Look Inside
Khidki To Main Ne Khol Hi Li
Khidki To Main Ne Khol Hi Li

Khidki To Main Ne Khol Hi Li

Regular price ₹ 199
Sale price ₹ 199 Regular price ₹ 250
Unit price
Save 20%
20% off
Tax included.
Size guide

Pay On Delivery Available

Rekhta Certified

7 Day Easy Return Policy

Khidki To Main Ne Khol Hi Li

Khidki To Main Ne Khol Hi Li

Cash-On-Delivery

Cash On Delivery available

Plus (F-Assured)

7-Days-Replacement

7 Day Replacement

Product description
Shipping & Return
Offers & Coupons
Read Sample
Product description

About Book

प्रस्तुत किताब रेख़्ता नुमाइन्दा कलाम’ सिलसिले के तहत प्रकाशित प्रसिद्ध उर्दू शाइर शारिक़ कैफ़ी का काव्य-संग्रह है| शारिक़ कैफ़ी की शाइरी बहुत ही सूक्ष्म भावनाओं की शाइरी है जिसमें इन्सानी मन के ऐसे भावों को बेहद सरल भाषा में अभिव्यक्त किया गया है जो हमारे मन में आते तो अक्सर हैं मगर कई बार हम उनकी मौजूदगी को पहचानने से चूक जाते हैं| यह किताब देवनागरी लिपि में प्रकाशित हुई है और पाठकों के बीच ख़ूब पसंद की गई है|

About Author

शारिक़ कैफ़ी (सय्यद शारिक़ हुसैन) बरेली (उत्तर प्रदेश) में पहली जून 1961 को पैदा हुए। वहीं बी.एस.सी. और एम.ए. (उर्दू) तक शिक्षा प्राप्त की। उनके पिता कैफ़ी वजदानी (सय्यद रिफ़ाक़त हुसैन) मशहूर शाइ’र थे, इस तरह शाइ’री उन्हें विरासत में हासिल हुई। उनकी ग़ज़लों का पहला मज्मूआ’ ‘आ’म सा रद्द-ए-अ’मल’ 1989 में छपा। इस के बा’द, 2008 में दूसरा ग़ज़ल-संग्रह ‘यहाँ तक रौशनी आती कहाँ थी’ और 2010 में नज़्मों का मज्मूआ ‘अपने तमाशे का टिकट’ प्रकाशित हुआ। इन दिनों बरेली ही में रहते हैं।शारिक़ कैफ़ी (सय्यद शारिक़ हुसैन) बरेली (उत्तर प्रदेश) में पहली जून 1961 को पैदा हुए। वहीं बी.एस.सी. और एम.ए. (उर्दू) तक शिक्षा प्राप्त की। उनके पिता कैफ़ी वजदानी (सय्यद रिफ़ाक़त हुसैन) मशहूर शाइ’र थे, इस तरह शाइ’री उन्हें विरासत में हासिल हुई। उनकी ग़ज़लों का पहला मज्मूआ’ ‘आ’म सा रद्द-ए-अ’मल’ 1989 में छपा।

 

Shipping & Return
  • Sabr– Your order is usually dispatched within 24 hours of placing the order.
  • Raftaar– We offer express delivery, typically arriving in 2-5 days. Please keep your phone reachable.
  • Sukoon– Easy returns and replacements within 7 days.
  • Dastoor– COD and shipping charges may apply to certain items.

Offers & Coupons

Use code FIRSTORDER to get 10% off your first order.


Use code REKHTA10 to get a discount of 10% on your next Order.


You can also Earn up to 20% Cashback with POP Coins and redeem it in your future orders.

Read Sample


तर्तीब

1 रोज़ का इक मश्ग़ला कुछ देर का
2 ख़याल सा है कि तू सामने खड़ा था अभी
3 तिरी तरफ़ से तो हाँ मान कर ही चलना है
4 अच्छा तो तुम ऐसे थे
5 ये चुपके चुपके न थमने वाली हँसी तो देखो
6 वो दिन भी कैसा सितम मुझ पे ढा के जाएगा
7 कोई ख़ुश था तो कोई रो रहा था
8 भीड़ में जब तक रहते हैं जोशीले हैं
9 मेहमाँ घर में भरे रहे
10 इ’श्क़ पहली मिरी बुराई थी
11 मिले तो कुछ बात भी करोगे
12 सिर्फ़ घुटन कम कर जाते हैं
13 ज़रा भी बदली नहीं जो भी उस की आ’दत थी
14 उसे भी कोई मश्ग़ला चाहिए था
15 वो निगाहें जो हज़ारों की सुना करती थीं
16 कौन कहे मा’सूम हमारा बचपन था
17 शिक्वा इक इल्ज़ाम हो शायद
18 जब कभी ज़ख़्म शनासाई के भर जाते हैं
19 कुछ साग़र छलकाने तक महदूद रहा
20 घरों में छुप के न बैठो कि रुत सुहानी है
21 मुद्दतों बा’द कहीं ऐसी घटा छाई थी
22 नहीं मैं हौसला तो कर रहा था
23 थकन औरों पे हावी है मिरी
24 बरसों जुनूँ सहरा सहरा भटकता है
25 इन्तिहा तक बात ले जाता हूँ मैं
26 कुछ भी मन्ज़िल से नहीं लाए हम
27 भँवर का काम साहिल कर रहा था
28 हैं अब इस फ़िक्‍र में डूबे हुए हम
29 तरह तरह से मिरा दिल बढ़ाया जाता है
30 कहीं न था वो दरिया जिस का साहिल था मैं
31 रात बे-पर्दा सी लगती है मुझे
32 उदास हैं सब पता नहीं घर में क्या हुआ है
33 दुनिया शायद भूल रही है
34 कुछ क़दम और मुझे जिस्म को ढोना है यहाँ
35 लोग सह लेते थे हँस कर कभी बेज़ारी1 भी
36 तन से जब तक साँस का रिश्ता रहेगा
37 जो कहता है कि दरिया देख आया
38 एक ऐसा भी वक़्त आता है
39 हाथ आता तो नहीं कुछ प तक़ाज़ा कर आएँ
40 आइने का साथ प्यारा था कभी
41 कहाँ सोचा था मैं ने बज़्म-आराई से पहले
42 झूट पर उस के भरोसा कर लिया
43 ख़मोशी बस ख़मोशी थी इजाज़त अब हुई है
44 सब आसान हुआ जाता है
45 पहली बार वो ख़त लिक्खा था
46 मुम्किन ही न थी ख़ुद से शनासाई यहाँ तक
47 नहीं मैं हौसला तो कर रहा था
48 मज़्हक़ा-ख़ेज़ ये किर्दार हुआ जाता है
49 जिस्म बचा है जाने भर का
50 नाजाएज़ है जो भी शिकायत है मेरी


1

रोज़ का इक मश्ग़ला1 कुछ देर का

उस गली का रास्ता कुछ देर का

1 कामम / व्यस्तता

 

बात क्या बढ़ती कि जब मा’लूम था

साथ है कुछ दूर का कुछ देर का

 

उ’म्‍र भर को एक कर जाता हमें

हौसला तेरा मिरा कुछ देर का

 

फिर मुझे दुनिया में शामिल कर गया

ख़ुद से मेरा वास्ता कुछ देर का

 

अब नहीं तो कल ये रिश्ता टूटता

फ़र्क़ क्या पड़ता भला कुछ देर का


 

2

ख़याल सा है कि तू सामने खड़ा था अभी

ग़ुनूदगी में हूँ शायद मैं सौ गया था अभी

 

फिर उस की शक्ल ख़यालों में साफ़ बनने लगी

ये मस्‍अला तो वही है जो हल हुआ था अभी

 

सुना है फिर कोई मुझ को बचाना चाहता है

किसी तरह तो मिरा फ़ैसला हुआ था अभी

 

यहीं खड़ा था वो आँखों में कितने ख़्वाब लिए

मैं उस को उस का नया घर दिखा रहा था अभी

 

उसी के बारे में सोचा तो कुछ न था मा’लूम

उसी के बारे में इतना कहा सुना था अभी


 

3

तिरी तरफ़ से तो हाँ मान कर ही चलना है

कि सारा खेल इस उम्मीद पर ही चलना है

 

क़दम ठहर ही गए हैं तिरी गली में तो फिर

यहाँ से कोई दुआ’ माँग कर ही चलना है

 

रहे हो साथ तो कुछ वक़्त और दे दो हमें

यहाँ से लौट के बस अब तो घर ही चलना है

 

मुख़ालिफ़त पे हवाओं की क्यों परेशाँ हों

तुम्हारी सम्त1 अगर उ’म्‍र भर ही चलना है

1 तरफ़, और

 

कोई उमीद नहीं खिड़कियों को बन्द करो

कि अब तो दश्त-ए-बला1 का सफ़र ही चलना है

1 मुसीबत का वीराना

 

ज़रा सा क़ुर्ब मयस्सर तो आए उस का मुझे

कि उस के बा’द ज़बाँ का हुनर ही चलता है


 

4

अच्छा तो तुम ऐसे थे

दूर से कैसे लगते थे

 

हाथ तुम्हारे शाल में भी

कितने ठंडे रहते थे

 

सामने सब के उस से हम

खिंचे खिंचे से रहते थे

 

आँख कहीं पर होती थी

बात किसी से करते थे

 

क़ुर्बत के उन लम्हों में

हम कुछ और ही होते थे

 

साथ में रह कर भी उस से

चलते वक़्त ही मिलते थे

 

इतने बड़े हो के भी हम

बच्चों जैसा रोते थे

 

जल्द ही उस को भूल गए

और भी धोके खाने थे


 

5

ये चुपके चुपके न थमने वाली हँसी तो देखो

वो साथ है तो ज़रा हमारी ख़ुशी तो देखो

 

बहुत हसीं रात है मगर तुम तो सो रहे हो

निकल के कमरे से इक नज़र चाँदनी तो देखो

 

जगह जगह सील के ये धब्बे ये सर्द बिस्तर

हमारे कमरे से धूप की बे-रुख़ी1 तो देखो

1 उपेक्षा

 

ये आख़िरी वक़्त और ये बेहिसी1 जहाँ की

अरे मिरा सर्द हाथ छू कर कोई तो देखो

1 संवेदनहीनता

 

दमक रहा हूँ अभी तलक उस के ध्यान से मैं

बुझे हुए इक ख़याल की रौशनी तो देखो

 

अभी बहुत रंग हैं जो तुम ने नहीं छुए हैं

ज़रा यहाँ आ के गाँव की ज़िन्दगी तो देखो


 

6

वो दिन भी कैसा सितम मुझ पे ढा के जाएगा

जब उस की शक्ल नहीं नाम ध्यान आएगा

 

उदास शाम की तन्हाइयों में मेरा ख़याल

शफ़क़1 का लाल दुपट्टा तुझे उढ़ाएगा

1 सवेरे या शाम की लालिमा

 

अभी तो ख़ैर ख़यालों में आना जाना है

कुछ एक दिन में ये रिश्ता भी टूट जाएगा

 

बिछड़ते वक़्त नमी भी न आई आँखों में

हमें गुमाँ1 था ये मन्ज़र बहुत रुलाएगा

1 भ्रम / शंका

 

किसे ख़बर थी मिरा ही गढ़ा हुआ किर्दार1

मिरे ही हाथ में उंगली नहीं थमाएगा

1 चरित्र

 


 

7

कोई ख़ुश था तो कोई रो रहा था

जुदा होने का अपना ही मज़ा था

 

नज़र की एहतियातें काम आईं

वो मेरा देखना तक देखता था

 

सितम ये था कि मैं उस का बदल भी

उसी से मिलता-जुलता ढूँढता था

 

वही रफ़्तार थी क़दमों की लेकिन

वो अब मेरे मुख़ालिफ़ चल रहा था

 

लबों तक हाल-ए-दिल वो भी न लाया

मिरी क़दरों1 को वो पहचानता था

1 मूल्यों

8

भीड़ में जब तक रहते हैं जोशीले हैं

अलग अलग हम लोग बहुत शर्मीले हैं

 

ख़्वाब के बदले ख़ून चुकाना पड़ता है

आँखों के ये शौक़ बहुत ख़र्चीले हैं

 

बीनाई1 भी क्या क्या धोके देती है

दूर से देखो सारे दरिया नीले हैं

1 दृष्टि

 

सहरा1 में भी गाँव का दरिया साथ रहा

देखो मेरे पाँव अभी तक गीले हैं

1 चटियल मैदान

 

सहरा सहरा फिरने को मजबूर हैं हम

ता’बीरों के ख़्वाब बहुत चमकीले हैं


 

9

मेहमाँ घर में भरे रहे

दिन भर बिस्तर खुले रहे

 

मेरे लिए क्या हिज्‍र-ओ-विसाल1

हाँ घर वाले डरे रहे

1 जुदाई-ओ-मिलन

 

उस ने भी आवाज़ न दी

हम भी ऐसे बने रहे

 

इतनी कौन समझता है

मेरे दुख ही बड़े रहे

 

इतने साल पुराने ख़्वाब

अब तक कैसे नए रहे

 

छू तो लिया पर हाथ अपने

दिन भर ठंढे पड़े रहे

 

इक मा’सूम इशारे के

घर घर क़िस्से छिड़े रहे


 

10

इ’श्क़ पहली मिरी बुराई थी

जो कि सब की नज़र में आई थी

 

उस की इक इक ख़ुशी पे मरता था

जिस से हर वक़्त की लड़ाई थी

 

वही तर्कीब आँसुओं वाली

आज मैं ने भी आज़माई थी

 

ये भी कोई भला सवाल हुआ

याद आई तो कितनी आई थी

 

मिरी तन्हाई की ज़रूरत भी

उस की नज़रों में बेवफ़ाई थी

 

इ’श्क़ का एक मर्हला तो था

एक मन्ज़िल तिरी जुदाई थी


 

11

मिले तो कुछ बात भी करोगे

कि बस उसे देखते रहोगे

 

ये लफ़्ज़ तो मुन्तख़ब1 किए थे

हमारी हर बात कब सुनोगे

1 चयन

 

वो अपने रस्ते में ख़ुद खड़ा है

कहाँ तलक उस का साथ दोगे

 

ये वह्‌म भी छोड़ दो कि अब तुम

किसी के छूने से जी उठोगे

 

जो बात अब खुल चुकी है उस को

दिलों में रख के भी क्या करोगे

 

चलो इसी ज़िन्दगी को जी लें

कहानी बन के भी क्या करोगे

Customer Reviews

Based on 3 reviews
100%
(3)
0%
(0)
0%
(0)
0%
(0)
0%
(0)
S
Sumeet Pandey
Classics

I am so happy to find a place to order classic books thank you so much

C
Chann Angrez
I Love Rekhta

Rekhta Books ki website par jaa kar aisa lagta hai k main kisi library mein aa gya❤️ Main khud confuse ho jaata hoon k kaunsi book order ❤️ Keep going Rekhta❤️

R
Rahul Singh
Khidki To Main Ne Khol Hi Li

nice

Related Products

Recently Viewed Products