kakad-kissa
Author | Pradeep Jilwane |
Language | Hindi |
Publisher | Setu Prakashan |
Pages | 247 |
ISBN | 978-93-91277-25-3 |
Book Type | Paperback |
Item Weight | 0.165 kg |
Dimensions | 129 x 198 mm |
Edition | 1st |
kakad-kissa
About Book
निमाड़ी लोकबोली का स्थानीय शंड काकड़ का अर्थ है—गाँव की सरहद। इस तरह का काकड़ किस्सा गाँव और उसकी सरहद के इर्द-गिर्द बुना गया वह बयान है जो लीक से परे हमारे समय की पड़ताल करते हुए मानवीय संवेदनाओं के स्पर्श और उनके साथ हो रहे छल, बाजारवाद के फैलावे और उसमें जड़ होती जा रही सामाजिकता का रोचक आख्यान कहता है। यह इस महादेश का असल चेहरा है जिसे डिजिटल लीपापोती ढाक नहीं पाती।
About Author
प्रदीप जिलवाने
जन्म : 14 जून 1978, खरगोन (म.प्र.) में।
देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से एम.ए. हिंदी साहित्य (विश्वविद्यालय की प्रावीण्य सूची में स्थान), अनुवाद में स्नातकोत्तर डिप्लोमा, पीजीडीसीए।
फिलहाल म.प्र. ग्रामीण सड़क विकास प्राधिकरण में कार्यरत।
एक कविता संग्रह 'जहाँ भी हो जरा-सी संभावना' एवं इसी कविता संग्रह की पांडुलिपि पर भारतीय ज्ञानपीठ का नवलेखन पुरस्कार 2011 एवं साथ ही म.प्र. हिंदी साहित्य सम्मेलन का प्रतिष्ठित 'वागीश्वरी' सम्मान प्राप्त।
पहला उपन्यास 'आठवाँ रंग/पहाड़-गाथा', पहला कहानी संग्रह ‘प्रार्थना समय’। इसके अतिरिक्त आधा दर्जन से अधिक अन्य महत्त्वपूर्ण रचना संकलनों में रचनाएँ शामिल।
गद्य एवं पद्य दोनों में समान लेखन। हिंदी साहित्य की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कहानियाँ एवं कविताएँ प्रकाशित, पुरस्कृत एवं चर्चित। रचनाओं का भारतीय भाषाओं यथा मराठी, तेलुगु में अनुवाद प्रकाशित।
स्थानीय और लोकप्रिय पत्रों में सांस्कृतिक एवं समसामयिक विषयों पर आलेख प्रकाशित । ब्लॉग लेखन में भी सक्रिय।
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