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Mewar Ka Itihas (1818 to 1854)
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जे.सी. ब्रुक्स कृत मेवाड़ का इतिहास (1818 ई. से 1854 ई.) : केप्टन जे.सी. ब्रूक्स की इस पुस्तक का प्रधान विषय 1818 ई. से लेकर 1857 ई. के ब्रिटिश साम्राज्य विरोधी जन विप्लव के पहिले के काल तक का मेवाड़ का ऐतिहासिक विवरण है। पुस्तक के प्रारम्भिक भाग में मेवाड़ का भौगोलिक वर्णन और सिसोदिया राजवंश का प्राचीन इतिहास संक्षेप में दिया गया है। 1818 ई. में भारत का अंग्रेज सरकार के साथ संधि करके और उसकी अधीनता स्वीकार करके महाराणा ने लूटमार द्वारा मेवाड़ की अर्थव्यवस्था को चोपट करने वाले और महाराणा के खजाने को खाली करके उसको दीनहीन बनाने वाले मराठों और पिंडारी लूटेरों के आक्रमणों से अपने अवशिष्ट राज्य की सीमा को सुरक्षित करवा लिया। किन्तु महाराणा के सन्मुख आंतरिक समस्यायें अधिक विकट थी। राज्य का शासन प्रबन्ध ठप्प था। राज्य की खालसा भूमि सिमट कर गिरवा घाटी तक ���ह गई थी। राजस्व से होने वाली आय नहीं के तुल्य थी। महाराणा स्वयं दीनहीन हो चुका था। उसकी स्थिति असहाय और सामथ्र्यहीन शासक की थी, जो भ्रष्ट मंत्रियों और कर्मचारियों पर निर्भर था। वह साहूकारों आदि से उधार लेकर अपना निर्वाह कर रहा था। महाराणा भीमसिंह सर्वथा अक्षम था। सारे राज्य में आंतरिक लुटेरे तथा अराजक और उपद्रवी तत्व हावी होते थे। इस स्थिति में केप्टन जेम्स टॉड मेवाड़ में अंग्रेज सरकार का प्रथम पॉलिटिकल एजेन्ट नियुक्त हो कर आया था।टॉड ने शक्तिहीन और असहाय महाराणा की गरिमामय स्थिति और शक्ति को पुनः जीवित करने और मेवाड़ की आन्तरिक शान्ति-व्यवस्था और अर्थव्यस्था का पुनरुद्धार करने के लिये अपने लगभग चार वर्षीय कार्यकाल में भरसक कोशिश की। उसने विद्रोही जागीरदारों को उनके द्वारा अराजकता काल में हड़पी गई। राज्य की खालसा भूमि को वापस लौटाने और महाराणा के साथ पारस्परिक अधिकारों और कर्तव्यों के झगड़े को सुलझाने के लिए एक कौलनामा बनवाकर उसको स्वीकार करने और तद्नुसार चलने के लिए बाध्य किया। राज्य के पहाड़ी भाग में अपनी कर-व्यवस्था चलाने वाले भील समुदाय को प्रतिबंधित कर दिया तथा लुटमार से पीड़ित होकर मेवाड़ से चले गये। किसानों और व्यापारियों को अंग्रेज सरकार की गारंटी देकर वापस बुलाया। पुस्तक के लेखक केप्टन जे.सी. ब्रूक्स ने टॉड के जाने के बाद के मेवाड़ की आंतरिक स्थितियों, महाराणा और उसके सरदारों के बीच निरन्तर चलने वाले विवाद और कलह, उनके बीच अंग्रेज प्रतिनिधियों द्वारा करारनामों द्वारा स्थायी समझौता कराने के प्रयासों, जागीरदारों के बीच आपस में सीमा सम्बन्धी झगड़े, पर्वतों भूमि भाग में टॉड द्वारा भीलों को कर व्यवस्था प्रतिबंध लगाने से उत्पन्न भीलों के व्यापक उपद्रवों और उनको दबाने के लिये अंग्रेज अधिकारियों द्वारा बारबार पहाडी भाग में की गई सैन्य कार्यवाहियों आदि घटनाओं का विस्तृत वृतान्त दिया है���1818 ई. से 1857 ई. के बीच के काल में हुए मेवाड़ के शासक भीमसिंह, जवानसिंह, सरदारसिंह और स्वरूपसिंह सभी शासन प्रबन्ध के प्रति उदासीन, विषयवासनालीन और भ्रष्ट बना रहा। पहाड़ी भू क्षेत्र में भीलों द्वारा किये गये व्यापक विद्रोह को अंग्रेज सरकार द्वारा की गई सैन्य कार्यवाहियों का भीलों द्वारा मुकाबला किया गया। अंत में अंग्रेज सरकार द्वारा उनकी मांगे मानकर उनके साथ समझौता करना पड़ा। उसके बाद पहाड़ी क्षेत्र में अंग्रेज सरकार द्वारा अपनी सुरक्षा और उस क्षेत्र में स्थायी शांति की दृष्टि से खेरवाड़ा और कोटड़ा में भीलों की भर्ती करके मेवाड़ भील कोर पलटने कायम की गईं। इस भांति 1857 के अंग्रेजी साम्राज्य विरोधी भारतीय जन-विप्लव के पहले तक की मेवाड़ की पृष्ठभूमि दी गई है। लेखक ने 1857 ई. में मेवाड़ में हुई घटनाओं का जिक्र नहीं किया है। 1857 ई.के अंग्रेजी साम्राज्य विरोधी भारतीय विप्लव में महाराणा नें अंग्रेजों का साथ दिया और सरकारों को भी तदनुसार आदेश दिये थे, किन्तु जो सरदार महाराणा के विरोधी थे उन्होंने असहयोग किया। विप्लव के दौरान मेवाड़ के कई सरदारों ने विद्रोहियों एवं क्रांतिकारियों को धन, शस्त्र, खाद्य सामग्री आदि देकर सहायता प्रदान की।RelatedTRUE
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