फ़ेह्रिस्त
- 1 क़िन्दील-ए-मह-ओ-मेह्र का अफ़्लाक पे होना
- 2 उसी कनारा-ए-हैरत-सरा को जाता हूँ
- 3 गदा-ए-शह्र-ए-आइन्दा तिही-कासा मिलेगा
- 4 आँखों में सौग़ात समेटे अपने घर आते हैं
- 5 लहर-लहर आवारगियों के साथ रहा
- 6 हाथ हमारे भी शामिल थे पर्बत काटने वालों में
- 7 ये जो फूट बहा है दरिया फिर नहीं होगा
- 8 दश्त ले जाए कि घर ले जाए
- 9 अब किससे कहें भूल गए हैं नगर अपना
- 10 इन ऊँची सुर्ख़ फ़सीलों का दरवाज़ा किस पर वा होगा
- 11 पूरे चाँद की सज-धज है शहज़ादों वाली
- 12 सूरज अभी कुह्र1 में छुपा था
- 13 बदन का बोझ लिए रूह का अ’ज़ाब लिए
- 14 इक गीत मेरे पास हवा से पुराना है
- 15 शह्र-ज़ाद हैं गलियों की पहचान भी रखते हैं
- 16 कोई निशाँ सर-ए-दीवार-ओ-बाम अपना नहीं
- 17 ये जो इक परछाईं सी है पैराहन में कहीं
- 18 मगर इससे आगे जो तारीक सहरा है वो कौन सा है
- 19 गीतों से जब भर जाता हूँ, गाने लगता हूँ
- 20 थामी हुई है काहकशाँ अपने हाथ से
- 21 आइना अ’क्स-ए-रुख़-ए-यार के आ जाने से
- 22 नक़्श कुछ उभारे हैं फ़र्श-ए-ख़ाक पर मैंने
- 23 रफ़्ता-रफ़्ता इक हुजूम-ए-कहकशाँ बनता गया
- 24 अच्छा सा कोई सपना देखो और मुझे देखो
- 25 वो मेरे सामने मल्बूस क्या बदलने लगा
- 26 घर से निकला तो मुलाक़ात हुई पानी से
- 27 हवा-ओ-अब्र को आसूदा-ए-मफ़्हूम कर देखूँ
- 28 पत्थरों में आइना मौजूद है
- 29 कभी तेग़-ए-तेज़ सपुर्द की कभी तोहफ़ा-ए-गुल-ए-तर दिया
- 30 और दीवार-ए-चमन से मैं कहाँ तक जाऊँगा
- 31 जब शाम हुई मैंने क़दम घर से निकाला
- 32 भर जाएँगे जब ज़ख़्म तो आऊँगा दोबारा
- 33 नख़्ल-ए-उम्मीद पे हम सब्र का फल देखेंगे
- 34 मुझको ये रन्ज खाए जाता है
- 35 रात ढलने के बा’द क्या होगा
- 36 सहर होगी तारे चले जाएँगे
- 37 वो सुब्ह-ए-मुनाजात कब आएगी
- 38 रख लेते हैं दिल बीच ज़बाँ पर नहीं लाते
- 39 राह के पेड़ भी फ़र्याद किया करते हैं
- 40 हम चल दिए और दोस्त हमारा नहीं आया
- 41 मेरी कशती टूट रही है सर से ऊँचा पानी है
- 42 क़सम इस आग और पानी की
- 43 ख़्वाब अच्छे नहीं इस उ’म्र में घर के लोगो
- 44 सुब्ह के शोर में नामों की फ़रावानी में
- 45 जाने उसने क्या देखा शह्र के मनारे में
- 46 कोयल कूकू करती है और पत्ते रंग बदलते हैं
- 47 ये रस्म-ए-अन्बिया ज़िन्दा हमीं सादात रक्खेंगे
- 48 आग और तरह की है धुआँ और तरह का
- 49 बाग़ था मुझमें और फ़व्वारा फूल में था
- 50 अपने मुकाशिफ़ों के साथ अपनी कहानियों के साथ
- 51 बादल गरजे दीवारों में बिजली चमकी आईने पर
- 52 ऐसा भी कोई मेह्रबाँ जो मिरे साथ चल सके
- 53 आँख तारीक मिरी जिस्म है रौशन मेरा
- 54 इसी ज़मीन पर एक ख़ुतन है जिस में इक आहू रहता है
- 55 औ’रत ख़ुश्बू और नमाज़ें अब है यही मा’मूल मिरा
- 56 वो सर-ए-बाम क्यों नहीं आता
- 57 इन्साँ की ख़ुशी का इस्तिआ’रा
- 58 तेज़ चलने लगी हवा मुझमें
- 59 अल्लाह की ज़मीं पर मौसम कमाल आया
- 60 ख़ाक से चश्मा-ए-सद-रंग उबलते देखा
- 61 आदमी को रह दिखाने के लिए मौजूद हैं
- 62 आहट सी कानों में गूँजे और कहीं खो जाए
- 63 राह से ना-आश्ना भी राहबर होने लगे
- 64 नींद का सोना मिरी आँखों से पिघला देर तक
- 65 आँगन तमाम नीम के पत्तों से भर गया
- 66 ये होंठ तिरे रेशम ऐसे
- 67 मुन्हदिम होती हुई आबादियों में फ़ुर्सत-ए-यक-ख़्वाब होते
- 68 सब्ज़ अंधेरों सा आँचल
- 69 चाँद आफ़ाक़ शजर देखने वाले के लिए
- 70 फिर वो बरसात ध्यान में आई
- 71 अपने होने पे प्यार आता है
- 72 आज ख़िड़की से जो बाहर देखा
1
क़िन्दील-ए-मह-ओ-मेह्र1 का अफ़्लाक2 पे होना
कुछ इस से ज़ियादा है मिरा ख़ाक पे होना
1 चाँद और सूरज का चराग़ 2 आस्मानों, क्षितिज
हर सुब्ह निकलना किसी दीवार-ए-तरब1 से
हर शाम किसी मन्ज़िल-ए-ग़मनाक2 पे होना
1 आनंद 2 दुख देने वाली मन्ज़िल
या एक सितारे का गुज़रना किसी दर से
या एक पियाले का किसी चाक पे होना
लौ देती है तस्वीर निहाँ-ख़ाना-ए-दिल1 में
लाज़िम नहीं इस फूल का पोशाक पे होना
1 दिल का तहख़ाना
ले आएगा इक रोज़ गुल-ओ-बर्ग1 भी 'सर्वत'
बाराँ2 का मुसलसल3 ख़स-ओ-ख़ाशाक4 पे होना
1 फूल-पत्ते 2 बरसात 3 लगातार 4 घास-पूस
उसी कनारा1-ए-हैरत-सरा2 को जाता हूँ
मैं इक सवार हूँ कोह-ए-निदा3 को जाता हूँ
1 किनारा, कोना 2 हैरतों से भरी जगह 3 एक काल्पनिक पहाड़ जो लोगों को आवाज़ देता है
क़रीब ही किसी ख़ेमे से आग पूछती है
कि इस शिकोह1 से किस क़ुर्तबा2 को जाता हूँ
1 रोब-दाब 2 एक शह्र का नाम
कहाँ गए वो ख़ुदायान1-ए-दिर्हम-ओ-दीनार2
कि इक दफ़ीना3-ए-दश्त-ए-बला4 को जाता हूँ
1 बहुत से ख़ुदा 2 सिक्कों के नाम 3 गड़ा हुआ ख़ज़ाना 4 मुसीबतों से भरा वीराना
वो दिन भी आए कि इन्कार कर सकूँ 'सर्वत'
अभी तो मा’बद1-ए-हम्द-ओ-सना2 को जाता हूँ
1 इ’बादत की जगह 2 प्रशंसा
गदा-ए-शह्र-ए-आइन्दा1 तिही-कासा2 मिलेगा
तजावुज़3 और तन्हाई की हद पर क्या मिलेगा
1 भविष्य के शह्र का भिखारी 2 जिसको प्याला ख़ाली हो 3 अतिक्रमण
सियाही फेरती जाती हैं रातें बह्र-ओ-बर1 पे
इन्ही तारीकियो से मुझको भी हिस्सा मिलेगा
1 समुद्र और ज़मीन 2 अंधेरा
मैं अपनी प्यास के हमराह1 मश्कीज़ा2 उठाए
कि इन सैराब3 लोगों में कोई प्यासा मिलेगा
1 साथ 2 मश्क 3 तृप्त
रिवायत1 है कि आबाई2 मकानों पर सितारा
बहुत रौशन मगर नमनाक-ओ-अफ़्सुर्दा3 मिलेगा
1 किसी की कही बात, परंपरा 2 पुश्तैनी 3 रोता हुआ और दुखी
शजर1 हैं और इस मिट्टी से पैवस्ता2 रहेंगे
जो हम में से नहीं आसाइशों3 से जा मिलेगा
1 पेड़ 2 जुड़े हुए 3 सुख-सुविधाएँ
रिदा-ए-रेशमीं1 ओढ़े हुए गुज़रेगी मशअ’ल2
निशिस्त-ए-संग3 पे हर सुब्ह गुलदस्ता मिलेगा
1 रेशमी कपड़ा 2 मशाल 3 जहाँ पत्थर रखा हो
वो आईना जिसे उ’ज्लत1 में छोड़ आए थे साथी
न जाने बाद-ए-ख़ाक-आसार2 में कैसा मिलेगा
1 जल्दी 2 धूल भरी हवा
आँखों में सौग़ात1 समेटे अपने घर आते हैं
बजरे लागे बंदरगाह पे सौदागर आते हैं
1 उपहार
गन्दुम1 और गुलाबों जैसे ख़्वाब शिकस्ता2 करते
दूर-दराज़ ज़मीनों वाले शह्र में दर3 आते हैं
1 गेहूँ 2 तोड़ना 3 अन्दर आना
शहज़ादी तुझे कौन बताए तेरे चराग़-कदे1 तक
कितनी मेहराबें पड़ती हैं, कितने दर2 आते हैं
1 चराग़ों का घर 2 दरवाज़ा
बन्द-ए-क़बा-ए-सुर्ख़1 की मन्ज़िल उन पर सह्ल हुई है
जिन हाथों को आग चुरा लेने के हुनर आते हैं
1 लाल लिबास के बंधन
लहर-लहर आवारगियों के साथ रहा
बादल था और जल-परियों के साथ रहा
कौन था मैं ये तो मुझको मा’लूम नहीं
फूलों पत्तों और दियों के साथ रहा
मिलना और बिछड़ जाना किसी रस्ते पर
इक यही क़िस्सा आदमियों के साथ रहा
वो इक सूरज सुब्ह तलक मिरे पहलू में
अपनी सब नाराज़गियों के साथ रहा
सबने जाना बहुत सुबुक1 बेहद शफ़्फ़ाफ़2
दरिया तो आलूदगियों3 के साथ रहा
1 हल्का 2 पारदर्शी 3 प्रदूषण
मैं अपनी जिला-वतनी1 के पच्चीस बरस
पंखुड़ियों और तीतरयों के साथ रहा
1 देस-निकाला
हाथ हमारे भी शामिल थे पर्बत काटने वालों में
देखो हमने राह बनाई बे-तर्तीब1 सवालों में
1 बिखरा हुआ
रात और दिन के उलझाव में कौन है वो आहिस्ता-ख़िराम1
जिसके रंग हैं दीवारों पर जिसकी गूँज ख़यालों में
1 धीरे धीरे चलने वाला
दरवाज़ों में लोग खड़े थे और हमारी आँखों ने
पानी का चेहरा देखा था मिट्टी की तिमसालों1 में
1 प्रतिबिंबों
कुन्ज1-ए-ख़िज़ाँ-आसार2 में ‘सर्वत’ आज ये किसकी याद आई
एक शुआ-ए’-सब्ज़3 अचानक तैर गई पातालों में
1 कोना, एकाँत 2 जहाँ पतझड़ हो 3 हरी किरन
ये जो फूट बहा है दरिया फिर नहीं होगा
रू-ए-ज़मीं1 पर मन्ज़र2 ऐसा फिर नहीं होगा
1 ज़मीन की सतह 2 दृश्य
ज़र्द1 गुलाब और आईनों को चाहने वाली
ऐसी धूप और ऐसा सवेरा फिर नहीं होगा
1 पीला
घायल पंछी तेरे कुन्ज में आन गिरा है
इस पंछी का दूसरा फेरा फिर नहीं होगा
मैंने ख़ुद को जम्अ’1 किया पच्चीस बरस में
ये सामान तो मुझसे यक्जा2 फिर नहीं होगा
1,2 इकट्ठा
शहज़ादी तिरे माथे पर ये ज़ख़्म रहेगा
लेकिन इसको चूमने वाला फिर नहीं होगा
‘सर्वत’ तुम अपने लोगों से यूँ मिलते हो
जैसे इन लोगों से मिलना फिर नहीं होगा
दश्त1 ले जाए कि घर ले जाए
तेरी आवाज़ जिधर ले जाए
1 वीराना
अब यही सोच रही हैं आँखें
कोई ता-हद्द-ए-नज़र1 ले जाए
1 देखने की हद
मन्ज़िलें बुझ गईं चेहरों की तरह
अब जिधर राहगुज़र1 ले जाए
1 रस्ता
तेरी आशुफ़्ता-मिज़ाजी1 ऐ दिल
क्या ख़बर कौन नगर ले जाए
1 पागलपन
साया-ए-अब्र1 से पूछो ‘सर्वत’
अपने हमराह2 अगर ले जाए
1 बादल की छाया 2 साथ
अब किससे कहें भूल गए हैं नगर अपना
जंगल के अंधेरों में कटा है सफ़र अपना
बदलीं जो हवाएँ तो पलट कर वहीं आए
ढ़ूँडा उन्ही शाख़ों में परिन्दों ने घर अपना
फूलों से भरे कुन्ज1 तो इक ख़्वाब ही ठहरे
ये साया-ए-दीवार-ए-ख़िज़ाँ2 है मगर अपना
1 एकांत 2 पतझड़ की दीवार का साया
आँखों से उलझने लगे बीते हुए मौसम
क्या नाम लिखें शह्र की दीवार पर अपना
ख़ामोश फ़सीलों1 पे हुमकती हुई बेलें
दिखला ही दिया मौसम-ए-गुल2 ने असर अपना
1 दीवारें 2 बहार