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Mere Dil Mere Musafir
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फ़ैज़ को ज़िन्दगी और सुन्दरता से प्यार है—भरपूर प्यार, और इसीलिए जब उन्हें मानवता पर मौत और बदसूरती की छाया मँडराती दिखाई देती है, वह उसको दूर करने के लिए बड़ी-से-बड़ी आहुति देने से भी नहीं चूकते। उनका जीवन इसी पवित्र संघर्ष का प्रतीक है और उनकी शाइरी इसी का संगीत।
‘मेरे दिल मेरे मुसाफ़िर’ फ़ैज़ अहमद ‘फ़ैज़’ की नज़्मों और ग़ज़लों का संग्रह है। इस संग्रह की ख़ासियत यह है कि रचनाओं को उर्दू और नागरी दोनों लिपियों में रखा गया है। अपनी रचनात्मक भावभूमि पर इस संग्रह की कविताएँ फ़ैज़ के ‘जीवन-काल के विभिन्न चरणों की प्रतीक हैं और यह चरण उनके पूरे जीवन और पूरी कविता के चरित्र का ही स्वाभाविक अंग है।’ इंसान और इंसानियत के हक़ में उन्होंने एक मुसलसल लड़ाई लड़ी है और अवाम के दु:ख-दर्द और उसके ग़ुस्‍से को दिल की गहराइयों में डूबकर क़लमबन्द किया है। इसके लिए हुक्मरानों का हरेक कोप और हर सज़ा क़बूल करते हुए आजीवन क़ुर्बानियाँ दीं।
ज़ाहिरा तौर पर उनकी शायरी सच्चे इंसानों की हिम्मत, इंसानियत से उनके प्यार और एक ख़ूबसूरत भविष्य के लिए जीत के विश्वास से पैदा हुई है; और इसीलिए उनकी आवाज़ दुनिया के हर संघर्षशील आदमी की ऐसी आवाज़ है ‘जो क़ैदख़ानों की सलाख़ों से भी छन जाती है और फाँसी के फन्दों से भी गूँज उठती है।’ Faiz ko zindagi aur sundarta se pyar hai—bharpur pyar, aur isiliye jab unhen manavta par maut aur badsurti ki chhaya mandrati dikhai deti hai, vah usko dur karne ke liye badi-se-badi aahuti dene se bhi nahin chukte. Unka jivan isi pavitr sangharsh ka prtik hai aur unki shairi isi ka sangit. ‘mere dil mere musafir’ faiz ahmad ‘faiz’ ki nazmon aur gazlon ka sangrah hai. Is sangrah ki khasiyat ye hai ki rachnaon ko urdu aur nagri donon lipiyon mein rakha gaya hai. Apni rachnatmak bhavbhumi par is sangrah ki kavitayen faiz ke ‘jivan-kal ke vibhinn charnon ki prtik hain aur ye charan unke pure jivan aur puri kavita ke charitr ka hi svabhavik ang hai. ’ insan aur insaniyat ke haq mein unhonne ek musalsal ladai ladi hai aur avam ke du:kha-dard aur uske gus‍se ko dil ki gahraiyon mein dubkar qalamband kiya hai. Iske liye hukmranon ka harek kop aur har saza qabul karte hue aajivan qurbaniyan din.
Zahira taur par unki shayri sachche insanon ki himmat, insaniyat se unke pyar aur ek khubsurat bhavishya ke liye jit ke vishvas se paida hui hai; aur isiliye unki aavaz duniya ke har sangharshshil aadmi ki aisi aavaz hai ‘jo qaidkhanon ki salakhon se bhi chhan jati hai aur phansi ke phandon se bhi gunj uthti hai. ’


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अनुक्रम


1. फ़ैज़ के बारे में - 5  
2. दिले-मन मुसाफ़िरे-मन - 13  
3. फूल मुरझा गए हैं सारे - 17  
4. कोई आशिक़ किसी महबूबा से - 19  
5. मख़दूम की याद में-1 - 23  
6. मख़दूम की याद में-2 - 25  
7. एक दक्खनी ग़ज़ल - 27  
8. यब्क़ा वजह-ए-रब्बका - 29  
9. मंज़र - 33  
10. दो नज़्में - 35  
11. लाओ तो क़त्लनामा मिरा - 43  
12. सहल यूँ राह-ए-ज़िन्दगी की है - 45  
13. तीन आवाजें - 47  
14. ये मातम-ए-वक़्त की घड़ी है - 53  
15. हम तो मजबूर-ए-वफ़ा हैं - 59  
16. ग़ज़ल - 61  
17. मक़्तल में न मस्जिद न ख़राबात में कोई - 63  
18. पेरिस - 65  
19. क़व्वाली - 67  
20. क्या करें - 71  
21. नज़-ए-हाफ़िज़ - 75  
22. फ़लिस्तीनी शुटुदा जो परदेस में काम आये - 77  
23. फ़लिस्तीनी बच्चे के लिए लोरी - 81  
24. मेरे मिलने वाले - 83

दिले-मन मुसाफ़िरे-मन

मिरे दिल, मिरे मुसाफ़िर
हुक्म सादिर'
हुआ फिर से
कि वतन-बदर हों हम तुम
दें गली-गली सदाएँ
करें रुख नगर - नगर का
कि सुराग़ कोई पाएँ
किसी यार-ए-नामा - बर' का
हर इक अजनबी से पूछें
जो पता था अपने घर का
सर-ए-कू-नाशनायाँ'
हमें दिन से रात करना 

सहल यूँ राह-ए-ज़िन्दगी की है


सहल' यूँ राह-ए-ज़िन्दगी की है
हर क़दम हमने आशिक़ी की है
हमने दिल में सजा लिये गुलशन
जब बहारों ने बेरुख़ी की है
ज़हर से धो लिये हैं होंट अपने
लुत्फ़-ए-साक़ी ने जब कमी की है
तेरे कूचे में बादशाही की
जब से निकले गदागरी' की है
बस वही सुर्ख़रू हुआ जिसने
बहर-ए-ख़ू में शनावरी' की है
“जो गुज़रते थे दाग़ पर सदमे "
अब वही कैफ़ियत सभी की है।
                    लन्दन, 1979

 

क्या करें

मिरी-तिरी निगाह में
जो लाख इन्तज़ार हैं
जो मेरे-तेरे तन बदन में
लाख दिल फ़िगार' हैं
जो मेरी तेरी उँगलियों की बेहिसी' से
सब क़लम नज़ार' हैं
जो मेरे-तेरे शहर में
हर इक गली में
मेरे-तेरे नक़्श-ए-पा के बेनिशाँ मज़ार हैं
जो मेरी तेरी रात के
सितारे ज़ख़्म-ज़ख़्म हैं
जो मेरी तेरी सुब्ह  के
गुलाब चाक-चाक हैं

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