लिखावट और उच्चारण का नक़्शः
श
ज़ और श के बीच की आवाज़
लिखावट
नग़मः
नग़मः-ए-
नग़मः-ओ
जैन
'अ (पूरा) ' (आधा)
छोटी है [ : ]
अ
अओ
अओ
उच्चारण
नग़मा
नग़मओ
नग़मओ
अत्फ़ [-ओ-]
(दो शब्दों का जोड़)
गुल-ओ-बुलबुल
लालः-ओ-गुल
अदा-ओ-नाज़
ओ
अओ
आओ
गुलो-बुलबुल
लालओ-गुल
अदाओ नाज़
इज़ाफ़त [-ए-]
(दो शब्दों का सम्बन्ध)
ग़म-ए-दिल
नग़मः-ए-दिल
हवाओ - दिल
अ
अओ
अओ
ग़मे-दिल
नग़म-दिल
हवाओ - दिल
ज़मीमः
1
शब वह जो पिये शराव निकला
जाना यह, कि आफ़ताब निकला
क़ुरबान ए पियालः ए मै ए नाब
जिससे कि तिरा हिजाब निकला
था ग़ैरत-ए-बादः अक्स-ए-गुल से
जिस जू-ए-चमन से आब निकला
2
मौसम-ए-अब्र हो, सुबू भी हो गुल हो, गुलशन हो और तू भी हो
कब तक आईने का यह हुस्न-ए-क़ुबूल मुँह तिरा इस तरफ़ कभू भी हो
सरकशी गुल की ख़ुश नहीं आती नाज़ करने का वैसा रू भी हो
किसको, बुलबुल, है दमकशी का दिमाग़ हो तो गुल ही की गुफ़्तुगू भी हो
दिल तमन्नाकदः तो है, पर मीर हो तो उसकी ही आरज़ू भी हो
168
फूल गुल, शम्स-ओ-क़मर, सारे ही थे पर हमें उनमें, तुम्हीं भाये बहुत
वह जो निकला सुब्ह, जैसे आफ़ताब रश्क से गुल फूल, मुरझाये बहुत
मीर से पूछा जो मैं, 'आशिक़ हो तुम हो के कुछ चुपके से, शर्माये बहुत
169
मारना 'आशिक़ों का गर है सवाब तो हुआ है तुम्हें सवाब बहुत
394
गिरिये से दाग़-ए-सीनः, ताज़ः हुए हैं सारे यह किश्त-ए-ख़ुश्क तू ने, अय चश्म फिर हरी की
यह दौर तो मुवाफ़िक़ होता नहीं, मगर अब रखिये बिना-ए-ताज़ः, इस चर्ख़-ए- चम्बरी की
ख़ूबाँ, तुम्हारी ख़ूबी, ताचन्द नक़्ल करिये हम रंजःख़ातिरों की, क्या ख़ूब दिलबरी की