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Marwar ke Rajvansh ki Saanskritik Paramprayen vol. 1, 2
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मार���ाड़ के राजवंश की सांस्कृतिक परम्पराएं (भाग 1, 2) : राजस्थान के महिमामंडित इतिहास के निर्माण में मारवाड़ के राठौड़-राजवंश का योगदान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण रहा है। इस वंश के सुयोग्य शासकों ने देश की राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय भाग लेकर कीर्तिमान प्रतिष्ठित किये हैं। उनकी पारिवारिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परम्पराओं की अपनी एक विशिष्ट पहचान एवं मर्यादा बनी हुई है, जिससे अनुशासित होकर यह राजवंश आज भी उनका परिपालन करने में हर्ष तथा गौरव का अनुभव करता है। उन समस्त परम्पराओं को एक ही इकाई में समेट कर विवेचित करने के उद्देश्य से ही इस महान् एवं मौलिक ग्रंथ का लेखन-कार्य किया गया है ताकि जिज्ञासु पाठक-समाज उनका पूर्णतः अभिज्ञान कर सके।प्रस्तुत शोधग्रंथ दो भागों और सात अध्यायों में विभक्त है। इसका प्रथम अध्याय राठौड़ों के पूर्ववर्ती राजवंशों का सामान्य परिचय देने के पश्चात् इस वंश के प्रमुख शासकों की क्रमबद्ध उपलब्धियों का लेखा-जोखा प्रस्तुत करता है, जिसे विद्वान् लेखक ने ‘ऐतिहासिक पृष्ठभूमि’ के कलेवर में विवेचित किया है। ग्रंथ के द्वितीय अध्याय में जोधपुर-राजवंश के दरबारी शिष्टाचारों का विवरण दिया गया है, जिसके अंतर्गत मारवाड़ की सिरायतों और ताजीमों आदि के नाम एवं उनके स्तर की सप्रमाण सामग्री जुटाई गई है। तृतीय अध्याय की विषय-वस्तु इस राजवंश के समारोहों तथा उनकी सांस्कृतिक परम्पराओं का विस्तृत विवेचन प्रस्तुत करती है, जिन्हें सुव्यवस्थित ढंग से संवारने तथा उदहृत करने में लेखक को विशेष परिश्रम करना पड़ा है। ग्रंथ का चतुर्थ अध्याय राजवंश के वैवाहिक सम्बन्धों की सामाजिक परम्पराएँ निरूपित करता है, तो पंचम अध्याय उनकी शोकसम्बन्धी परम्पराओं के विशिष्ट नियमों की जानकारी कराता है। षष्ठ अध्याय का प्रमुख प्रतिपाद्य इस वंश के धार्मिक एवं सांस्कृतिक पर्वों का महत्त्व प्रदर्शित करता है, जबकि सप्तम अ��्याय में राजपरिवार के सांस्कृतिक संस्कारों का विस्तृत विवरण दिया गया है। ग्रंथ के दोनों परिशिष्ट क्रमशः मारवाड़ के नरेशों की वंशावली एवं ताजीमी सरदारों की सूची से सम्बन्धित है, जिनमें कई प्रकार की नवीन जानकारियाँ मिलती हैं। ग्रंथ की संदर्भसूची शोधप्रज्ञों के लिए विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण और उपादेय है क्योंकि उसके आधार पर वे शोधक्षेत्र के नये आयाम अन्वेषित करने की प्रेरणाएँ ले सकते हैं।कुल मिलाकर यह ग्रंथ लेखक की निष्ठा, लगन और शोधवृत्ति की जागरूकता का प्रत्यक्ष प्रमाण है, जिसके प्रस्तुतीकरण द्वारा उसने मारवाड़ के राजवंश की सांस्कृतिक परम्पराओं का एक ‘अक्षय ज्ञानभण्डार’ एवं ‘समग्र विश्वकोष’ रूपायित करने की दिशा में अद्भुत सफलता प्राप्त की है।RelatedTRUE
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