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Mrityu Kaise Hoti Hai? Phir Kya Hota Hai?
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मृत्यु जीवन का अटल सत्य है; यह अवश्यंभावी है। काल को जीतना लगभग दुर्लभ एवं असंभव है। इसलिए जीव मृत्यु के भय में रहता है। अनगिनत-अनजाने प्रश्न और शंकाएँ उसके मन-मस्तिष्क को जकड़े रहती हैं। विज्ञान लेखक श्री राजेंद्र तिवारी ने गहन शोध और अध्ययन करके जटिल व दुरूह 'मृत्यु' के बारे में विवेचना की है।प्रस्तुत पुस्तक उनकी अब तक के प्रयासों से प्राप्त तथ्यों और उनसे निसृत निष्कर्षों की अभिव्यक्ति है। शरीर के अंदर कुछ रहता अवश्य है, जिसके बाहर जाते ही शरीर मृत हो जाता है। वह कुछ क्या है? प्राणों के निष्क्रमण की प्रकिया कष्टदायी है अथवा वस्त्र बदलने की भाँति एक सहज क्रिया? मृत्यु के उपरांत नया परिवेश प्राप्त होने तक आत्मा कहाँ विचरण करती है? क्या पुनर्जन्म होता है? क्या लोक और परलोक हैं? कर्म का सिद्धांत क्या है? क्या सद्कर्म-दुष्कर्म अर्थात् कर्म के रूप भाग्य और भविष्य की रचना करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं? क्या स्वर्ग और नरक हैं? यदि हैं तो कहीं और हैं अथवा इसी पृथ्व��� पर?पुस्तक में मृत्यु के समय एवं मृत्युपर्यंत के अनुभव प्रमाण सहित प्रस्तुत किए गए हैं। संदेश यह है कि 'सुधर जाओ अन्यथा मृत्यु के समय व पश्चात् कष्ट-ही-कष्ट हैं।' मृत्यु से भयभीत नहीं होना है, बल्कि जिसने भी मृत्यु के रहस्य को जान लिया, अज्ञात व अंधकारमय प्रश्नों से परदा हटकर ज्ञान के प्रकाश से अवगत हो गया, उसे मृत्यु से कभी भी भय नहीं लगेगा।______________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रमप्रस्तावना —Pgs 5लेखक का निवेदन —Pgs 7मृत्यु से भय क्यों —Pgs 15मृत्यु के बाद का रहस्य एवं विज्ञान —Pgs 19चार्वाक दर्शन एवं इसका उद्भव —Pgs 24स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर, जीवात्मा एवं आत्मा —Pgs 29मृत्यु के समय कैसा लगता है —Pgs 34• शरीर से प्राण निकलने के पूर्व की स्थिति —Pgs 35• शरीर से प्राण निकलने के बाद की स्थिति —Pgs 37शरीर से बाहर निकलने का मेरा एक निजी अनुभव —Pgs 40जीवात्माओं का मुझ (लेखक) से संपर्क —Pgs 42मेरी माँ की मृत्यु का आभास —Pgs 44मृत्यु के पूर्व का आभास —Pgs 50शरीर से प्राण निकलने के रास्ते —Pgs 52मृत्यु के बाद जीवात्मा की उपस्थिति का आभास —Pgs 53• नीरजा कांत चौधरी के अनुभव —Pgs 53मृत्यु के पश्चात् विदेशियों की जीवात्माओं के अनुभव —Pgs 55मृत्यु के तुरंत बाद के अनुभव —Pgs 65'एस्ट्रल प्रोजेक्शन' क्या है? —Pgs 69दुर्घटनाओं से हुई मृत्यु के अनुभव —Pgs 70युक्तेश्वर गिरि की मृत्यु के पश्चात् शिष्य योगानंद से वार्त्ता —Pgs 72मग्नमयी देवी ने की पति की जीवात्मा से चर्चा —Pgs 75• बंकिमचंद्रजी की परलोकगत आत्मा का अनुभव —Pgs 78परलोक : क्या और कैसा —Pgs 86मृत्यु के पश्चात्-स्थिति पर आचार्य श्रीराम शर्मा का मत —Pgs 88क्या भूत-प्रेत होते हैं? —Pgs 91• प्रेतों के संदर्भ में —Pgs 92• प्रेत अधिकतर कहाँ रहते हैं —Pgs 93• निरंजन दास धीर का एक अनुभव —Pgs 93एक हजार वर्ष की प्रेत-योनि में रहा पीर सुलेमान —Pgs 95मृत्यु के पश्चात् स्थिति पर स्वामी अभेदानंदजी का मत —Pgs 98• मृत्यु के पश्चात्-जीवात्मा का अस्तित्व —Pgs 103• जीवात्मा का आह्व‍ान —Pgs 104• अमेरीकियों के मध्य स्वामी अभेदानंदजी —Pgs 105• जीवात्मा को बुलाने में मध्यस्थ की भूमिका —Pgs 107जीवात्मा से संपर्क करने के अनेक साधन हैं —Pgs 112• प्लेंचिट प्रक्रिया —Pgs 112• ऑटोमैटिक राइटिंग —Pgs 115• परलोक से जीवात्माओं के संदेश आते हैं —Pgs 115जीवात्मा की हुई परिवार से मिलने की इच्छा —Pgs 117मृत्यु के पश्चात् संत की अात्मा का प्रकटीकरण —Pgs 119प्रिय स्वजन का मृत्यु के पश्चात् दर्शन —Pgs 122सूक्ष्म शरीर : बाहर निकलने का एक अनुभव —Pgs 123डॉक्टर रेमंड ए. मूडी का मत —Pgs 125मृत्यु के द्वार तक पहुँचे मरीजों के कुछ अनुभव —Pgs 128मृत्यु के पश्चात् जीवात्माएँ तत्काल अपने शरीर में वापस आईं —Pgs 130दुर्गा मथरानी की जीवात्मा ने किया परलोक का वर्णन —Pgs 136अजामिल का प्रसंग —Pgs 142'गरुड़ पुराण' में मृत्यु के बाद का क्या प्रसंग है? —Pgs 147'ब्रह्म‍‍सूत्र' में मृत्यु के समय की स्थिति —Pgs 158मृत्यु के पश्चात् कर्मों के फल पर एक चिंतन —Pgs 161परकाया प्रवेश —Pgs 162• चूडाला का प्रसंग —Pgs 163• आदि शंकराचार्य का परकाया प्रवेश —Pgs 163• मत्स्येंद्रनाथजी का परकाया प्रवेश —Pgs 165• परकाया प्रवेश के अन्य उदाहरण —Pgs 167मृत्यु की तैयारी कैसे करें —Pgs 171मृत्यु का अभ्यास —Pgs 174समय का खजाना —Pgs 179बौद्ध व जैन धर्म के ��ईने में परलोक —Pgs 182• बौद्ध-मत —Pgs 182• जैन-मत —Pgs 183क्या पुनर्जन्म होता है? —Pgs 185पुनर्जन्म का सिद्धांत सार्वभौमिक सत्य है —Pgs 187पुनर्जन्म में पूर्व जन्म की विस्मृति क्यों हो जाती है? —Pgs 190पूर्व जन्म एवं पुनर्जन्म पर डॉ. ब्रियान वीस के प्रयोग —Pgs 192प्रेम के कारण पुनर्जन्म में पुनर्मिलन —Pgs 199कर्म-फल का परिणाम पुनर्जन्म —Pgs 206पूर्वजन्म की स्मृतियों के प्रसंग —Pgs 208निष्कर्ष —Pgs 217मृत्यु के समय कैसी मानसिकता निर्मित करनी चाहिए? —Pgs 219मृत्यु के पश्चात् परलोक व सुख मिलने के उपाय —Pgs 221परलोक संबंधी धारणाएँ स्वयं की मान्यताओं पर आधारित हैं —Pgs 225'श्रीमद्भगवतगीता' में मृत्यु और कर्म-बंधन से मुक्ति के संदेश —Pgs 227प्रश्नोत्तर —Pgs 238उद्‍धृत पुस्तक व लेखकों के संदर्भ —Pgs 244

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