Jab Eak Hi Ghar Me Rahna Hai | जब एक ही घर में रहना है
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Author | Shailendra Shant |
Language | Hindi |
Publisher | Vera Prakashan |
Pages | 100 |
ISBN | 978-81-975844-1-1 |
Item Weight | 0.15 kg |
Dimensions | 5.25X8X.35 Inch |
Edition | First |
Jab Eak Hi Ghar Me Rahna Hai | जब एक ही घर में रहना है
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शैलेंद्र शांत के कविता संग्रह ‘जब एक ही घर में रहना है’ की कविताओं को उम्र का लेखा-जोखा कह कर पुकारा जा सकता है। इस संग्रह में शामिल उन की कविताएँ बहुत लंबी न होते हुए भी अपने आप में अनुभव का विस्तृत दस्तावेज़ हैं। क़स्बाई सादेपन और जीवन की विंसगतियों के मध्य व्याप्त दावानल रूपी अधर में झूलती इस संग्रह की कविताओं को जीवन के विभिन्न रंगों के आस्वाद हेतु पढ़ा ही जाना चाहिए। इस में शामिल कुछ कविताएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में पहले छपी हैं, जिन में सामाजिक संगति-विसंगति के बिम्ब हैं और अपने समय के मुखर स्वर भी हैं।
कवि की सामाजिक चेतना और उस के भीतर के मध्य-वर्गीय मनुष्य के बीच के अंतर्द्वंद्व को गहराई से जानने के लिए इस संग्रह की कविताओं पर निगाह करना ज़रूरी सा है। इसी मानवीय ऊहापोह में किस प्रकार कविता बनती है, इस संग्रह में देखा जा सकता है।
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