पता है कि मुसलमान होना क्या होता है और उसके साथ क्या-क्या आता है।
—राना सफ़वी, इतिहासकार
‘मुल्क’ देखकर मेरा मन किया कि मैं ख़ुशी से चिल्लाऊँ। बहुत ज़ोर से।
—शुभ्रा गुप्ता, फ़‍िल्म समीक्षक, ‘इंडियन एक्सप्रेस’
निडर, दमदार और सम्मोहक।
—सैबल चटर्जी, फ़‍िल्म समीक्षक, ‘एनडीटीवी’
‘मुल्क’ ने बतौर भारतीय मुझे गर्व और ख़ुशी से भर दिया।
—विशाल ददलानी, गायक-संगीतकार
कमाल की फ़‍िल्म। हर शॉट, हर डायलॉग और हर पल बिल्कुल परफ़ेक्ट।
—फ़े डिसूज़ा, पत्रकार
‘मुल्क’ की चमक और साहस स्तब्ध कर देते हैं। हमारे समय की सबसे महत्त्वपूर्ण फ़‍िल्मों में से एक।
—शेखर गुप्ता, पत्रकार एवं सम्पादक Mainne 17 saal ki umr mein jab ‘garam hava’ dekhi thi to mujhe apna sirf bhartiy hona pata tha. Main ‘mulk’ dekhte hue roti rahi, kyonki ab mujhe pata hai ki musalman hona kya hota hai aur uske saath kya-kya aata hai. —rana safvi, itihaskar
‘mulk’ dekhkar mera man kiya ki main khushi se chillaun. Bahut zor se.
—shubhra gupta, fa‍ilm samikshak, ‘indiyan eksapres’
Nidar, damdar aur sammohak.
—saibal chatarji, fa‍ilm samikshak, ‘enditivi’
‘mulk’ ne bataur bhartiy mujhe garv aur khushi se bhar diya.
—vishal dadlani, gayak-sangitkar
Kamal ki fa‍ilm. Har shaut, har daylaug aur har pal bilkul parfekt.
—fe disuza, patrkar
‘mulk’ ki chamak aur sahas stabdh kar dete hain. Hamare samay ki sabse mahattvpurn fa‍ilmon mein se ek.
—shekhar gupta, patrkar evan sampadak

Shipping & Return
  • Sabr– Your order is usually dispatched within 24 hours of placing the order.
  • Raftaar– We offer express delivery, typically arriving in 2-5 days. Please keep your phone reachable.
  • Sukoon– Easy returns and replacements within 7 days.
  • Dastoor– COD and shipping charges may apply to certain items.

Offers & Coupons

Use code FIRSTORDER to get 10% off your first order.


Use code REKHTA10 to get a discount of 10% on your next Order.


You can also Earn up to 20% Cashback with POP Coins and redeem it in your future orders.

Read Sample

भीड़ के ख़िलाफ़, देश के लिए

मुझे अपना कॉलेज याद आता है। एक कवि सम्मेलन था और मंच पर एक मशहूर कवि । मोहब्बत की कविताएँ पढ़ते-पढ़ते उसने राजनैतिक होने की कोशिश की और आईआईटी के सैकड़ों लड़के-लड़कियों के सामने पूरे जोश और जश्न के साथ यह प्रसिद्ध लाइन कही—हम मानते हैं कि सारे मुसलमान आतंकवादी नहीं होते लेकिन सारे आतंकवादी मुसलमान ही क्यों होते हैं?

तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हॉल गूँज गया था। उस भीड़ में जो मुसलमान होंगे, वे घर लौटकर रोए होंगे क्या ? या उन्हें आदत पड़ गई होगी तब तक ? क्या यातना की भी आदत पड़ जाती है ? उनमें से भी कोई बना होगा क्या आतंकवादी ? क्या उससे मोहब्बत की जा सकती है जो आप पर लगातार शक करता है?

सारे आतंकवादी मुसलमान ही क्यों होते हैं, यह सवाल बहुत से लोगों को जायज़ भी लग सकता है क्योंकि यह पूछना बहुत कम लोगों को आता है कि आतंकवाद दरअसल है क्या ?

यह बहुत साल बाद ‘मुल्क' की आरती मोहम्मद को पूछना था कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि इस्लामिक आतंकवाद के अलावा जितनी भी तरह के आतंकवाद हैं, उन्हें हम बस कुछ और बोल देते हैं, उन्हें मामूली मान लेते हैं ? क्या ऊँची जाति के लोग सुलूक सदियों से दलितों के साथ करते आए हैं, वो आतंकवाद नहीं है ? क्या आदिवासियों की हत्या आतंकवाद नहीं है ?

ख़ैर, उस रात वहाँ पढ़े-लिखे और बुद्धिमान माने जाने वाले लड़के-लड़कियाँ ही थे—यह तथ्य मुझे आज भी विचलित कर देता है। यह भी कि उनमें मुसलमान बहुत कम थे। मुसलमान थे कहाँ क्योंकि सुना था कि मदरसों में भी 4-5 प्रतिशत ही पढ़ते थे और आतंकवादी भी बने होंगे तो दो-चार हज़ार से ज़्यादा क्या बने होंगे? क्या जानबूझकर हमसे अलग रहते थे ? क्यों उनके मोहल्ले अलग थे ? क्या वे दुश्मन थे हमारे? क्या सचमुच पाकिस्तान के जीतने पर पटाखे बजाते थे ? वे बढ़ेंगे तो मार डालेंगे क्या हमें ?

 

फेड इन
अन्दर । मदरसा तालीम - उल - इस्लाम – दिन

एक ब्लैकबोर्ड का टाइट क्लोज़ अप और एक
आदमी की आवाज़ सुनाई देती हुई जो दिख नहीं रहा
है। एक हाथ उर्दू में ‘ख़ुदा' लिखता है और उसके
आगे उर्दू में ‘जुदा' लिखता है। दोनों के बीच बहुत
ज़रा-सा अन्तर—एक बिन्दु का स्थान ।

टीचर (O.S.)- यहाँ नुक़्ता लगाएँगे तो ?
बच्चे - ख़ुदा ।
टीचर - यहाँ पे नुक़्ता लगाएँगे तो ?
बच्चे - जुदा ।
फ़िल्म के क्रेडिट्स आते हैं। साथ में वॉइस ओवर । गाने के बोल ।

V.O.
ए जी सब आया एक ही घाट से और उतरा एक ही बाट या बीच में
दुविधा पड़ गई तो हो गए बारा बाट। अरे कहाँ से आया कहाँ जाओगे,
ख़बर करो अपने तन की। कोई सद्गुरु मिले तो भेद बतावे भूल जावे
अन्तर की ।

अली मोहम्मद -तुम्हें बाइज़्ज़त बरी करके ले जाऊँगा यहाँ से ।
बिलाल -सलाम भाईजान।
अन्दर । कार – दिन - अली मोहम्मद कार चला रहा है। आरती शान्त बैठी
है। रास्ते में आगे जाम लगा है। वो कार रोक देता है।
अन्दर | कार – दिन - अली मोहम्मद आरती की तरफ़ देखता है और
उसकी जगह उसे शाहिद दिखायी देता है। वो पुराना
कुछ सोचने लगता है। ये कुछ महीनों पहले की बात
है जब वो और शाहिद कार में साथ थे और जाम लगा था।
अली मोहम्मद -यहाँ तो इतना ट्रैफिक नहीं होता था ।
शाहिद -वो दरगाह है ना आगे । वहाँ उर्स है।
अली मोहम्मद - अरे उर्स है तो फिर सड़कों पर क्यों मनाया जा रहा है ?
शाहिद -बड़े अब्बू, जहाँ दरगाह होगी वहीं मनेगा ना उर्स ।
अली मोहम्मद- अरे जब दरगाह बनी तब जगह थी शहर में, लोग कम थे। अब नहीं
है ऐसा । वक़्त के साथ रिवाज़ भी बदलने चाहिए।

 

Customer Reviews

Be the first to write a review
0%
(0)
0%
(0)
0%
(0)
0%
(0)
0%
(0)

Related Products

Recently Viewed Products