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Lok Dhunon se raag Nirmiti
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About Book

प्रस्तुत पुस्तक में लोकधुन की कुछ अंश तक परिभाषा करने वाला तथा कला-संस्कृति में उसकी भूमिका दिखाने वाला लेखन साधना शिलेदार के हाथों हुआ है। लोकसंगीत, लोक-साहित्य और अपनी-अपनी मातृभाषा, यह जनमानस को अनायास मिली एक ज्ञानरूपी पूँजी है। इस पूँजी के आधार पर मूलत: जनमानस सहज रूप में लोक-संगीत एवं लोक-साहित्य का जतन भी करता है और उसमें रचनात्मक वृद्धि भी होती है। यह पुस्तक बताती है कि किस तरह कोई नव रचनाकार इस दिशा मे काम करता है, वह हवा में महल नहीं बनाता, कुमार गन्धर्व के जीवन में जो सृजन का उपक्रम घटित हुआ उसमें निर्मिति के एक-एक मुकाम को समझ कर, उस प्रक्रिया को मान्यता देकर, उसके अनुसार राग-निर्मिति का यथा रीति प्रयत्न कुमार जी के बाद सर्वप्रथम साधना शिलेदार ने किया है। नये राग बनाने की दिशा और प्रयासों को साधना शिलेदार समझाती हैं। कुछ के प्रयत्न कलात्मक होते हैं तो कुछ केवल व्यावहारिक। कलात्मक निर्मिति साकार करने के लिए सौन्दर्य-दृष्टि और अभिव्यक्ति का अपना क्या वैशिष्ट्य है ये भी यहाँ बताया गया है। कैसे जब राग-संगीत और लोक-संगीत में एकरूपता दिखने लगती है, लोक-धुन में रागरूप और राग में धुन मिलती है तब उन मूल्यों की सत्यता प्रमाणित होती है साधना शिलेदार यहाँ विस्तार से बताती हैं।

About Author

साधना शिलेदार हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की सुप्रसिद्ध गायिका तथा अध्येता हैं। वसन्तराव नाईक शासकीय कला एवं समाजविज्ञान संस्था, नागपुर (महाराष्ट्र) में वह संगीत का अध्यापन कर रही हैं। ख़्याल गायकी में उन्होंने पीएच-डी प्राप्त की है। सुरसिंगार संसद, मुम्बई ने उन्हें उनकी गायन कला के लिए 'सुरमणि' उपाधि से नवाज़ा है। गायन की शिक्षा उन्हें पिता डॉ. विवेक गोखले से प्राप्त हुई है।

आगरा घराने के गायक पं. मनोहरराव कासलीकर जी से तथा ग्वालियर घराने के गायक पं. चन्द्रशेखर रेले जी और विदुषी आरती अंकलीकर-टिकेकर जी से उन्हें लम्बे समय के लिए गायन की तालीम प्राप्त हुई। साधना शिलेदार ने देश के कई संगीत समारोहों में अपने गायन की प्रस्तुति की है। अपने कार्यक्रमों में वह ख़्याल गायकी के साथ उपशास्त्रीय संगीत, निर्गुणी भजन तथा नाट्य संगीत को भी प्रस्तुत करती आयी हैं। उन्होंने विशिष्ट विषय पर केन्द्रित कार्यक्रम भी प्रस्तुत किये हैं, इनमें पं. कुमार गन्धर्व पर केन्द्रित 'निर्भय निर्गुण', सुश्री किशोरी आमोणकर पर 'स्वरार्थरमणी', आदि कुछ उल्लेखनीय प्रस्तुतियाँ हैं। संगीत से सम्बन्धित विषयों पर उन्होंने लेखन किया है। विदर्भ के 41 बन्दिशकारों की 200 बन्दिशों का उनका संकलन सीडी के साथ कहत गुनिजन' नाम से 2013 में प्रकाशित हुआ है।

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