अनुक्रम
1. फ़ैज़ के बारे में - 5
2. दिले-मन मुसाफ़िरे-मन - 13
3. फूल मुरझा गए हैं सारे - 17
4. कोई आशिक़ किसी महबूबा से - 19
5. मख़दूम की याद में-1 - 23
6. मख़दूम की याद में-2 - 25
7. एक दक्खनी ग़ज़ल - 27
8. यब्क़ा वजह-ए-रब्बका - 29
9. मंज़र - 33
10. दो नज़्में - 35
11. लाओ तो क़त्लनामा मिरा - 43
12. सहल यूँ राह-ए-ज़िन्दगी की है - 45
13. तीन आवाजें - 47
14. ये मातम-ए-वक़्त की घड़ी है - 53
15. हम तो मजबूर-ए-वफ़ा हैं - 59
16. ग़ज़ल - 61
17. मक़्तल में न मस्जिद न ख़राबात में कोई - 63
18. पेरिस - 65
19. क़व्वाली - 67
20. क्या करें - 71
21. नज़-ए-हाफ़िज़ - 75
22. फ़लिस्तीनी शुटुदा जो परदेस में काम आये - 77
23. फ़लिस्तीनी बच्चे के लिए लोरी - 81
24. मेरे मिलने वाले - 83
दिले-मन मुसाफ़िरे-मन
मिरे दिल, मिरे मुसाफ़िर
हुक्म सादिर'
हुआ फिर से
कि वतन-बदर हों हम तुम
दें गली-गली सदाएँ
करें रुख नगर - नगर का
कि सुराग़ कोई पाएँ
किसी यार-ए-नामा - बर' का
हर इक अजनबी से पूछें
जो पता था अपने घर का
सर-ए-कू-नाशनायाँ'
हमें दिन से रात करना
सहल यूँ राह-ए-ज़िन्दगी की है
सहल' यूँ राह-ए-ज़िन्दगी की है
हर क़दम हमने आशिक़ी की है
हमने दिल में सजा लिये गुलशन
जब बहारों ने बेरुख़ी की है
ज़हर से धो लिये हैं होंट अपने
लुत्फ़-ए-साक़ी ने जब कमी की है
तेरे कूचे में बादशाही की
जब से निकले गदागरी' की है
बस वही सुर्ख़रू हुआ जिसने
बहर-ए-ख़ू में शनावरी' की है
“जो गुज़रते थे दाग़ पर सदमे "
अब वही कैफ़ियत सभी की है।
लन्दन, 1979
क्या करें
मिरी-तिरी निगाह में
जो लाख इन्तज़ार हैं
जो मेरे-तेरे तन बदन में
लाख दिल फ़िगार' हैं
जो मेरी तेरी उँगलियों की बेहिसी' से
सब क़लम नज़ार' हैं
जो मेरे-तेरे शहर में
हर इक गली में
मेरे-तेरे नक़्श-ए-पा के बेनिशाँ मज़ार हैं
जो मेरी तेरी रात के
सितारे ज़ख़्म-ज़ख़्म हैं
जो मेरी तेरी सुब्ह के
गुलाब चाक-चाक हैं