Ghar badar
Author | Santosh dixit |
Language | Hindi |
Publisher | Setu Prakashan |
Pages | 248 |
ISBN | 978-93-89830-09-5 |
Book Type | Paperback |
Item Weight | 0.195 kg |
Dimensions | 129 x 198 mm |
Edition | 1st |
Ghar badar
About Book
घर बदर, यह कुंदू यानी कुंदन दूबे की जीवन कथा है। कुंदू जो जीवन भर घर बदर रहे, केवल वे ही नहीं, उनके पुरखे तक। जीवनपर्यंत वे केवल एक अदद घर का सपना देखते हैं और देखते ही रह जाते हैं कुछ-कुछ गोदान के होरी की तरह।
एक निम्न मध्यवर्गीय व्यक्ति के लिए इस सपने की क्या कीमत है? या इस सपने के लिए उसे क्या कुछ कीमत चुकानी पड़ सकती है? उसकी कथा-अंतर्कथा से यह उपन्यास पाठकों को बखूबी रूबरू कराएगा। खास बात यह कि कई मायनों में फिर यह कथा-अंतर्कथा कुंदू के जीवन की ही कथा नहीं रह जाती। जैसे-जैसे कुंदू का जीवन आपके समक्ष खुलता जाएगा; जैसे-जैसे उसके भय, उसकी कमजोरियाँ, मजबूरियाँ यहाँ तक कि कुछ हद तक छोटे-छोटे स्वार्थ और चालाकियाँ भी आपके सामने आएँगी, वैसे-वैसे यह उपन्यास अपने दायरे का विस्तार करता जाएगा। कुंदू या उस जैसे को आप अपने इर्द-गिर्द हर चेहरे में तलाशने और पाने लगेंगे।
यह आम आदमी के सदैव आम बने रहने की अभिशप्तता या यों कहें कि उसके बस रह भर सकने के निरंतर संघर्ष का जीवंत बयान बन जाती है। इस अभिशप्त संघर्ष के कारणों की पड़ताल उपन्यास का केंद्रीय लक्ष्य है और इस क्रम में आप पाएँगे कि लेखक तमाम सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनीतिक संस्थानों से टकराता है। इस टकराहट में बहुत कुछ भरभरा कर आपके समक्ष ढहता चला जाएगा।
इस दृष्टि से कथानक का कालविस्तार भी उपन्यास की महत्त्वपूर्ण कुँजी है। यह कालखंड जो पिछली शताब्दी के उत्तरार्द्ध से हाल फिलहाल तक को अपनी परिधि में घेरता है। यह कालखंड बहुत कुछ बदलने का कालखंड है। देश की आबोहवा ही इस बीच बदल गयी है। यह मसला सिर्फ सत्ता, बाज़ार या अर्थतंत्र में आए बदलावों तक ही नहीं रुकता। बदलाव की इस आबोहवा ने हमारे परिवार, आसपड़ोस और समाज के व्यापकतर ताने-बाने को छेड़ा है। उसके मूल ढाँचे में ही परिवर्तन कर डाला है। घर बदर' के तमाम पात्र, उनके व्यवहार इसके साक्षी हैं। इस परिवर्तन को पूरी संजीदगी से संतोष दीक्षित रेखांकित करते
हैं।
हाँ एक बात और संतोष दीक्षित बहुत बेहतरीन किस्सागो हैं। बेहद इत्मीनान से एक लंबे कालखंड और लंबी जीवन-कथा को बड़े ही सरस और रोचक अंदाज में आप पाठकों के समक्ष रखते हैं। इस बीच उत्सुकता भी निरंतर बनी रहती है। क्रम से चलने वाली कथा को कहाँ तोड़ना है और कहाँ उसे पुनः जोड़ना है, यह इन्हें बखूबी मालूम है। मंझे हुए किस्सागो की तरह आपसे बतियाने के अंदाज में ये गंभीर से गंभीर बात करते चले जाएँगे। बिना किसी भारीपन के या बिना बोझिल हुए आप इस उपन्यास के माध्यम से अपने इस तेजी से बदलते हुए समाज को अपने सामने रखे आईने की तरह देख सकेंगे। भाषा की सादगी व रवानगी ऐसी कि आप प्रभावित हुए बिना रह ही नहीं सकते। यह बात इस उपन्यास की पठनीयता कई गुना बढ़ा देती है।
About Author
संतोष दीक्षित
जन्म : 10 सितंबर, 1959, ग्राम लालूचक, भागलपुर, बिहार
शिक्षा : भागलपुर, पटना एवं राँची में लेखन : 109.1-95 से कथा क्षेत्र में लगातार सक्रिय। देश की शीर्षस्थ पत्रिकाओं में कहानियाँ प्रकाशित, चर्चित एवं विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनूदित
प्रकाशन: 'आखेट' (1997), 'शहर में लछमिनियाँ' (2001), 'ललस' (2004), 'ईश्वर का जासूस' (2008) एवं 'धूप में सीधी सड़क' (2014) प्रकाशित। इसके अतिरिक्त तीन व्यंग्य संग्रह एवं व्यंग्य कहानियों का एक संग्रह 'बुलडोजर और दीमक'। 'केलिडोस्कोप', ‘घर बदर’ (उपन्यास)।
सम्मान : बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान
संपादन : बिहार के कथाकारों पर केंद्रित एक कथा संग्रह 'कथा बिहार' का संपादन
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